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ज़रूरी नहीं हथियारों से ही लड़ा जाए, अपने घर से देश के लिए लड़ती आयी थी, हां! यही देशभक्ति कहलाई थी। हां! वो भी देशभक्ति कहलाई थी।
‘लो फिर बेटी हुई है’ से उस मासूम ने अपनी आंखें खोली थीं उम्मीदों के बांध को उसने अपने जन्म से ही तोड़ दिया लड़ती रही अपने अस्तित्व के लिए हर कदम लेकिन हारने से उसको कुछ सख्ती थी उसी मनहूस ने वो तलवार पूत पर चलाई थी हां! वो भी देशभक्ति कहलाई थी।
यूँ कपड़ो की तना-तनी में, संवरना कहीं चूक गया चूड़ियों का दामन पकड़ा और वो कलम कहीं छूट गया लेकिन कहाँ वो लहर है जो हौसला तोड़ पायी थी उसी डरपोक ने ऊंचे पर्वत पर ध्वजा लहराई थी हां! वो भी देशभक्ति कहलाई थी।
बेलन उसकी कमजोरी नहीं, निशाना भी अचूक उसका लगा गोते पानी में, काटा है सीना उसका उसकी स्याही करती न्याय कितनों का पत्थर का बन वो माँ फ़र्ज़ निभाती आई है हाँ! वो भी देशभक्ति कहलाई है।
कहीं लाल बिंदी और साड़ी में चंद्रयान चला दिया कहीं लगा छलांग भारत का गर्व फिर से बढ़ा दिया कहीं चल पड़ी उड़ने कोई ‘स्वर्ण परी’ कहीं अर्थव्यवस्था का नक्शा घुमा दिया ज़रूरी नहीं हथियारों से ही लड़ा जाए अपने घर से देश के लिए लड़ती आयी थी हां! यही देशभक्ति कहलाई थी।
मूलचित्र : Google/Pexel
Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve read more...
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