कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

विमेंस वेब हिंदी के टॉप 10 लेखक और उनके लेख, जिनको आपने दिया सबसे ज़्यादा प्यार

हम मना रहे हैं विमेंस वेब के पहले दशक का जश्न और इसके उपलक्ष्य में हम आपके लिए लाये हैं हिंदी के टॉप 10 लेखक और हम सबकी पसंद के उनके लेख...

हम मना रहे हैं विमेंस वेब के पहले दशक का जश्न और इसके उपलक्ष्य में हम आपके लिए लाये हैं हिंदी के टॉप 10 लेखक और हम सबकी पसंद के उनके लेख…

जी हाँ इस महीने वीमंस वेब ने 10 साल पूरे किये। तो हमने सोचा क्यों न अपने हिंदी पाठकों, यानि के साथ इस जश्न को मनाएं? आखिर हिंदी वेबसाइट को आप लोगों के प्यार ने ही यहाँ तक पहुँचाया है। जहां एक तरफ हमारे रीडर्स ने हमें खूब समर्थन दिया, वहीं दूसरी तरफ ये संभव हो पाया है हमारे लेखकों की वजह से। इन लेखकों ने एक से बढ़ कर एक उम्दा लेख आप तक इस प्लेटफॉर्म के ज़रिये पहुंचाए। उन्होंने हम सब को अपना बेशकीमती समय दिया और आप सब से मिला उनको बेशुमार प्यार।

आप दोनों का हम जितना शुक्रिया अदा करें उतना कम है। इसलिए आज हम इस लेख के ज़रिये आप तक अपने टॉप 10 कंट्रीब्युटर्स और उनके बेहद पसंद किये गए लेख – पाठकों की पसंद और एडिटर्स चॉइस के तहत, दो लेख आप सब से साझा कर रहे हैं। 

तो आइये मिलें अपने टॉप 10 लेखकों और उनकी कृतियों से

मिनाक्षी शर्मा

मिनाक्षी शर्मा को जानें, “मैं पिछले कुछ सालों से मीडिया में काम कर रही हूं, न्यूज़ चैनल्स, पीआर फर्म वगैरह। लेकिन जो सुकून लिखने में है वो कहीं नहीं। महिलाओं के लिए किसी भी विषय पर लिखना मुझे बेहद पसंद है। पहाड़, संगीत, फिल्में, परिधान और हर कला की कद्रदान हूं। बात करने से ही बात बनती है इसलिए अपनी बात रखना चाहती हूं।”

मिनाक्षी ज़्यादातर फिल्मों और फैशन से जुड़े लेख लिखती हैं, लेकिन इन्होंने सामाजिक मुद्दों के बारे में भी उतनी ही भावना से लिखा है। हमारी फिल्मों इत्यादि की केटेगरी मिनाक्षी के कई लेखों से सुसज्जित है।

दिव्या दत्ता की कविता, अपने बराबर कर दो ना, क्या कह रही है और क्यों?… इस लेख में मिनाक्षी कहती हैं, “जानी मानी फिल्म अभिनेत्री दिव्या दत्ता इस बार अपनी फिल्म के लिए नहीं बल्कि किसी और वजह से सुर्ख़ियों में है। अभी कुछ दिन पहले उन्होंने मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा के शो में एक कविता सुनाई जिसके बाद वो वायरल हो गई हैं। ये कविता उनके भाई डॉ. राहुल दत्ता ने लिखी है जिसमें लैंगिक समानता की बात को इतने अच्छे और प्यारे भाव से रखा गया है जिसे हर किसी को सुनना चाहिए।”

मिनाक्षी के इस लेख को आप पाठकों ने बार-बार सराहा और ये हमारी साइट की टॉप पोस्ट्स में से एक है।

दिव्या दत्ता की कविता, अपने बराबर कर दो ना, क्या कह रही है और क्यों?

