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क्यों औरत खुलकर अपनी भावनाओं को दूसरे के सामने नहीं कह पाती? क्यों वह सतायी हुई औरत कहलाना पसंद करती है? वह एक जीवित इंसान है या एक आकृति?
घर के लोगों ने चिड़ियाघर घूमने की योजना बनायी। उसे भी उसमें शामिल कर लिया गया।
घर का सारा काम अकेले ही करते करते वह बहुत थक गई थी। अब वह आराम करना चाहती थी। पर कोई उससे नहीं पूछता कि तुम्हें जाना है या नहीं? सब फरमान सुना देते और उसे अनमने होकर भी वह काम करने पड़ते जो उसे बिलकुल पसंद नहीं थे। कोई उसकी भावनाओं को नहीं समझता। कोई उसकी परवाह नहीं करता। वह दुखी रहती।
चिड़ियाघर में घूमते हुए उसकी नजर एक कटे पेड़ पर बनी एक औरत की आकृति पर गई। वह ठिठक गई। उसे उस औरत की आकृति में अपना ही अक्स नजर आया। वह दुखी थी। साफ नजर आ रहा था। उसकी असीम वेदना उसके चेहरे पर फैली थी। पर कोई उसे समझने की कोशिश नहीं कर रहा था।
उसके इर्दगिर्द बहुत से लोग इकट्ठा थे। सब लोग उसे देख रहे थे। उसके चेहरे के भाव को समझने की कोशिश कोई नहीं कर रहा था। लोग यह कहते हुए आगे बढ़ रहे थे कि कलाकार ने कटे पेड़ में भी औरत की आकृति उकेरकर अपनी कला का अनुपम उदाहरण पेश किया है।
उसका बेटा उसे झकझोर कर बोला, “माँ, आप यहीं रुक गईं। सब लोग आगे बढ़ गए हैं। चलिए।” वह सोचते हुए बेटे के साथ आगे बढ़ गई।
औरत क्यों स्वयं को दोयम दर्जे का समझती है ? क्यों वह खुलकर अपनी भावनाओं को दूसरे के सामने नहीं कह पाती? क्यों वह सतायी हुई औरत कहलाना पसंद करती है? वह एक जीवित इंसान है या एक आकृति?
मूल चित्र : Pexels
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