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ज़िंदगी इक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना…ओड्लई ओड्लई ओहू…

जब तक जीवन है तब तक कोई ना कोई मुश्किलें आती रहेंगी। इन्ही में से कुछ लम्हे चुरा के मुस्करा लो, ज़िंदगी कबूल करो और अपना लो। एक बार मुस्कुरा दो यार!

जब तक जीवन है तब तक कोई ना कोई मुश्किलें आती रहेंगी। इन्ही में से कुछ लम्हे चुरा के मुस्करा लो, ज़िंदगी कबूल करो और अपना लो। एक बार मुस्कुरा दो यार!

टाईटल पढ़ते ही आपके चेहरे में मुस्कान आ गई, आ गई ना? तो सुनिए, वाकया उस समय का है, जब रूप नई नवेली दुल्हन बन कर अनिकेत के घर आई थी। चुलबुली रूप ना खुद चुप बैठती थी, ना किसी को शांत बैठने देती थी। शादी के एक महीने तक मेहमानों का आना जाना लगा रहा।

फिर दोनों हनीमून चले गए। चुलबुली रूप, रंग बिरंगी तितली की तरह, बस उड़ती ही रहती। अब अनिकेत भी उसी के रंग में रंग गया था। पहले वह शान्ति पसंद प्राणी था। तोल-तोल कर बोलता, उसके घर में एसा ही माहौल था। शायद रूप इसलिए भी उसे बहुत प्यारी लगी थी।

खैर, नया जोड़ा घूम फ़िर कर घर लौट आया। रूप का मस्त मौला स्वभाव तो सभी समझ गये थे। पर अनिकेत भी उसी की तरह हर वक्त मस्ती के मूड में रहता था। यह चीज किसी को पल्ले नहीं पड़ रही थी, या शायद गले नहीं उतर रही थी। उन सभी ने मनहूसियत की चादर ओढ़ने का रिवाज़ जो बना रखा था। रूप का ससुराल परफेक्शन का पर्फेक्ट एग्जाम्पल था। केवल काम पर फोकस, भावना 0%, चौबीस घण्टे शांति, सफाई, मतलब आर्मी रूल, टाईम की पाबंदी ही पाबंदी।

रूप सुबह सवेरे सभी के पास जाकर गुड मॉर्निंग कहती और इसका उत्तर लिये बिना हटती भी नहीं थी। इस कदर हंस के और चहक कर आज तक इस घर में किसी ने बात नहीं की थी। टीवी देखते हुए इतनी मशगूल हो जाती कि ताली बजाने लगती, गाने साथ में गाती, तो कभी रोने लगती। सास उसे नौटंकी बोलती थी। पूजा पाठ भी मन लगाकर करती थी। हर कोई हाथ जोड़ने पर मजबूर हो जाता था। जबकि इसके पहले सिर्फ माँ ही यह काम किया करती थी। अनिकेत भी पहले से बहुत अधिक आस्तिक हो गया था। पूजा घर में उसको देखकर सभी को बहुत अटपटा लगता था।

पूरे ससुराल के नियम ध्वस्त हो रहे थे। सभी कुण्ठित हो गए थे, पर कोई उसे कुछ नहीं कह सकता था। वजह ही नहीं देती थी, सारे काम चुटकी में निपटा वह टाईम बचाती और सारे घर में मौज मस्ती के बहाने ढूँढती।

रूप को मीठा पसंद था, खाने के बाद मीठा जरूर खाती थी। यदि नहीं होता तो जो मीठा मिल जाए वह खाती थी। पहले अनिकेत कुछ भी खरीद कर नहीं लाता था, पर अब ऑफिस से लौटते वक्त वह मिठाई का डब्बा ज़रूर लेकर आता। यह सब परिवार वाले घूर-घूर कर देखते, मगर कोई कुछ कहता नहीं। अनिकेत को बहुत संकोच होता था, वह छुप-छुपकर दबे पाँव भीतर आता था। भगवान का प्रसाद अगर मीठा हो तो बस चखता था, मगर धीरे-धीरे वह भी मीठोरा बन गया। अब अकेले रूप ही नहीं, खाने के बाद अनिकेत भी मीठा खाने लगा, माँ को बहुत हंसी आती थी। वह तिरछी निगाहों से अनिकेत को देखती तो अनिकेत झेप जाता।

सारे घर में बस एक रूप की ही आवाज़ गूंजती रहती। कभी कुछ तनाव भी हो जाता, तो आधे घंटे के भीतर वह वापस गुनगुनाने लगती। धीरे धीरे सभी को उसकी आदत हो गई। उसकी इस मासूमियत ने सभी को मजबूर कर दिया और फिर घर पहले जैसा नहीं रहा।

एक रोज अनिकेत बुलेट खरीद कर लाया और मां को पूजा करने को कहा। जैसे ही पूजा खत्म हुई, रूप ने अपना मोबाइल में वीडियो शूट ऑप्शन स्टार्ट करके मां को पकड़ाया और कहां मां वीडियो बनाइए और कूदकर बुलेट में बैठ गई। अभी तक अनिकेत इतना भी चंचल नहीं हुआ था कि मोहल्ले में झूमता फिरे, उसने रूप से उतरने को कहा। मगर रूप नहीं मानी। उसने कहा आप स्टार्ट करो, अनिकेत ने कहा नहीं बाद में। मगर रूप की ज़िद के आगे उसे स्टार्ट करना ही पड़ा। रूप इतने में ही कहां मानने वाली थी, उसने अनिकेत को गुदगुदी लगाते हुए बुलेट लहराने को कहा। साथ ही गाना शुरु कर दिया, ‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना। ओड्लई इड्लई ओहू,ओड्लई ऊड्लई हू ओड्लई ओडलै ओहू। हहा हहाहा ओड्लई ओडलई ,ओहू….’

एसा समा बंधा कि अनिकेत भी गााने लगा, ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना ओड्लई ओड्लई ओहू,ओड्लई ओड्लई हू ओड्लई ओडलै ओहू हहा हहाहा…’

पूरी फैमिली इन दोनों के साथ पागलों जैसे हंसे जा रही थी, ‘ओड्लई ओडलै ओहूू ओड्लई ओडलै हूू ,हहह हा,हा,हा,हा, हा हा हा हा हा हा हा…’  सभी बदल चुके थे क्योंकि समय की पाबंदी, अनुशासन में बिना तब्दीली के सब करीब आ चुके थे, कोई तनाव नहीं, हल्का फुल्का माहौल और ढेर सारी खुशी।

जब दो दिन के लिए रूप मायके गई, तो अनिकेत ही नहीं पूरा ससुराल का ससुराल अगले ही दिन उसे वापस लाने मायके पहुँच गया। रूप के माँ, बाबा की खुशी का ठिकाना नहीं था। ससुर जी ने रूप के सिर पर हाथ रखा और कहा, “सच में बेटा, तेरे आने से न केवल अनिकेत बल्कि पूरा परिवार ही बदल गया। तू एसे ही हंसाते रहना, थैंक यू बेटा।”

दोस्तों, जब तक जीवन है तब तक कोई ना कोई मुश्किलें आती रहेंगी। इन्ही में से कुछ लम्हे चुरा के मुस्करा लो। कोई भी कभी पूरा पर्फेक्ट नहीं होता, ऐसे ही कबूल करो और अपना लो।

हा हा हा! एक बार मुस्कुरा दो यार!

मूल चित्र : Canva

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