मिनाक्षी की ये कविता तुम मुझे क्या छोड़ोगे, तुम तो ख़ुद अपनी क़ैद में हो…मुझे बहुत पसंद है। इस कविता में उनका ये तर्क कि दूसरे को अपने से कमतर मानने से पहले हमें अपने गिरह में झाँक कर देख लेना चाहिए शत प्रतिशत सत्य है। हमारे समाज में ज़्यादातर औरतों को दूसरों के हिसाब से ही चलना पड़ता है। यदि वह ऐसा करना से मन कर दे तो हम उसे तरह-तरह की बातें सुनते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद अपने में दम रखना और दूसरे को उनकी जगह अच्छे से दिखने काबिल-ए-तारीफ है। इस कविता को आप पाठकों ने भी खूब प्यार दिया।

तुम मुझे क्या छोड़ोगे, तुम तो ख़ुद अपनी क़ैद में हो…

विनीता धीमान

विनीता अपने प्रोफाइल में कहती हैं, ” मैं विनीता धीमान M.Phil, B.ed हूं। दो प्यारे बच्चों की माँ हूँ। मुझे लिखना पसंद है और नये दोस्त बनाना भी।”

विनीता अपनी कहानियों के ज़रिये बड़ी से बड़ी पारिवारिक और सामाजिक परेशानी को बड़ी ही सरलता से कह जाती हैं। और शायद ये ही कारण है कि इनकी ज़्यादातर हर कहानी को हमारे पाठक खूब पसंद करते हैं। इन दो कहानियां में ये कहना मुश्किल होगा कि ये मेरी पसंद है और ये पाठकों की। इसलिए आज यहां मैं आपके लिए इनकी दो लेख आप सब के साथ साझा कर रही हूँ।

पारिवारिक मुद्दों के अलावा विनीता हम सब के साथ एक से एक स्वादिष्ट पेय और व्यंजनों की रेसिपीज़ भी खूब साझा करती हैं।

शादी तुमसे नहीं तुम्हारे क्रेडिट से की थी….इस कहानी के ज़रिये विनीता कहती हैं, “जीवन में, पैसा बहुत मायने रखता है। हर समय आपको इसकी ज़रूरत होती है और इस के बिना जीवन को सोच ही नहीं सकते। कभी-कभी रिश्तों पर भी पैसा भारी पड़ जाता है, पैसों से आदमी सब कुछ ख़रीद सकता है लेकिन सच्चा प्यार कभी नहीं।” अगर आप भी इनकी बात से सहमत हैं तो आगे की कहानी भी पढ़िए।

शादी तुमसे नहीं तुम्हारे क्रेडिट कार्ड से की थी!

शादी हर समस्या का समाधान नहीं है…ये बात तो आप सब भी मानते हैं। आजकल भी कई माँ-बाप सोचते हैं कि बस लड़का पैदा करके उनकी सारी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो गयी। अपने लड़कों को संस्कार और ज़िम्मेदारी निभाने के नाम पर ये सीखाना कि “तेरी बीवी सब करेगी” सरासर मूर्खता है। ऐसे परिवारों में अपनी लड़की ब्याहने से पहले ही ये मान कर चलें कि आपकी बेटी की ज़िन्दगी नष्ट होना तय है। लेकिन इस कहानी का अंत हम सबकी उम्मीद को बांधता है।

शादी हर समस्या का समाधान नहीं है…

प्रशांत प्रत्यूष

प्रशांत अपने प्रोफाइल के ज़रिये हम सब से यूँ मिलते हैं, “किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते हैं। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊँगा।”

