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शादी के बाद, मेरी नींद गायब हो गयी। कभी रस्मों के नाम पर, कभी मेहमानों के आने जाने को लेकर हमेशा नींद की क़ुरबानी देनी पड़ती थी। लेकिन यह सब मुझे ही महसूस होता था, मेरे ससुरालवालों को नहीं।
दोस्तों आपने सुना और पढ़ा होगा कि नींद हमारे दिमाग और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कितनी आवश्यक है। कम से कम 6-8 घंटे की नींद लेना अति उत्तम माना जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। आप कहोगे ये तो हमारे साथ भी हुआ है। इसमें कौन सी नई बात है। मेरे लिए तो यह लाइफ चेंजिंग पांइट है।
जब मैं कुँवारी थी, कुंभकर्ण को भी मात देती थी। वो तो 6 महीने सोता था, मैं तो जब चाहा सो जाती थी। कोई टाइम फिक्स नहीं था। जब तक स्कूल जाते थे, तो मन मारकर सुबह जल्दी उठना ही पड़ता क्योकि लेट हो गए तो स्कूल में प्रिंसिपल मैडम की डांट सुननी पड़ती थी। लेकिन जब कॉलेज में आ गए और कॉलेज का टाइम सुबह 9 बजे होता था, तो मम्मी 7 बजे उठाना शुरू कर देती और मैं आलसी 8 बजे उठकर तैयार होकर कॉलेज पहुंच जाती। फिर आते ही कॉलेज से खाना खाकर दोपहर के समय 2 बजे से 5 बजे तक सोना और रात को 10 बजते ही अपने तकिये में मुँह डालकर सोना, सुबह 8 बजे तक सोना। मस्त होकर सोती थी।
मेरी मम्मी कभी कभी तो बहुत गुस्सा हो जाती। मम्मी कहती, “जब शादी हो जाएगी तब कैसे उठेगी महारानी? जब सास जोर जोर से चिल्लाएगी, तेरे दरवाजे को बजायेगी, तब देखना। तेरी यह नींद कैसे उड़ जाती है। तुझे ससुराल जाकर ही पता चलेगा कि नींद क्या होती है। फ़िर तो तू दिन रात की नींद भूल ही जाना। सो ले जितना सोना अभी, बाद में तो तू सोने को तरस जाएगी।” यह बिल्कुल सच भी हो गया।
शादी के बाद, दूसरे दिन से ही तारे दिन में दिखाई देने लगे। मेरी नींद गायब हो गयी। कभी रस्मों के नाम पर, कभी मेहमानों के आने जाने को लेकर और तो और अपने पति महाशय के साथ समय बिताने को लेकर, बार-बार आंखों में सोना ही सोना छाया रहता रहा। लेकिन यह सब मुझे ही महसूस होता था, मेरे ससुरालवालों को नहीं। सोचा था कि कुछ समय के बाद सब ठीक ही जायेगा, लेकिन देखो मेरी किस्मत, बज गयी खतरे की घंटी।
हां जी, बिल्कुल सही समझा। मैं माँ बनने वाली थी। प्रेंग्नेंसी में क्या हाल होता है? मन में हलचल, बाहर भी हलचल, लेकिन नींद का नामोनिशान नहीं था। शुरू और लास्ट के महीने में तो कैसे जागरण करते हुए रात काटी है, ये तो मुझे ही पता है। जब आपके पास सोया हुआ कुम्भकर्ण खर्राटे ले तो आप क्या करोगे, वही हाल था मेरा भी।
मेरी गुड़िया के आने के बाद से अब तक तो सोना नसीब ही नहीं हुआ है। उसके साथ रात को बार-बार उठना, डायपर बदलना, दूध पिलाना और थोड़ा बड़े होने पर बार-बार दूध देना। कभी-कभी पतिदेव को दया आ जाये तो गुड़िया को सुला देते, लेकिन उन्हें सुबह आफिस जाना होता। इस कारण मैं उन्हें मना कर देती, लेकिन दोपहर में भी सोना कहाँ मिलता। उसके पालने में ही 3 साल बीत गए। अब मैं दोबारा माँ बन गई। अब अपने दोनों बच्चों के साथ समय पता ही नहीं चलता। कब सुबह, कब शाम हुई, रात को कभी-कभी गन्नू को सुलाते सुलाते खुद सो जाती हूं।
अब तो यह आलम है कि अब तो जब भी मेरे पतिदेव कहते कि चलो बच्चों को घुमा लाएं, पार्क ले जाएं, मैं कहती हूँ, “आप दोनों को ले जाओ, मैं काम कर लूंगी।”
उनके जाने के बाद काम वाम तो क्या, बस मेरी कोशिश अपनी नींद को पूरा करने की होती है। लेकिन हाय रे! मेरी किस्मत, सोना मेरे नसीब में नहीं। इस समय कोई न कोई बिन बुलाये मेहमान आ जाते हैं या मेरे किसी जान पहचान वाले का फ़ोन। जब से माँ बनी हूँ, तब से अपनी नींद को तरस गयी हूं।
अब तो मेरी यही दुआ रहती है कि मैं अपने मायके कब जाउंगी और वहां जाकर ही अपनी कुंभकर्णी नींद ले पाऊंगी। फिर मेरी मम्मी मुझसे बड़े प्यार से कहती है, “आ गयी मेरी लाडो, अपनी बरसों की नींद को पूरा करने?” और मेेरे घर के सभी सदस्य मेरी इस कमजोरी को अच्छे से जानते हैं कि मैं अपनी सोने को कितना चाहती हूं। वहां मुझे और मेरी नींद को कोई डिस्टर्ब नहीं करता।
मायके जाकर ही मिलती है मुझे चैन की नींद।
दोस्तो आप अपनी नींद की भरपाई कैसे करते हो? या मेरी तरह आप भी मायके जाकर ही अपनी नींद का कोटा पूरा करते हो। आप सब भी अपनी राय जरूर देना।
मूल चित्र : Liggi (Ritviz), Youtube
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