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अगर है हमें प्यार चुनने का हक़, तो समाज की ये बंदिशें क्यों?

प्यार रूह से किया जाए तो प्यार कहलाता, गर जिस्म से हो जाए तो समाज बीच में आ जाता? जिंदगी जीने और प्यार चुनने का हक है तो यह समाज बंदिशें क्यूं लगता?

प्यार रूह से किया जाए तो प्यार कहलाता, गर जिस्म से हो जाए तो समाज बीच में आ जाता? जिंदगी जीने और प्यार चुनने का हक है तो यह समाज बंदिशें क्यूं लगता?

प्यार रूह से किया जाए तो प्यार कहलाता,
गर जिस्म से हो जाए तो समाज बीच में आ जाता?
जिंदगी जीने और प्यार चुनने का हक है गर हमें,
तो यह समाज जाति प्रकृति की बंदिशें क्यूं लगता?

माना सोच थोड़ी अलग है और जिंदगी जीने का
नजरिया भी,
पर उनकी पसंद नापसंद पर अपनी सहमति की
मोहर लगाए
यह भी तो उचित नहीं!

मिले कई अधिकार उन्हें मौलिक अधिकारों के नाम
पर,
पर प्यार चुनने का हक नहीं उन्हें समाज के नाम पर,
देते अछूत का दर्जा उन्हें समलैंगिकता के नाम पर,
बेरहमी से मार भी डालते उन्हें समाज मर्यादा के नाम
पर?

इंसानियत का सार है उनमें और इश्क़ का मर्म भी,
समान्य की तरह कम से कम दरिंदगी वो फैलाते तो
नहीं,
भले ही अलग है वो हमसे और सामान्य जिंदगी का
हिस्सा नहीं,
पर जुड़ नहीं सकते वो समाज से उनके साथ इंसाफी
भी तो नहीं।

जोड़ कर देखो उन्हें समाज से मुख्यधारा में यह खुद
आएगा,
गिराकर गंदी सोच की दीवार को यही साथ में हमारे
नया समाज बनाएगा!

नोट : जून प्राइड मंथ है, और हम इसे चिह्नित करने के लिए लेखों की एक श्रृंखला रख रहे हैं, जिसमें एलजीबीटीक्यूए + समुदाय और उनके सहयोगियों की आवाज़ें शामिल हैं, जिनमें विमेंस वेब कम्युनिटी भी शामिल है। ये लेख उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। 

मूल चित्र : Canva

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