कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जब औरतों के सर उठते हैं, तो न जाने क्यों लोग घबराते हैं?

कहते रहे जो मुझे किसी की ज़रूरत नहीं, बस दो चार दिन में मिजाज़ बदले से नज़र आने लगते हैं? जब घर की औरतों के सर उठते हैं, तो न जाने क्यों लोग घबराने लगते हैं...

कहते रहे जो मुझे किसी की ज़रूरत नहीं, बस दो चार दिन में मिजाज़ बदले से नज़र आने लगते हैं? जब घर की औरतों के सर उठते हैं, तो न जाने क्यों लोग घबराने लगते हैं…

जब घर की औरतों के सर उठते हैं
तो न जाने क्यों लोग घबराने लगते हैं

कौन सी बात निकल कर आ जाये बाहर
इस डर से थरथराने लगते हैं

जिस पेड़ की छांव में बैठते हैं हर दोपहर
उसी पर छिड़कते हैं सुबह शाम ज़हर

उन दरख़्तों में बैठे गवाह पंछी इक दिन
फिर वही ज़हर तुम्हे पिलाने लगते हैं

दुआ में उठते हाथों को इतना न करो मजबूर
कि वो जकड़ी मुट्ठी बन बगावत में उठें

ज़रा सोच लेना दीवारों में चुनवाने से पहले
गड़े मुर्दे कभी कभी अपनी दास्तान खुद सुनाने लगते हैं

पिंजरों में पालते हैं जो रंग बिरंगी चिड़ियाँ
होते ही क़ैद, दीवारों में बनाने लगते हैं नयी खिड़कियाँ

कहते रहे जो सबसे, मुझे किसी की ज़रूरत नहीं
बस दो चार दिन में मिजाज़ बदले से नज़र आने लगते हैं?

मूल चित्र : Canva 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

11 Posts | 23,112 Views
All Categories