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क्यों एक तरफा तराज़ू नहीं बतलाता सही भाव है!

जहां इंसाफ का तराज़ू हमेशा एक तरफ झुका रहता है, उस समाज में कोई तरक्की, कोई समानता, कोई बदलाव आना नामुमकिन हैं, ऐसा समाज इंसानियत का दुश्मन है! 

जहां इंसाफ का तराज़ू हमेशा एक तरफ झुका रहता है, उस समाज में कोई तरक्की, कोई समानता, कोई बदलाव आना नामुमकिन हैं, ऐसा समाज इंसानियत का दुश्मन है! 

कैसा है यह एक तरफा तराज़ू  

झुके है देखकर के भारी बाजू 

यहां आँसू का है कोई मोल नहीं 

पैसे से बढ़कर कोई तोल नहीं 

यहां रुपैया मुंह खोलकर है बोल रहा 

और भरोसा सहमा सा है डोल रहा 

नज़रें टिकी हैं तराज़ू के कांटे पर 

कभी तो इंसाफ कर सही ओर झुके 

यहाँ धर्म के नाम पर लूट मार है 

बिकती इंसानियत भी तो कूड़े के भाव है 

कैसा यह जात-पात का भेदभाव है 

क्यों नहीं आता बदलाव है 

क्या परखना चाहता है तू 

किसे आज़माना चाहता है तू 

किसी की कमज़ोरी को बतला  

किसी की कमियों को ढूंढ

बन खुद ही सरकार 

लिए नोटों का भंडार 

नज़रों के तराज़ू में ना तोल  

यह जीवन का आधार 

सच्चाई देखकर अनदेखा ना कर 

इंसान है इंसान की परवाह कर 

कहीं ऐसा ना हो 

दूसरे को परखते परखते 

जाए स्वयं को भूल 

वक्त रहते संभल 

नहीं तो कल आने वाली पीढ़ी भी 

पूछेगी यही सवाल है 

क्यों नहीं बतलाता तराज़ू सही भाव है

क्यों नहीं बतलाता तराज़ू सही भाव है।

मूल चित्र : Canva 

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Rashmi Jain

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