प्रशांत के लेख उन्हें फेमिनिस्ट पुरुषों की श्रेणी में रखते हैं। इनके लेख ज़्यादातर पितृसत्ता को ललकारते हैं और समाज से कठोर सवाल पूछते से हिचकिचाते नहीं। प्रशांत ने कई ऐतिहासिक महिलाओं के बारे में भी लेख लिखे हैं। ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि हिंदी साइट पर ऐतिहासिक-महिलाओं की केटेगरी इनके दम से ही है। साथ ही प्रशांत ने कई वेब सीरीज़ के रिव्यु लिखे हैं जिसकी वजह से हमारी फिल्मों के केटेगरी बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।

कैसे इन पीरियड्स ने मुझे, एक लड़के को, पितृसत्तात्मक बना दिया…इस लेख में प्रशांत कहते हैं,  “आज जब मैं जेडर स्टडी के रिसर्चर के तौर पर इन बातों के बारे में सोचता हूं तो यह विश्वास पक्का हो जाता है कि लड़कियों के पीरियड्स के दौरान अगर सामाजिक परिवेश बच्चों का उचित समाजीकरण करें तो पितृसत्ता के उस बीज का जड़ से खत्म किया जा सकता है। जिसका पाठ समाज बच्चों को खासकर लड़कों को देता है। अगर मेरे बालपन में ही मुझे इन विसंगितियों के बारे में कोई समझाता या समझाने का प्रयास भर करता है तो मेरे अंदर पुरुष दंभ के उस चरित्र का निर्माण कभी नहीं होता जिसको मैं कालेज के दिनों तक बेहतर साहित्य के संपर्क में आने से पहले बेवज़ह ढो रहा था।”

कैसे इन पीरियड्स ने मुझे, एक लड़के को, पितृसत्तात्मक बना दिया…

आखिर गायब कहाँ हो जाती हैं हमारी टॉपर लडकियां …ये सवाल अब पूछते हैं प्रत्युष हम सब से। इनका कहना है, “टॉपर लड़कियाँ अपना कैरियर बनाने में आगे बढ़ सके इसके लिए पुरुषों के साथ-साथ समाज को जिम्मेदारी उठानी की ज़रूरत है। साथ ही साथ सरकारी नीतियों को इसका ख्याल रखने की ज़रूरत है कि उनके फैसले लड़कियों के विकास के पायदान में अवरोध नहीं खड़ा करें। जाहिर है इसको केवल, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ से पूरा नहीं किया जा सकता है। कई राज्यों ने लड़कियों के पढ़ाई को स्कूल और कालेजों के बाद बढ़ोत्तरी के लिए वज़िफे देने की घोषणाएं की हैं, परंतु इन घोषणाओं के बाद भी सामाजिक सोच में बदलाव की गति बहुत धीमी है।” और हम इनसे सहमत हैं।

…आखिर गायब कहाँ हो जाती हैं हमारी टॉपर लड़कियाँ?

प्रत्युष प्रशांत के ये दोनों लेख हमारे आपके और मेरी पसंद के टॉप लेख हैं।

आरती आयाचित

आरती कहती हैं, “मुझे लेख, कविता एवं कहानी लिखने और साथ ही पढ़ने का बहुत शौक है । मैं नवोदय विद्यालय समिति, क्षेत्रीय कार्यालय, भोपाल ( केन्द्रीय सरकार के अधीन कार्यरत एक स्वायत्त शासी संस्थान) की पूर्व कर्मचारी रही हूं । कार्यालयीन अवधि में हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी पखवाड़ा के तहत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे निबंध, भाषण, वाद विवाद एवं कविता पाठ में हिन्दी अधिकारी एवं उपायुक्त महोदय द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है । एकता की जान है हिन्दी , भारत देश की अस्मिता है हिन्दी । हिन्दी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए सभी समूहों पर अपनी लेखनी के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास कर रही हूं । सेवा में धन्यवाद प्रस्तुति।”

