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परिवार की अहमियत – दूरियाँ नज़दीकियाँ बन गईं

रमेश को ये जिंदगी ज़्यादा अच्छी लगने लगी। उसने रेखा से कहा, "अब तो सब ठीक हो गया है। अब तो अपने घर चलो।"

रमेश को ये जिंदगी ज़्यादा अच्छी लगने लगी। उसने रेखा से कहा, “अब तो सब ठीक हो गया है। अब तो अपने घर चलो।”

आज फिर कमरे से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी।

रमेश अपनी पत्नी रेखा पर चीख रहा था। वैसे तो ये रोज़ की बात थी। रमेश का गुस्सा कभी भी भड़क जाता था। अगर किसी दिन शराब पी लेता, तो फिर पूछो मत कितना बवाल करता।

सास-ससुर तो बेटे की हरकतों से तंग आकर अलग घर लेकर रहने लगे थे। दोनों बच्चे, रिया और विपुल अपने पापा के गुस्से से बहुत परेशान रहते थे। वो बचपन से ही देखते आ रहे थे अपने पापा को बेवजह गुस्सा करते हुए। अब वो किशोरावस्था मे पहुच गए थे तो उन्हें और बुरा लगता था। उन्हें अपने पापा का बेवजह गुस्सा करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। दोनों बच्चे अपनी मम्मी के बहुत क़रीब थे। वो हमेशा अपनी मम्मी को खुश देखना चाहते थे।

बेटा विपुल अपनी मम्मी से हमेशा कहता,”मम्मी, क्यों इतना सहती हो? पापा को छोड़ क्यों नहीं देती? अब हम बड़े भी हो गए हैं, तुम्हारा अच्छे से ध्यान भी रख सकते हैं। आप जॉब भी करती हो, फिर किस बात की परेशानी है? जिस प्रकार पापा के गुस्से से परेशान होकर दादा-दादी उनको छोड़ कर अलग रहने लगे हैं, वैसे ही आप क्यों अलग नहीं रह सकती हो?”

रिया भी यही बोलती, “मम्मी बहुत हो गया, अब आप पापा को छोड़ दो। मैं और भैया आपका बहुत ख्याल रखेंगे।”

अब रेखा बच्चों को कैसे समझाती कि इतना आसान नहीं होता पति को छोड़ना या फिर पति से अलग रहना। फिर वो खुद भी बच्चों से उनके पिता को अलग करना नहीं चाहती थी। जब भी रमेश इस तरह का व्यवहार करता, रेखा का भी मन करता कि रमेश से अलग हो जाये, लेकिन फिर ये सोच कर रह जाती कि कहाँ जायेगी दोनों बच्चों को लेकर।

लेकिन आज तो हद ही हो गयी थी। रमेश ने गुस्से में हाथ भी उठा दिया था। रेखा बहुत ही आहत थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। तभी उसका मोबाइल बजा। ससुर जी का फ़ोन था।  उनको विपुल ने सब कुछ बता दिया था।

रेखा को समझाते हुए उन्होंने कहा, “बेटा बहुत हो गया अब सहते-सहते। तुम जो भी फैसला लोगी, हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं। रमेश के ऐसे व्यवहार से हम बहुत दुःखी हैं। विपुल बिल्कुल सही कह रहा है। तुम्हें अब कोई फैसला तो करना ही होगा। तुम अगर चाहो, तो मैं तुम्हारे लिये कोई घर देखूँ?”

“मैं जानता हूँ कि तुम रमेश को छोड़ना नहीं चाहती हो, लेकिन अलग तो रह सकती हो? अब उसका यही इलाज़ है। जब तुम सब से दूर रहेगा तो उसकी अक्ल ठिकाने आ जायेगी। अभी उसे सब कुछ अच्छे से मिल रहा है, इसलिए उसे तुम्हारी कीमत पता नहीं है। जब तुम्हारे और बच्चों के बिना अकेला रहेगा तब उसे एहसास होगा…”

“जी बाबूजी, आप सही कह रहे हैं। रमेश अगले हफ्ते बाहर टूर पर जा रहे हैं, तभी हम शिफ्ट कर लेंगे क्योंकि मैं कोई हंगामा नहीं चाहती हूँ।”

“ठीक है बेटा, अपना ख्याल रखना।”

बाबू जी से बात करके रेखा को अच्छा लगा क्योंकि अब वो रमेश का घर छोड़ने का फैसला ले चुकी थी।

वो जहाँ जॉब करती थी, उसने वहीं किराये का फ्लैट ले लिया और रमेश के टूर पर चले जाने के बाद वो बच्चों को लेकर फ्लैट मे शिफ्ट हो गयी। बाबूजी ने शिफ्ट करने में उसकी पूरी मदद की।

एक हफ्ते बाद जब रमेश टूर से लौटा तो उसे घर पर ताला लगा मिला। वो सोचने लगा, रेखा बाबूजी के यहाँ गयी होगी। वो बाबूजी के घर गया।

