तो नए साल से मिली इसी ढांढस की बंधी हुई पोटली खोलिए और निकाल लीजिए पिछले बरस के फटे, पुराने, उधड़े और बेरंग सपने और कीजिए उनकी छंटाई, रंगाई!
तो नए साल से मिली इसी ढांढस की बंधी हुई पोटली खोलिए और निकाल लीजिए पिछले बरस के फटे, पुराने, उधड़े और बेरंग सपने और कीजिए उनकी छंटाई, रंगाई!
जनवरी 2020 यानी नया साल आ चुका है!
वैसे हर बार की तरह यह ‘नया साल’ जब भी आता है तब अपने साथ नई उम्मीदें और आशाएं लेकर आता है और हमारे भीतर दम तोड़ती ख्वाहिशों में फिर से प्राण फूंक जाता है!
देखा जाए तो इस नए साल में नया कुछ भी होता नहीं है! बस वही हाल, वही चाल, वही दुश्वारियां, वही लाचारियां, वही विवाद, वही संवाद, वही जिम्मेदारियां, वही नादानियां, वही त्यौहार, वही गीत, वही पकवान, वही अनुष्ठान, वही आसक्तियां, वही आपत्तियां, वही नज़रिया, वही खबरिया, वही दिन, वही रात, वही महीने, वही हफ्ते, वही घड़ियाँ और तो और वही तारीखें !
कुछ भी तो नहीं बदलता न!
लेकिन शायद एक चीज़ है जो बदलती है और वो है इस ‘वही’ को बदलने की चाह और जज़्बा ! वो चाह जो बीते साल में किसी विपरीत परिस्थितियों के चलते हमारे भीतर दम तोड़ गई थी!
हर 31 दिसंबर की रात नए साल के आगमन का शुभ समाचार देती घड़ी की सूईंयां जब 12:00 को पार कर जाती हैं तो चाहे-अनचाहे ही हमारे दिल की धड़कनों को बढ़ाकर हमारे भीतर एक ऐसा उत्साह और जोश भर जाती हैं जो हमें सब कुछ नए सिरे से शुरू कर पूरा करने का ढांढस बंधाता है!
तो नए साल से मिली इसी ढांढस की बंधी हुई पोटली खोलिए और निकाल लीजिए पिछले बरस के फटे, पुराने, उधड़े और बेरंग सपने और कीजिए उनकी छंटाई, रंगाई, तुरपाई और रफू ताकि उन्हें देखकर मायूस और निराश जीवन फिर से मुस्कुराने लगे!
नाउम्मीदियों के इस दौर में,
उम्मीदों भरा ख्याल मुबारक!
ख्वाहिशें जो दम तोड़ गई,
फिर से उनके ख्वाब मुबारक!
पहुंच न सके जहां वक्त के चलते,
उन लक्ष्यों की राह मुबारक!
बदलते रिश्तों के इस दौर में
मिले जो नए वो अपने मुबारक!
हाल-चाल तो क्या बदलेगा,
फिर भी हो नया साल मुबारक!
मूल चित्र : Canva