आरती अपनी कहानियों के ज़रिये कई मुद्दों को पाठकों के करीब ले कर आयी हैं।

ससुराल में पहला दिन और रस्मों की कुछ खट्टी-मीठी यादें ...इस लेख में आरती कहती हैं, “नई-नवेली बहु अपने ससुराल में कदम रखते ही थोड़ी सहमी-सहमी ही रहती है और मन में रहता है संकोच कि अपना निर्वाह यहॉं हो पाएगा या नहीं, मेरा स्‍वभाव घर के सदस्‍य समझ पाएंगे या नहीं। इसी असमंजस में शादी की रस्‍में अलग और मेरा सोचना है कि हर बहु का हाल ऐसा ही होता होगा, जैसा कि मेरा हुआ। इन सब रस्‍मों के बीच आफ़त यह होती है कि अपनी पेटी में से जरूरत का सामान निकालकर देगा कौन भला? इसीलिये बहु की यदि शादी से पहले घर के सदस्‍यों से जान-पहचान रहे तो शायद यह परेशानी नहीं होगी। वो तो इनकी ममेरी बहन, यानि मेरी ननंद से मेरी अच्‍छी पहचान हो गयी थी, सो उसने मेरी ससुराल में काफ़ी सहायता कर दी थी।”

आरती के इस लेख ने हम सब के दिलों को छुआ और हम में से कई ससुराल में अपने पहले दिन को याद करने लगे। इस लेख को आप सब ने बेहद सराहा।

ससुराल में पहला दिन और रस्मों की कुछ खट्टी-मीठी यादें

बाँझपन के लिए केवल औरत ही दोषी है?…इस कहानी के ज़रिये आरती प्रतिमा की व्यथा सुनते हुए लिखती हैं, “लेकिन इतने में अमित की माँ और बहन मंजु आ गईं। वे अमित से कहने लगीं, “जांच-वांच कुछ नहीं कराना। तू तो इस कलमुंही को छोड़ दे। खराबी इसी में होगी। तू तो बेटा दूसरी शादी कर ले। तेरे लिए हमने लड़की भी देख रखी है। मंजु की चचेरी बहन है माया, वह भी पढ़ी-लिखी है, उससे शादी कर ले, कम से कम मैं मरने से पहले, तेरे बच्चे का मुंह देखना चाहती हूं।”

कहानी पढ़ कर आज के समाज की सच्ची तस्वीर बखूबी उभर कर आती हैं। आरती की ये कहानी मेरे को बेहद पसंद है।

बांझपन के लिए केवल औरत ही दोषी है ?

सुजाता गुप्ता

अपने प्रोफाइल में सुजाता कहती हैं, “निरंतर लेखन करते हुए स्वयं और दुनिया को समझने में प्रयासरत !”

सुजाता ने कई मुद्दों पर अपनी आवाज़ लेखों के ज़रिये बुलंद की है।

आज से हो ये नारा – बेटा पढ़ाओ, बेटे को संस्कार सीखाओ...इस लेख ने आप सब ने बार-बार पढ़ा।  इस लेख में सुजाता कहती हैं, “सिर्फ बेटियों को बांध कर रखने की बजाय अब हम बेटों को भी बांध कर रखें!
मुझे लगता है वक्त के साथ जब सब कुछ बदल रहा है तो बरसों से चली आ रही बेटे-बेटियों के पालन-पोषण के तरीकों और मान्यताओं में भी परिवर्तन करना आवश्यक है! लड़कों के हमेशा सुरक्षित और लड़कियों को हमेशा असुरक्षित समझने की बजाय सिक्के को उल्टा कर दूसरे पहलू पर गौर करना होगा कि बेटे को तमाम व्यसनों और बुरी सोहबत से अधिक सुरक्षित रख कर हम कितनी ही बेटियों को सुरक्षित रख सकते हैं!”

और हम सब इनकी इस बात को गाँठ बाँध कर रखना चाहते हैं।

आज से हो ये नारा – ‘बेटा पढ़ाओ, बेटे को संस्कार सिखाओ!’

