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साँसों का खेल : ज़िंदगी की एक ज़रूरी कड़ी, जो जीवन को प्रवाहित करती है

ज़िन्दगी साँसों की मझदार में चलती हुई  एक नाव के समान है, जो कभी भी डूब सकती है, जीवन में सारा खेल साँसों पर ही निर्भर करता है। 

ज़िन्दगी साँसों की मझदार में चलती हुई  एक नाव के समान है, जो कभी भी डूब सकती है, जीवन में सारा खेल साँसों पर ही निर्भर करता है। 

दुनिया में आने से लेकर जाने तक ,

बिना रुके बिना थमे ,

अंत तक चलती हैं ये धड़कनें ,

वक्त के रफ्तार को बयां करती है ये धड़कनें।

हर आने वाली श्वास , 

एक नई ऊर्जा प्रदान कर ,

प्राण का निर्माण कर रही है ,

हर बाहर जाने वाली श्वास ,

दे एक विराम ,

शरीर को दे रही है एक गहरा विश्राम।

जब कभी यह जी घबराए ,

मन विचलित होता जाए ,

तो एक गहरी लंबी श्वास ,

भर अपने सीने में आत्मविश्वास की ,

और सब चिंता और परेशानी को ,

कर अलविदा साथ जाते हुए श्वास के।  

कभी घुट घुटकर जीना नहीं ,

जीते हुए साँसों का बंधन तोड़ना नहीं ,

मौत तो सबके दरवाजे पर दस्तक देगी एक दिन ,

पर मौत से ही पहले मरना नहीं।

जान ले मान ले !

ये साँसों का खेल है सारा ,

जी भर के खेल ले यारा ,

दे अपने हौसले को सहारा ,

जब तक ज़िंदगी को ना मिलता किनारा ,

जब तक चलता साँसों का यह फवारा।

मूल चित्र : Unsplash

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Rashmi Jain

Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild Again' and 'Alfaaz - Chand shabdon ki gahrai' Rashmi Jain is an explorer by heart who has started on a voyage read more...

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