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इन गर्मियों की छुट्टियों में आप जी छोटा मत करो, उदास मत हो, आपकी बेटी आपके नातिन के साथ, सब ठीक होने पर आपको मिलने ज़रूर आयेगी।
“सुनो, सुधा की माँ…समझ रही हो तुम? सुधा बेटी इस बार घर नहीं आ रही?” सुधाकर जी ने अपनी पत्नी कांता से कहा।
“क्यों क्या हुआ जी?” कांता जी ने रसोई से ही कहा।
“दामाद जी का फ़ोन आया था… बोल रहे थे कि इस कोरोना ने तो सारे प्रोग्राम पर ही पानी फेर दिया है। हम लॉक डाउन के खुलने पर दिल्ली से चलने वाले थे। एक सप्ताह वही आपके पास जयपुर रहते लेकिन पूरे देश में बढ़ते कोरोना के कारण हम नहीं आ रहे। सरकार ने अभी भी सभी ट्रेन्स और बसों की आवाजाही को बंद रखा है। ये लॉकडाउन तो पता नहीं कब खुलेगा।”
“लो जी, इस बार भी हम बच्चों नही मिल पायेंगे”, कांता ने उदास होकर कहा।
“तुम परेशान मत हो, जब भी हालात सामान्य हो जायेंगे तो हम दिल्ली चलेंगे। 2 दिन बेटी के घर रह सकते हैं। वो भी क्या करे हम सब की सुरक्षा हमारे हाथ ही है। यदि हम सबको इस वायरस से बचना है तो सावधानी तो बरतनी होगी।”
“सही कहा आपने… लेकिन कोई बात नहीं। वहाँ भी तो वो अपने ही घर में है”, कांता जी ने सुधाकर जी से कहा।
“लेकिन कांता, जब सुधा आ जाती है तो घर में रौनक आ जाती है। उसके बच्चों के साथ समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। हमारे दो बेटे और उनका परिवार भी हैं लेकिन उनके पास तो हमारे लिये समय ही नहीं है, वो तो अपने मे ही मग्न रहते है। हमारे बेटे हमारे पास होकर भी हमसे कितने दूर है।” सुधाकर जी ने उदास होकर कहा।
“आप भी न कैसे हो, अब तक मुझे समझा रहे थे और अब? आप जी छोटा मत करो, उदास मत होइए। हमारी बेटी हमारे पास अभी नहीं तो फिर कभी, सब ठीक होने पर, बच्चों के साथ जरूर आ जायेगी। तब तक हम दोनों मिलकर एक दूसरे का सहारा बनते हैं और इस कोरोना वायरस से लड़ते हैं। देख लेना एक दिन हम सब मिलकर इसको हरा देंगे। तब हमारी बेटी भी हमारे पास आ जायेगी”, कांताजी ने मुस्कुराते हुए अपने पति से कहा।
दोस्तों आप सब भी सुधा के तरह अपने शहर और अपने घरों में रहिये और सुरक्षित रहो।
मूल चित्र : Canva
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