खुद को नई सी लगने लगी हूँ…हाँ, अब मैं बदल गई हूं!…सुजाता की ये पोस्ट मेरे मन के बेहद करीब है। इसमें सुजाता कहती हैं, ” मैं अब पहले की तरह कमज़ोर नहीं हूं, हौसला रखती हूं मन ही मन, किसी से भी आस लगाती नहीं हूं!” कर मुझे इनकी इन पंक्तियों से एक दमदार औरत की आवाज़ सुनाई देती है। एक ऐसी औरत की जिसे अब दुनिया की कोई परवाह नहीं। उसने अब अपने दम पर, अपने अनुसार जीना तय कर लिया है।

खुद को नई सी लगने लगी हूँ…हाँ, अब मैं बदल गई हूं!

समिधा नवीन वर्मा

समिधा कहती हैं, “मैंने इंग्लिश लिटेरेचर में M.A. किया है । प्रोफेशनल ट्रांसलेटर हूँ। Autocad and Computer कोर्स किया है और 3 वर्षों तक कॉन्वेन्ट स्कूल में कम्प्यूटर विषय की शिक्षा भी दी है । किन्तु अपनी भावनाओं को कविता या लेखों के माध्यम से हिन्दी भाषा में व्यक्त करना मुझे ज्यादा पसन्द है । लेखन, अध्ययन, Quotations का संग्रह करना और कुकिंग का शौक है । यूट्यूब पर मेरे चैनल का लिंक…. https://www.youtube.com/channel/UCbBl_Ksx28_35OufSk_Z4WQ

समिधा ने अपनी फेमिनिस्ट कविताओं के ज़रिये हम सब का दिल मोह लिया है।

कुछ और ज़्यादा नहीं, बस इतना ही चाहती हूँ…. समिधा इस कविता के ज़रिये एक औरत के दिल की बात इन शब्दों में सुंदर तरीके से हमारे लिए पिरोती हैं, “गर दुखाया हो मैंने, मन कभी आपका, क्षमा करना, नादान है,
समझी ये मेरी नादानी जाए, बस इतना ही चाहती हूँ। सूरत, सौंदर्य और क्षमता तो बदलेगी उम्र के साथ-साथ,
मेरी भावनाओं से मेरी कद्र पहचानी जाए, बस इतना ही चाहती हूँ।” और इतना कहने के साथ समिधा ने हम सब का दिल जीत लिया। आप सब ने इस कविता को खूब प्यार दिया।

कुछ और ज़्यादा नहीं, बस इतना ही चाहती हूँ!

पर तुम पुरुष हो, तुम स्वीकार थोड़े ना करोगे…समिधा की इस कविता को जितना मैंने सराहा, उतना ही आप सब ने भी। इस कविता के माध्यम से एक स्त्री के भाव को कुछ यूं ख़ूबसूरती से पेश किया, “चाहे युग वैज्ञानिक हो, या कोई सा भी युग रहा होगा, याद करो मैंने नहीं, तुमने ही मुझे छोड़ा होगा, जानती हूँ मैं, और भीतर ही भीतर, मानते हो तुम भी, कि सच्ची हितैषी हूँ तुम्हारी, पर पुरुष हो ना, स्वीकार थोड़े ना करोगे…” और इनकी इस बात को हम सब कभी न कभी जिया है।

पर तुम पुरुष हो ना, तुम स्वीकार थोड़े ना करोगे

अंशु शर्मा

अंशु अपना परिचय कुछ ऐसे देती हैं, “कहते हैं सब खुश मिजाज़, बुराई को करती नजर अंदाज, सादा जीवन उच्च विचार, सकारात्मकता जीवन का सार, नकारात्मकता से रहती दूर, अपनों का प्यार पाती भरपूर, दोस्तों को समझती अपना, नाम है मेरा अंशु शर्मा…”

अंशु ने बड़ी सरलता से अपनी कहानियों ज़रिये, रिश्तों और मानवता की बारीकियों को हम सब के समक्ष रखा है।

