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एक इस घर की लड़की, एक दुसरे घर से आई! फिर शादी के बाद फर्क क्यों?

क्यों शादी के बाद भी रोली में बचपना दिखता था और राधा में सुशील बहु, जिससे पूरा घर संभालने की उम्मीद रहती?

शादी के छः महिने तक राधा ससुराल ही रही, कुछ रस्में चल रही थीं, कुछ तीज, त्यौहार भी थे। वैसे तो राधा ने अपने घर में ज़्यादा काम नहीं किया था, पर ससुराल कभी मना भी नहीं किया। सासु-माँ से पूछ-पूछ कर काम करती। थक जाती, पर उफ़ नहीं करती। कभी रो लेती अकेली, कि क्यों लड़की को दूसरे का घर संभालना होता है?

कभी सासु-माँ को बोलती कि थक गयी हूँ, तो सास कह देती कि थोड़ी देर बाद कर लेना। ये नहीं कि आराम कर आज। या, कभी राधा कहती, ‘मम्मी जी दोपहर का काम हो गया है, थोड़ा आराम कर लूँ’, तो सास कहती, ‘आराम कर। बस आधा घंटा ही सोना। बहुत काम होता है घर का। आदत बिगड़ जाती है सोने से, रोज़ नींद आयेगी नहीं तो।’ रह-रह कर मम्मी की याद आ जाती। मन करता तो करती थी नहीं तो नहीं करती थी काम।

कुछ समय बाद राधा पति के साथ दुसरे शहर चली गई। पर ससुराल भी बस एक घंटा लगता, तो शनिवार-इतवार आना जाना लगा रहता। वैसे राधा पति के साथ दिल्ली ही रहती थी, पर कुछ महीनों के लिए ससुराल आई रहने।

एक दिन राधा घर का काम निपटा रही थी, गर्मियों के दिन और रसोई में जाने की हिम्मत नहीं, तभी ससुर जी की आवाज आई, ‘सुनो राधा कुछ घंटे में कुछ मेहमान आ रहे हैं। मैं उन्हें बोला आने को, आते ही होगें।’

‘पहले ही बता देते तो हम जल्दी-जल्दी काम निपटा लेते। अभी सारा काम फैला पड़ा है। उन लोगों के नाश्ते और खाने का प्रबंध भी करना पड़ेगा’, राधा की सास ने कहा।

ससुर जी तीख़ी आवाज़ में बोले, ‘और तुम्हें काम ही क्या है? बाद में निपटाती रहना। घर में ही तो रहती हो।’

ना चाहते हुए राधा की नजरें नीचे झुकी थीं क्योंकि सुबह से काम करते-करते थकान से उसका शरीर जवाब दे रहा था। आदत भी नहीं थी। सासु-माँ ने राधा को एक मुस्कुराहट से देखा और बोली, ‘बेटा, जल्दी हो जाएगा, पहले किचन देख लेते हैं।’ दोनों एक दूसरे की भावनाओं को समझ रही थीं, पर ससुर जी के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं की। हमेशा ससुर जी ऐसे ही करते थे। एक या दो बार की बात हो तो ठीक था।

कुछ दिन के बाद राधा अपने पति के साथ शहर नौकरी पर चली गई। सास-ससुर का आना-जाना लगा ही रहता और खुशी-खुशी समय बीता।

दोनों एक दूसरे की भावनाओं को समझ रही थीं, पर ससुर जी के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं की। हमेशा ससुर जी ऐसे ही करते थे।

कुछ दिन बाद राधा ससुराल आई तो सासु-माँ से वाशिंग मशीन खरीदने के लिए कहने लगी, ‘मम्मी जी कहिए ना पापा जी से। अभी तो मिल कर कर लेते हैं। मेरे जाने के बाद भी, जाड़ों में आपको बहुत आराम होगा।’

राधा की सास ने जैसे ही कहा, मशीन ले लीजिये, राधा कह रही थी बहुत आराम है, तभी राधा के ससुर ने तेज़  आवाज में कहा, ‘क्या ज़रुरत है? दोनों मिल कर कर तो लेती हो। और सारे दिन काम ही क्या है? राधा के जाने के बाद भी, दो जनों के कपड़े ही तो होते हैं। पहले महिलाएं पूरा संयुक्त परिवार के कपड़े धोती थीं।

