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सेवानवृत्ति नौकरी से लें ज़िंदगी से नहीं

सेवानिवृति के दिन जैसे ही हाथों में फूल और गिफ्ट्स के साथ अनंत ऑफिस से निकले सुषमा जी ने गाड़ी घर के बजाय उनके पसंदीदा रेस्तरां की तरफ मोड़ दी।

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सेवानिवृति के दिन जैसे ही हाथों में फूल और गिफ्ट्स के साथ अनंत ऑफिस से निकले सुषमा जी ने गाड़ी घर के बजाय उनके पसंदीदा रेस्तरां की तरफ मोड़ दी।

आज फिर अनंत पूरी रात सो नहीं पाए। जब से ऑफिस में उनके सेवानिवृत्त होने की चर्चा शुरू हुई है तब से एक दिन भी अनंत सुकून से नहीं रह पाए थे। उन्हें तो पता ही नहीं चला कि काम करते-करते कब इतना वक्त गुज़र गया और उनकी सेवानिवृत्ति का वक्त भी आ गया।

कहाँ तो उनकी सुबह ऑफिस जाने की भागमभाग से शुरू होती और रात ऑफिस की फाइलें निबटाते हुए।ऑफिस ने उन्हें इस कदर व्यस्त कर दिया था कि इनके पास खुद के लिए या अपने परिवार तक के लिए भी समय नहीं था या यूँ कह लो कि उन्होंने अपने आप को ऑफिस के लिए ही समर्पित कर दिया था।

जब भी उनके परिवार को उनकी ज़रूरत होती तो एक गृहयुद्ध छिड़ता। कुछ दिनों तक पति-पत्नी में बात-चित बंद रहती, तब कहीं जा कर घर का वह आवश्यक कार्य पूरा होता। लेकिन मजाल है कभी ऑफिस का कोई काम अधूरा रह जाए। अब जब कि यह उनके ऑफिस के कार्यकाल के अंतिम सप्ताह चल रहा है तो अनंत को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करेंगे, ऐसा लग रहा था जैसे अब उनकी ज़िंदगी में कुछ बचा ही नहीं है।यही बात उन्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही थी।

सुषमा (अनंत की पत्नी) काफी दिनों से अनंत को परेशान देख रही थी। वह उनसे कहती तो कुछ नहीं थी लेकिन उन्होंने भाँप लिया था कि अनंत की परेशानी का कारण कुछ और नहीं उनका सेवानिवृत्त होना ही है। अब सुषमा जी ने यह सोचना शुरू कर दिया कि क्या किया जाए कि अनंत को सेवानिवृत्त होने के बाद भी व्यस्त रखा जाए।

अचानक उन्हें जैसे कुछ याद आया और वह बिल्कुल निश्चित हो गयीं। अगली सुबह से ही सुषमा जी ने अपने विचारों को कार्यान्वित करना शुरू कर दिया। अनंत कभी बहुत अच्छा लिखा करते थे, तो सुषमा जी ने उन्हें फिर से लिखने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया। बुकस्टोर जा कर अनंत के पसंद की ढेर सारी किताबें ले आयीं और इस तरह अनंत के जो भी शौक थे जिन्हें वह ऑफिस की व्यस्तताओं की वजह से लगभग भूल चुके थे, उन सभी को फिर से जीवित करने की कोशिश में जुट गयीं।

इसी तरह सेवानिवृति के दिन जैसे ही हाथों में फूल और गिफ्ट्स के साथ अनंत ऑफिस से निकले सुषमा जी ने गाड़ी घर के बजाय उनके पसंदीदा रेस्तरां की तरफ मोड़ दी। थोड़ी ही देर में दोनों एक टेबल पर बैठे अपने ऑर्डर के आने का इंतजार कर रहे थे। तभी सुषमा जी ने अनंत का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, “अनंत! एक दिन ऐसे ही हमने अपने नए जीवन की शुरुआत की थी; तब भी सिर्फ हम दोनों ही थे एक-दूसरे के लिए। आज देखो मैं भी अपने घर की जिम्मेदारियों से सेवानिवृत्त हो चुकी हूँ और तुम अपने ऑफिस से। आज फिर ये हमारी ज़िंदगी की नई शुरुआत है। आज फिर से मैं तुम्हारे लिए और तुम मेरे लिए रहोगे।”

अनंत भीगीं पलको से अपनी मौन स्वीकृति दे रहे थे ।

मूल चित्र : Canva

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Anchal Aashish

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