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ज़िन्दगी प्यार का गीत है, इसे हर दिल को गाना पड़ेगा

उसने गाड़ी एक साइड पर लगा दी और अपने पर काबू पाने की बड़ी कोशिश की, पर दिल था कि अब सुनने को तैयार नहीं था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। 

उसने गाड़ी एक साइड पर लगा दी और अपने पर काबू पाने की बड़ी कोशिश की, पर दिल था कि अब सुनने को तैयार नहीं था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। 

जतिन अपने बच्चों, नैना और मयंक के साथ गाड़ी में अपनी बहन के घर जा रहा था। बच्चों के बार बार कहने से मजबूर हो कर उसने म्यूज़िक प्लेयर ऑन किया। बच्चे बोले, कितने अच्छे गाने आ रहे हैं पापा और आप देखो मना किए जा रहे थे। जतिन मुस्करा कर रह गया। दो-तीन गानों के बाद ही रेडियो पर वही गाना बजने लगा जिसके डर से जतिन रेडियो ऑन नहीं कर रहा था। गाड़ी में लता मंगेशकर जी के मधुर स्वर बिखर रहे थे –

“ज़िंदगी प्यार का गीत है,

इसे हर दिल को गाना पड़ेगा

ज़िंदगी ग़म का सागर भी है,

हंसके उस पार जाना पड़ेगा….”

और गाने के बोल सुनकर जतिन के सारे ज़ख्म, जो कि छः महीने में थोड़े भरने शुरू हुए थे, फिर से हरे हो गए। उसने गाड़ी एक साइड पर लगा दी और अपने पर काबू पाने की बड़ी कोशिश की, पर दिल था कि अब सुनने को तैयार नहीं था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वो फूट-फूट कर रो पड़ा और पिछली यादों में खो गया।

बड़ा पसंद था जतिन की पत्नी मृणाल को ये गाना, खुश होती तब भी यही गाना गुनगुनाती और दुःख में भी यही। लव कम अरेंज मैरिज थी उनकी। एक शादी में जतिन ने मृणाल को देखा और देखते ही दिल हार गया। माँ-पिताजी को भी जब उसने अपनी पसंद बताई तो वो फट से शादी के लिए राज़ी हो गए। मृणाल थी ही बहुत प्यारी कोई मना कर ही नहीं पाया।

अपनी पसंद को पाकर जतिन सातवें आसमान पर रहता था। बड़े प्यार से दिन निकलने लगे। मृणाल हर वक़्त यही गाना गुनगुनाती रहती थी, कहती थी कि इस गाने में उसकी रूह बसी है। जतिन बड़ी हंसी उड़ाता था पर फिर भी एक बार रोज़ सोने से पहले उससे ये गाना ज़रूर सुनता था। वैसे फ़ायदा भी बहुत था जतिन को इस गाने का, मृणाल के मूड का बड़ी आसानी से पता लग जाता था उसकी आवाज़ सुनकर।

उनके दो बच्चे भी हो गए, बड़ी बेटी नैना और उस से दो साल छोटा मयंक। ऐसा लगता था कि मानो सारी खुशियां उनकी झोली में हों। बच्चों की भी मृणाल ने अच्छी परवरिश की थी, बड़े शांत, सुलझे स्वभाव के थे।

लेकिन समय कब एक सा रहा है, जतिन धीरे-धीरे काम में व्यस्त होता चला गया। घर पर सब शिकायतें भी करते थे कि वो किसी को वक़्त नहीं देता, लेकिन वो नहीं बदला, उसको बस तरक्की की धुन लग गई थी। और फिर मृणाल और मम्मी-पापा मिलकर सब संभाल तो लेते ही हैं, ये सोचकर वो इस सब पर ज्यादा ध्यान भी नहीं देता था। हाँ कभी-कभी मृणाल के गानों के उदास बोल उसे परेशान भी करते थे जिन्हें ‘वो कल सब ठीक कर दूंगा’ सोचकर रह जाता था और वो कल कभी आया ही नहीं।

मम्मी-पापा का सहारा भी एक दिन एक्सिडेंट ने मृणाल से छीन लिया। अब वो बिल्कुल अकेली सी रह गई थी। हालांकि बच्चे उसके पास थे, लेकिन बच्चों और बड़ों में फर्क होता है। वो बच्चों पर अपने दुःख और अकेलेपन का बोझ नहीं डालना चाहती थी सो ज़्यादातर चुप रहने लगी।

जतिन को ये सब नज़र ही नहीं आया। संभला वो तब जब मृणाल ने गाना गाना ही छोड़ दिया। शुरू में तो उसे लगा कि शायद वो बस उसके सामने नहीं गाती, लेकिन एक दिन जब वो घर पर था, तब भी पूरे दिन उसने उसके गुनगुनाने की आवाज़ नहीं सुनी। और तब जतिन को लगा जैसे उसके घर का जीवन संगीत ही रुक गया।

आज उसने बड़े अरसे के बाद मृणाल को गौर से देखा तो वो तो कहीं से भी पहली जैसी मृणाल नहीं लग रही थी। ये तो कोई और ही थी, मुरझाई हुई, जैसे अरसे से ढंग से ना खाया-पिया हो ना सोई हो। जतिन ने उससे बात करने की कोशिश की, पर वो रसोई में काम है कह कर चली गई।

