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मालती चौधरी : गांधी की तूफानी और टैगौर की मिनु

मालती चौधरी भारत की पहली महिला मार्क्सिस्ट लीडर्स में से एक थीं जिन्होंने राजनीति से अलग रहते सामाजिक एक्टिविस्ट के तरह काम करना तय किया।

मालती चौधरी भारत की पहली महिला मार्क्सिस्ट लीडर्स में से एक थीं जिन्होंने राजनीति से अलग रहते सामाजिक एक्टिविस्ट के तरह काम करना तय किया।

महात्मा गांधी की ‘तूफानी’ और रविन्द्र नाथ टैगौर की प्रिय ‘मिनु’, मालती चौधरी शांति निकेतन के अपने छात्र-जीवन में ही अपने बर्हिर्मुखी व्यक्तित्व का परिचय दे चुकी थीं। गुरुदेव की नृत्य-नाटिकाओं तथा संगीत सभाओं में सक्रिय रहने वाली मालती चौधरी का जन्म 1904 को एक कुलीन बह्मसमाजी परिवार बैरिस्टर कुमुदनाथ सेन के यहां हुआ, जो मालती के दाई वर्ष के उम्र में ही गुजर गए। मालती का लालन-पालन मां स्नेहलता सेन ने किया।

मालती के नाना बिहारी लाल गुप्त आई.सी.एस. अधिकारी थे। मालती के चचेरे भाई पश्चिम बंगाल सचिव रहे, तो भाई इंद्रजीत गुप्त प्रख्यात सांसद्विद एंव भूतपूर्व गृहमंत्री रहे। बड़े भाई पी.के.सेन आयकर आयुक्त रहे तो दूसरे भाई पोस्टमास्टर जनरल, भारतीय डाक सेवा में थे। अपने परिवार में सबसे छोटी मालती की मां स्नेहलता भी लेखिका थीं। उन्होंने टैगौर की कई कृतियों का अनुवाद किया, जो उनकी किताब ‘जुगलबंदी’ में प्रकाशित है।

सोलह वर्ष के आयु में मालती शांतिनिकेतन आई और छह वर्ष तक वहां रहीं। गुरुदेव के व्यक्तित्व, उनकी शिक्षा, उनकी देशभक्ति और आदर्शवादिता ने मालती के जीवन पर उम्रभर प्रभाव रखा। यहां वो महात्मा गांधी के संपर्क में भी आईं आईं। उद्दाम साहस, विशुद्ध गतिशीलता तथा दमित और वंचित लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने का तीव्र उत्साह उनको गांधीजी से सिखने को मिला।

मालती जिन दिनों शांतिनिकेतन में थी उन्हीं दिनों गांधीजी के निर्देश से नवकृष्ण चौधरी अध्ययन के लिए वहां आए थे। 1927 में नवकृष्ण चौधरी से मालती का विवाह तय हुआ और मालती शांतिनिकेतन से उड़ीसा मालती चौधरी बनकर आईं। उड़ीसा के छोटे से गांव अनखिया में दोनों रहने लगे और गांव के विकास और सशक्तिकरण के लिए कार्य करने लगे।

नमक-सत्याग्रह शुरू होते ही दोनों इस लड़ाई में कूद पड़े। जेल गए और जेल में ही जेल बंदियों को पढ़ाने का काम करने लगे। 1933 में दोनों ने मिलकर भारतीय कांग्रेस समाजवादी दल की उड़ीसा प्रातीय शाखा का गठन किया।

स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा के सदस्या के रूप में मालती चौधरी ने ग्राम विकास के लिए प्रौढ़ शिक्षा की भीमिका पर अधिक बल दिया। 1951 में नवकृष्ण चौधरी उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने, तब मालती अनुसूचित जातियों और आदिम जातियों के लिए काम कर रही थीं। उन्होंने राजनीति से अलग रहते सामाजिक एक्टिविस्ट के तरह काम करना तय किया।

भारत सरकार से कई सम्मान प्राप्त कर चुकी मालती देवी के गतिशील व्यक्ति को केवल बाजी राउत छात्रावास, उत्कल नवजीवन मंडल या अंगुल के समीप चंपातिमुंडा के उत्तर बुनियादी स्कूल के स्थापना से नहीं समझा जा सकता है। वह विनोबा के भू-दान आंदोलन में भी सक्रिय रहीं और आपातकाल के दौरान सरकारी नीतियों का विरोध करने के कारण जेल में भी डाल दी गयीं।

93 वर्ष में गाथा पूर्ण जीवन जीने के बाद उनका निधन 15 मार्च 1998 को हुआ। मालती चौधरी वह महिला थीं, जो महात्मा गांधी को भी गलत होने पर स्पष्ट शब्दों में कह देती थीं, “बापू आपने सही नहीं किया।” और महात्मा गांधी उनसे क्षमा मागने के लिए हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे।

मूल चित्र : Wikipedia 

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