अपने पति से राधा ये बात कहती तो वह हमेशा कहता, ‘पापा जी ऐसे ही हैं। वह किसी की नहीं सुनते। मैं जल्दी ही घर के लिए दिवाली पर वॉशिंग मशीन ला दूंगा।’

कुछ दिन के बाद नंद का तबादला उसकी ससुराल के शहर में हो गया। राधा की नंद बैंक में नौकरी करती थी।राधा बोली की चलो माँ के साथ नंद जी का भी समय अच्छे से निकल जाएगा। नंद को भी आराम था कि मायके में रह कर भी दो-तीन साल आराम से काट लेगी फिर उसके बाद उसका तबादला दूसरे शहर में हो जाएगा। राधा पति के साथ दिल्ली रह रही थी।

ससुर जी का फोन आता तो नंद रोली की बातें सुनाते कि रोली सुबह चली जाती है और शाम को पाँच बजे घर आती है, पूरा दिन थक जाती है। जब सासु-माँ से बात होती राधा की, तब पता चलता कि नंद बिल्कुल भी घर में मदद नहीं कराती थी। काम में वह कहती थी कि मैं सारा दिन थक जाती हूँ। अब काम करने की हिम्मत नहीं रहती आदत छूट गई है घर का काम करने की। सास-ससुर नंद को काम नहीं करने देते थे कि नौकरी से रोली थक जाती है।

राधा दिवाली पर ससुराल गई हुई थी तब ससुर जी ने कहा कि पड़ोस से कुछ लोग आने वाले हैं। तभी रोली ने कहा, ‘पापा जी आप आज मत बुलाइये क्योंकि मैं पूरे दिन थक कर शाम को तो आऊँगी। उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं है किसी मेहमान के पास बैठने की।’

ससुर जी ने एकदम से कहा, ‘ठीक है बेटा, कल कह देता हूँ। कल आ जाएँगे, तू आराम कर। यह शब्द उनके कभी भी राधा और सासु-माँ के लिए नहीं निकले। ना तो उन्होंने कभी राधा को, और ना ही कभी सासु-माँ को घर के बाहर नौकरी की इजाज़त दी और वहीं बेटी के लिए अलग सोच थी। उनका मानना था रोली बाहर काम करके थक जाती है और जो महिलाएँ घर में रहती हैं उन्हें काम ही क्या है, झाड़ू-पोछा-बर्तन कपड़ों के अलावा? वह काम उनकी गिनाई में कभी नहीं था।

सास के साथ बीता था ये सब, तो वो राधा को समझती थीं, पर रोली से बिल्कुल काम नहीं कराती थीं। उन्हें भी रोली छोटी सी लगती। जबकि राधा और रोली में केवल एक साल का अंतर था। ये बात राधा को चुभती, पर वो कुछ नहीं कह पाती थी। राधा सोचती की जहाँ मायके में कुछ काम को नहीं कहते, उसके सौ नखरे उठाते, फिर ससुराल में क्यों उससे सुशील बहु की तरह सोच रहे हैं कि वो अंजाने घर में सारा घर का काम संभाल ले? आज वो उसे रोली की तरह क्यों छोटा नहीं समझ रहे हैं?

सारे दिन के काम की थकान क्यों नहीं दिखती? बाहर काम और घर के काम में थकान सिर्फ बाहर वालों की ही क्यों दिखती है? घर का काम क्या चुटकी बजाते हो जाता है? बस कितने आराम से बोल जाते हैं कि ‘तुम्हें काम ही क्या है?’ और सासु-माँ एक मुस्कुराहट में देखती है कि ‘मिल कर कर लेंगे।’ तब वो बात रोली के लिए अलग क्यों?

क्यों शादी के बाद भी रोली में बचपना दिखता था और राधा में सुशील बहु, जिससे पूरा घर संभालने की उम्मीद रहती। एक इस घर की लड़की थी, एक दुसरे घर से आई। फिर फर्क क्यों?

मूलचित्र : Google

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