अगले दिन ऑफिस में नैना का फोन आया। वो और ज़ोर से रो रही थी, मृणाल रसोई में काम करती हुई अचानक बेहोश हो कर गिर गई। जतिन उसे हॉस्पिटल लेकर गया और वहां डॉक्टर ने उसका पूरा चैकअप कर काफी सारे टेस्ट लिख दिए। और टेस्ट की रिपोर्ट आने पर पता चला कि मृणाल को कैंसर है, वो भी लास्ट स्टेज पर। बस अब वो महीने दो महीने की मेहमान थी।

जतिन ने बड़े-बड़े डॉक्टर्स को भी दिखाया, पर सबने यही बताया। जतिन और बच्चों की दुनिया उजड़ सी गई। सब मिलकर मृणाल को खुश रखने की कोशिश करने लगे और मृणाल, वो तो सिर्फ टूटकर रह गई। अपने कलेजे के टुकड़ों को बीच राह में उसे छोड़ कर जाना था, ये सोचकर ही वो सारा दिन रोती रहती थी।

फिर मृणाल ने खुद को संभाला, माँ जो थी। अपने जाने से पहले अपने बच्चों को समझदार बना कर जाना चाहती थी वो ताकि उसके बाद भी वो खुश रह सकें। हालांकि शरीर साथ नहीं देता था लेकिन उसने अपने बच्चों को गुज़ारे लायक खाना बनाना सिखा दिया था और दुनिया की ऊँच-नीच भी समझाने में लग गई थी मृणाल।बच्चे भी उम्र से बड़े हो गए थे कुछ ही दिनों में। मृणाल को ये भी पता था कि जतिन उसके बिना टूट जाएंगे।

और फिर एक दिन मृणाल सब को छोड़ कर चली गई। लेकिन जाने से पहले वो अपने बच्चों को संभाल गई थी लेकिन जो नहीं संभल पा रहा था वो जतिन था। उसको लगता था कि मृणाल सिर्फ उसकी वज़ह से गई है। बच्चों के कारण रोता तो नहीं था पर जीता भी नहीं था।

तभी आज दोनों बच्चों ने बुआ के यहां जाने के बहाने से बड़ी मुश्किल से उसे घर से बाहर निकाला था और मृणाल वाला गाना जानबूझ कर लगाया था ताकि वो अपने पापा के मन में भरे दुःख को आंसुओं में बहा सकें।

बच्चों ने जतिन को जी भर कर रोने दिया और उसके गले लग गए। और उसको मृणाल का एक छोटा सा खत दिया जो वो जतिन के लिए देकर गई थी और बच्चों को बोला था कि अगर जतिन नहीं संभले सिर्फ तब ही उसे दें।

जतिन ने रोते हुए खत खोला। उसमें मृणाल ने लिखा था, “जतिन अगर आप ये खत पढ़ रहे हो तो आज भी मेरे जाने के गम से नहीं उभरे हो। मुझे उस बात का ही डर था इसलिए ये खत तुम्हारे नाम लिखकर जा रही हूँ।

पता है जतिन अपने बच्चों को छोड़ कर जाना किसी भी माँ के लिए आसान नहीं होता, लेकिन मेरे लिए उन से ज़्यादा तुम्हे छोड़ कर जाना मुश्किल था क्योंकि मुझे पता है कि जितना प्यार मैं तुमसे करती हूं उतना ही तुम भी मुझसे करते हो। मेरे बच्चों को तो तुम मेरे बाद संभाल लोगे, पर तुम्हें कौन संभालेगा, ये सोच मुझे परेशान कर रही है।

मुझे पता है कि तुम्हें लग रहा होगा कि अगर तुम घर पर ध्यान देते तो शायद ये सब होने से रोक लेते। तुम भगवान नहीं हो जतिन कि सब रोक सकते। मेरी बीमारी तुम्हारे ध्यान ना देने से नहीं हुई, ये तुम्हें समझना होगा।तुम जब तक उदास और दुखी रहोगे, मैं भी दुखी रहूंगी। मेरे लिए, अपने बच्चों के लिए तुम्हें इस दुःख से खुद को उबारना होगा।

माना ये सब आसान नहीं पर फिर भी तुम्हें करना होगा। ज़िन्दगी का नगमा तुम्हें फिर से गाना होगा। अब से मैं नहीं, तुम मेरे लिए ये गाना गाओगे और मैं वहां तारों में बैठी ये गाना सुनकर ज़ोर से टिमटिमाने लगूंगी।

अलविदा जतिन।”

जतिन ये खत पढ़कर फिर से रोने लगा। ज़िन्दगी खोकर ज़िन्दगी जीना आसान नहीं होता लेकिन उसे ये करना था अपनी ज़िन्दगी के लिए। रोते हुए ही वो गुनगुनाने लगा,

“ज़िंदगी प्यार का गीत है,
इसे हर दिल को गाना पड़ेगा
ज़िंदगी ग़म का सागर भी है,
हंसके उस पार जाना पड़ेगा….”।

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मूलचित्र : Unsplash

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