बाबूजी उसे घर की चाबी देते बोले, “बेटा, तुमने रेखा के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। अब तो तुम्हारे बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। क्यों अपना बसा बसाया घर उजाड़ रहे हो? रेखा ने बच्चों सहित तुम्हारा घर छोड़ दिया है, अब आराम से रहना तुम।”

ये सुनकर रमेश के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। उसे ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि रेखा ऐसा फैसला ले लेगी। घर पहुँच कर रमेश ताला खोलकर अंदर गया तो उसे घर में एक अजीब सा सूनापन लगा।

उसे एक-एक कर रेखा की सारी बातें याद आने लगीं। कैसे रेखा उसका हर पल ध्यान रखती थी।  वो उसके साथ कितना भी गलत व्यवहार कर ले लेकिन रेखा ने कभी भी अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह नहीं फेरा। हमेशा सब कुछ चुपचाप सहती रही। शायद इसलिए मैंने उसकी कीमत नहीं समझी। यह सोचते-सोचते उसको नींद आ गई।

उठने पर उसका मन बच्चों और रेखा के बिना बेचैन होने लगा। जल्दी ही उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा। उसने फैसला लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये, वो रेखा को मना कर घर ले आएगा। वो तैयार होकर रेखा और बच्चों को लेने निकल गया।

रेखा के घर पहुँच कर, उसने रेखा से अपने किये की माफ़ी माँगी और उसे घर चलने के लिए कहा।

रेखा ने रमेश से कहा, “मेरे लिए ये फैसला लेना बहुत कठिन था। लेकिन अब जब मैंने ये फैसला लिया है, तो तुम्हें भी इसका सम्मान करना चाहिए। आखिर, ये हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है। मुझे तुमसे अब कोई शिकायत नहीं। तुम जब चाहो यहाँ आ सकते हो पर मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती।”

रमेश भारी कदमों से वापस चला तो आया लेकिन घर पहुँचाने पर घर में उसका मन नहीं लगा। उसे बच्चों और रेखा की याद सतानी लगी। किसी तरह से वो एक दो दिन काट पाया और फिर बच्चों से मिलने के लिए रेखा के घर गया।

बच्चों के लिए वो उनकी मनपसंद चीज़ें लेकर गया और बच्चों से बड़े ही प्यार से मिला। बच्चे बहुत खुश हुए पापा का बदला हुआ रूप देखकर।

अब तो ये रोज़ का सिलसिला हो गया। कभी-कभी वो रात में भी रुक जाता था। रेखा भी पति के बदले हुए व्यवहार से काफी खुश रहने लगी क्यूंकि उसके जीवन से सभी टेंशन दूर हो गयी थी। उसे पति का प्यार और बच्चों को उनके पिता का प्यार वापिस मिल गया था।

रमेश को भी ये जिंदगी ज़्यादा अच्छी लगने लगी। उसे अपनी पत्नी की अहमियत पता चल गई थी। उसने रेखा से कहा, “अब तो सब ठीक हो गया है। अब तो अपने घर चलो।”

रेखा बोली, “मैंने तुम्हें बड़ी मुश्किल से पाया है। ये घर बहुत ही लकी है हमारे परिवार के लिए। फिर, यहाँ कोई परेशानी भी नहीं है। मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती।” ये कहते हुए वह रमेश के सीने से लग गयी।

रमेश ने भी उसे कस के सीने से लगा लिया और कहा, “ठीक है, फिर हम यहीं सोसाइटी में ही घर ले लेंगे। मैं भी तुम्हें और बच्चों को खोना नहीं चाहता हूँ क्योंकि तुम्हारे दूर जाने के डर ने मेरी आँखे खोल दी हैं।”

“मैंने अपने गुस्से पर काबू पा लिया है। और अब, हमारे बीच की दूरियाँ नज़दीकियों में बदल गयी हैं। मुझे भी अब परिवार की अहमियत का पता चल गया है।”

दोस्तों, कभी-कभी जिंदगी में कुछ कठिन फैसले लेने पड़ते हैं। लेकिन ये कठिन फैसले ही हमें हमारी मंजिल तक पहुँचाने में मददगार साबित होते हैं। इसलिये, जीवन में कभी भी, कोई भी परेशानी आए और कहीं से भी कोई रास्ता नज़र न आए, तो कोई भी कठिन फैसला लेने में डरें नहीं। थोड़ी हिम्मत दिखाएं। क्या पता कोई रास्ता निकल आए और जीवन मे थोड़ी बहार आ जाये।

आप सब इस बारे मे क्या सोचते हैं। मुझे अपने विचार ज़रूर बताएं। आपके विचारों का तहे दिल से स्वागत है।

मूलचित्र : Pixabay

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Anita Singh

Msc,B.Ed,बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक है कॉलेज के जमाने से ही लेख कविता और कहानियां लिख रही हूं मुझे सामाजिक मुद्दों पर लिखना पसंद है अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में पॉजिटिव बदलाव लाना चाहती हूं। read more...

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