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क्यों बहु को बेटी बोलना आसान है, लेकिन उसको बेटी बनाना मुश्किल?

हमारे समाज में आज सभी ससुराल वाले यही कहते हैं कि हम बहु को बेटी की तरह रखते हैं, फिर क्यों कदम-कदम पर उन्हें ये एहसास दिलाया जाता है कि तुम बेटी नहीं बहु हो।

हमारे समाज में आज सभी ससुराल वाले यही कहते हैं कि हम बहु को बेटी की तरह रखते हैं, फिर क्यों कदम-कदम पर उन्हें ये एहसास दिलाया जाता है कि तुम बेटी नहीं बहु हो।

विदाई के समय प्रिया को गले लगाते हुए माँ ने कहा, “आज से तेरे सास-ससुर ही तेरे माँ-बाप हैं।”

तभी सरिता जी बोलती हैं, “चिंता न करो समधन जी बहू नहीं बेटी ले जा रहे हैं।”

प्रिया का ससुराल में पहला दिन था। वह सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर तैयार हो गई। बहु को देखने के लिए अभी रिश्तेदारों का आना-जाना चल ही रहा था कि प्रिया की सास सरिता जी कमरे में आती हैं, “अरे! यह क्या बहु! तुम तो ऐसे ही बैठी हो बिना घूंघट के। नई-नई शादी हुई है सबको ऐसे ही मुँह दिखाती फिरोगी क्या? चलो घूंघट कर लो।”

प्रिया को पहले ही दिन अपनी सास सरिता जी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद न थी। शादी के पहले फोन पर जब भी बात होती थी तो हमेशा यही कहती थी रिया की तरह तुम भी हमारी बेटी हो बेटी की तरह रखेंगे, फिर ये क्या?

प्रिया ने सोचा शायद अभी रिश्तेदारों का आना-जाना है इसलिए ऐसा कह रही हों। प्रिया ने उनकी बातों को दिल से नहीं लगाया और लंबा घूंघट करके बैठ गई।

मेहमानों के जाने के बाद भी सरिता जी हमेशा प्रिया को ससुर जी के सामने भी घूंघट करने के लिए टोकती रहतीं। एक दिन सरिता जी और प्रिया साथ में खाना खा रही थी प्रिया को रोटी चाहिये थी, घर में कोई और था भी नहीं तो प्रिया ने सोचा खुद ही रोटी उठा ले। प्रिया ने जैसे ही हाथ बढ़ाया सरिता जी जोर से चिल्लाईं, “अरे! पूरे रोटियों को जूठी कर दोगी क्या? बहुओं का जूठा छुआ ससुर जी नहीं खाते, तुम्हे नहीं पता क्या?”

सरिता जी की आवाज में इतना तीखापन था कि बेचारी प्रिया की भूख ही मर गई। सरिता जी हमेशा किसी न किसी बात पर प्रिया को टोकती रहती थीं, “बहु ये मत करो, बहु वो मत करो।” प्रिया हमेशा सोचती कि अब मैं और नहींं सुन सकती, लेकिन परिवार में शांति बनाये रखने के लिये वो कभी सरिता जी को पलट कर जवाब नहीं देती।

हमेशा हँसमुख और चंचल रहने वाली प्रिया गुमसुम रहने लगी, ससुराल में उसे घुटन सी होने लगी। प्रिया के मायके से जब भी कोई मिलने आता सरिता जी सबसे यही बोलती फिरती कि प्रिया तो हमारी बेटी है और हम उसके माँ-बाप, बिल्कुल बेटी की तरह रखते हैं।

एक दिन प्रिया और उसकी ननद रिया किसी बात को लेकर जोर जोर से हँस रही थी, तभी सरिता जी गुस्से से बोलीं, “बहुएं इतनी जोर से हंसती हैं क्या? पड़ोसी भी सोच रहे होंगे इनकी बहु तो जोर जोर से हंसती है, जोर जोर से बोलती है। तुम्हारे माँ-बाप ने कोई संस्कार नहीं सिखाएं क्या?”

माँ-बाप के संस्कार पर सवाल उठाने पर प्रिया से रहा न गया वह बोल उठी, “मांजी, आज आप मुझे बता दीजिये कि मुझे यहाँ बेटी की तरह रहना है या बहु की तरह। एक ओर तो आप सबसे यही बोलती फिरती हैं कि प्रिया को हम बेटी की तरह रखते हैं तो क्या बेटियां हमेशा घर में घूंघट में रहती हैं? बेटियों का छूआ भोजन कोई पिता नहींं खाता क्या? बेटियां अपने घर में जोर जोर से हँस बोल नहीं सकती क्या? सिर्फ कह देने से बहु बेटी नहीं बन जाती, अपने व्यवहार और सोच में भी उसे बेटी की तरह ही प्यार और स्वतन्त्रता देनी पड़ती है।”

सरिता जी के पास प्रिया के सवालों का कोई जवाब नहीं था। वो चुपचाप अपने कमरे में चली गयीं।

दोस्तों, मैं इस कहानी के माध्यम से यही बताना चाहती हूं कि हमारे समाज में आज सभी ससुराल वाले यही कहते हैं कि हम बहु को बेटी की तरह रखते हैं, फिर क्यों कदम-कदम पर उन्हें ये एहसास दिलाया जाता है कि तुम बेटी नहीं बहु हो। सिर्फ बहुओं से ही ये अपेक्षा की जाती है कि वह सास-ससुर को माँ-बाप की तरह प्यार और सम्मान दें और जो लड़की अपने माँ-बाप भाई-बहन को छोड़कर आती है, वह ससुराल में सभी को अपने परिवार की तरह मान भी लेती है। पर क्या ससुराल में उसे बेटी की तरह माना जाता है? उसे बेटी की तरह पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने, हँसने-बोलने की आजादी दी जाती है?

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मूल चित्र : Canva

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Babita Kushwaha

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