कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

होली के असली रंग सिर्फ़ अपनों के संग

अपने परिवार को छोड़ना एक बेटी के लिए कितना मुश्किल होता है! ये वही जान सकता है जिसके बेटी हो, लेकिन प्रिया की ससुराल में न तो ननद है ना ही कोई बुआ।

Tags:

अपने परिवार को छोड़ना एक बेटी के लिए कितना मुश्किल होता है! ये वही जान सकता है जिसके बेटी हो, लेकिन प्रिया की ससुराल में न तो ननद है ना ही कोई बुआ।

आज प्रिया की शादी को 22 साल हो गए है। अपने परिवार को छोड़ना एक बेटी के लिए कितना मुश्किल होता है! ये वही जान सकता है जिसके बेटी हो लेकिन प्रिया की ससुराल में न तो ननद है ना ही कोई बुआ तो उसके ससुराल में बेटी का दर्द कभी नहीं समझा गया।

सास तो मायके जाने से मना करती, साथ ही साथ ससुर और देवर भी बोल पड़ते, “क्या करोगी मायके जाकर?” सुमित, प्रिया के पति, का भी यही कहना था, “जब तुम्हें सब सुख-सुविधा है तो फिर मायके किस लिए जाना।” हर बार ऐसा ही होता रिया किसी भी तीज-त्यौहार पर अपने मायके नहीं जा पाई।

रिया को बचपन से ही होली काफी पसंद थी। रंग-बिरंगे रंगों से खेलना उसे अच्छा लगता था। रिया की दिली तमन्ना थी कि वो होली अपने मायके में खेल सके लेकिन रिया किसी भी होली पर अपने घर न जा सकी। उसे अपने मायके की होली बहुत याद आती।

कैसे पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो कर लकड़ियों को जमा करता, बड़गुल्ले की मालाएं बनाई जाती, चांद, सितारे, सूरज के आकार वाली। शाम को सब घर के सदस्यों के साथ होली की पूजा अर्चना करते और फिर पंडित जी आकर होली मंगलाते थे। अगले दिन सुबह से ही बच्चों के साथ रंग खेलना, मोहल्ले के कोई भी घर न छोड़ना, सब घर घर जाकर होली खेलना, सब सहेलियों को रंग लगाना, मिठाई खाना, इस दिन मम्मी के हाथ से बनी स्पेशल गुजिया जो रिया को बहुत पसंद थी। सब याद आ जाती थी लेकिन अब यह सब मन ने ही रह गया था।

रिया की बेटी जो 20 साल की है और मेडिकल की तैयारी करने के लिए जयपुर गयी थी। छुट्टी न मिलने के कारण होली पर वह घर नहीं आ सकी तो आज पहली बार सास ससुर, पति और देवर को अहसास हुआ कि त्योहारों की जान तो घर की बेटी होती है। यदि वो ही न हो तो कोई भी त्यौहार फीका लगता है।

आज प्रिया भी यही सोच रही है कि अब तो मुझे आदत डाल लेनी चाहिए अब तो मेरी खुद की बेटी पढ़ाई के कारण और बाद में ससुराल वालों के कारण अपने घर नहीं आ पाएगी।

प्रिया सोच ही रही थी कि उसकी सास ने कहा, “बहु आज हम सबको तुम्हारे दुःख का एहसास हो गया है। आज हमारी पोती होली पर घर नहीं आई तो हमें कितना दुःख हो रहा है। उसी तरह तुम्हारे परिवार वाले भी हर साल तुम्हारा इंतजार करते होंगे। प्रिया बहू इस बार तुम अपने मायके वालों के साथ होली खेलो। सच कहा है… होली के रंग तो अपनो के संग है।”

अब प्रिया अपनी सास के गले लगकर रोने लगी और बोली, “आज आपको पता चला कि एक बेटी का सुख दुःख उसके परिवार के साथ होता है। आज से मेरी भी होली के रंग अपनों के संग ही सजेगी।”

मूल चित्र : Pexels  

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

90 Posts | 613,323 Views
All Categories