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क्यों ना आज से अपने बेटों को बेटियों की बराबरी करना सीखाएं? 

बेटे और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाएं और सिखाएं काम काम होता है, क्या लड़की वाले काम, क्या लड़के वाले काम, अब समय बदल रहा है, सोच भी बदलनी चाहिए।

बेटे और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाएं और सिखाएं काम काम होता है, क्या लड़की वाले काम, क्या लड़के वाले काम, अब समय बदल रहा है, सोच भी बदलनी चाहिए।

रमा के एक बेटा रमेश और बेटी परी थी। उसने कभी उन दोनों में फ़र्क नहीं समझा था, दोनों को ही बराबरी की सीख दी थी उसने।

उसका बेटा भी घर के कामों में उसकी उतनी ही मदद करता था जितना उसकी बेटी बाहर के कामों में। पर रमा की सहेली को उसका अपने बेटे से घर के काम करवाना भाता नहीं था क्यूंकि उसने अपने बेटे को ऐसी शिक्षा नहीं दी थी और अब उसका बेटा बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था कि कोई उसे घर के कामों में मदद करने को भी कहे।

वह साफ़ कह देता था, “ये भी कोई लड़कों वाले काम है, ये तो लड़कियों के काम है, खाना बनाना, घर साफ रखना। मैं नहीं करूँगा।”

ये ही वो संस्कार होते है जो बेटा हो या बेटी हो, बचपन से सिखाये जाते है। आप सोचो कि हम सीख कुछ और दे और फल कुछ और मिले ये तो संभव ही नहीं है। इस छोटी सी घटना से सीख मिलती है हमें बेटे और बेटी को बराबरी का महत्व समझाने की।

अगर एक लड़के के भी घर के काम किए है तो वो कभी कम नहीं आंकेगा घर के काम करने वालों के महत्व को। वो जनता होगा कि कितना मुश्किल होता है मल्टी टास्किंग करना, देखने में शायद आसान लगे पर जब करने जाओ तो ही समझ सकते हो कि एक होम मेकर बन कर घर पर रहना इतना भी आसान नहीं है।

आज के समय में तो यह समझना और भी ज़रूरी हो जाता है, जब औरतें भी घर के बाहर जाकर काम करती है और घर भी संभालती है, अगर पति भी घर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझ कर उसका हाथ बँटाता है वो पत्नी का उत्साह सच में दोगुना हो जाता है।

तो बिल्कुल बेटे और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाये और सिखाएं काम काम होता है, क्या लड़की वाले काम, क्या लड़के वाले काम, अब समय बदल रहा है, सोच भी बदलनी चाहिए। ये जिम्मेदारी माता पिता की है, कैसा बीज़ बोना है बचपन से ही, ये उन पर ही निर्भर करता है। अगर शुरू से ही बराबरी का बोध कराया जाएगा तो सवाल ही नहीं उठता कि आगे जाकर वो असंवेदनशील हो जाए।

शुरुवात घर से ही होती है, अगर एक भाई अपनी बहन को बराबर समझता है, अगर एक पति अपनी पत्नी को, तो बाहर वो ऑफिस में या किसी और कार्य जगत में महिलाओं के साथ नाइंसाफ़ी नहीं करेगा।

इसमें कोई बुराई नहीं है कि एक पति अपनी पत्नी की घर के कामों में मदद कर रहा है, बहुत से घरों में तो घर की दूसरी औरतों द्वारा ही रोक जाता है पुरुष को कि हमारे रहते हुए आप क्यूं काम करोगे?

ऐसी सोच होगी तो कहां बदलाव आएगा?

अगर आप अपने दामाद के अपनी बेटी के मदद करने पर खुश हो सकते है तो अपने बेटे के अपनी पत्नी के मदद करने पर गर्व महसूस करे। तभी बराबरी की दुनिया बन पाएगी।

मूल चित्र : Canva

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Deepika Mishra

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