लाखों में एक मेरी मॉडर्न बहु…के ज़रिये अंशु पिछली और आजकल की पीढ़ी की सोच दर्शाती हैं, “दीदी समय के साथ रहना चाहते हैं बच्चे। देश विदेश जाते हैं नौकरी के लिए तो पहनावा भी बदलता है। अब जमाना बदल रहा है दीदी। टोका टाकी करना, तो हम में और पूराने लोगों में क्या अंतर। हमें बच्चों की खुशी भी देखनी चाहिए। विनय और रिया दोनों समझते हैं परिवार की अहमियत। मैं मिली हूँ बहुत बार रिया से। आप चिंता नहीं करें।”

इस लेख को आप सब ने बहुत सराहा और बार-बार पढ़ा।

लाखों में एक मेरी माडर्न बहु!

शादी के बाद लड़की के मायके को पराया घर न कहें…ये लेख आपके साथ-साथ मेरी भी पसंद है। इसमें अंशु कहती हैं, ” हर लड़की को प्यार चाहिये और उसे समझने वाले जो समझें कि मायका कभी नहीं भुलाया जा सकता। ना कोई लड़की अपने घर को पराया मान सकती है और ना उसके माँ-पिता अपनी बेटी को दूसरा समझ सकते हैं। वो उनके कलेजे का टुकड़ा थी और रहेगी। अगर ये दोनों बात समझ लीं जाएँ तो,  हर घर खुशहाल होगा।”

और हम सब इनकी इस बात को सही मानते हैं।

शादी के बाद लड़की के मायके को पराया घर ना कहें!

आँचल आशीष

आँचल अपने बारे में लिखती हैं, “एक माँ हूँ और एक लेखिका भी। मैंने फिलहाल ब्लॉग लिखना शुरू किया है।”

अपनी कहानियों और कविताओं के ज़रिये बहुत सुंदरता के साथ आँचल अपनी बात हम सब के सामने रख जाती हैं।

आज रंग लेने को मुझे मेरे ही रंग में …. आँचल की ये कविता बहुत ही चाँद शब्दों में बहुत बड़ी बात कह जाती है और इसलिए ये मुझे बेहद पसंद है, “एक रंग मेरे ख़्वाबों वाला, एक रंग मेरी खुशियों वाला, एक रंग मेरी पहचान का, एक रंग मेरे रंग वाला, आज रंग लेने दो मुझ मेरे ही रंग में।”

आज रंग लेने दो मुझे मेरे ही रंग में

सासु-माँ की बताई इन दो बातों ने बनायीं मेरी ज़िंदगी आसान … आँचल के इस लेख को आप सब खूब पसंद किया। इस लेख के ज़रिये आँचल बड़ी मासूमियत से अपनी सासु-माँ की दी गयी सीख को गाँठ बांध लेती हैं, जो उनको समय रहते काम आ जाती है, “पतिदेव मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे, मेरी समझदारी पर या मेरी सासू-मां की समझदारी पर, पता नहीं पर मैं मन ही मन अपनी सासू-मां को धन्यवाद दे रही थी। उनकी सिखाई हुई बातें ज़िंदगी के ऐसे मोड़ पर अक्सर काम आ जाती हैं। दोस्तों बड़ों का अपने आस-पास होना किसी बड़े पेड़ के शीतल छांव से कम नहीं होता।”

सासु-माँ की सीखायी इन दो बातों ने बनायी मेरी ज़िन्दगी आसान

श्वेता व्यास

श्वेता अपने बारे में कुछ यूँ कहती हैं, “आजकल मैं विहान की माँ हूँ। मेरे दिल में घूमने वाले विचारों में मैं बेहद अस्थिर, पठनीय, जिसका केवल ब्लॉग और पुस्तकों में इलाज है। रिश्तों और जीवन पर अधिक ध्यान देने के लिए मेरी कलम में पेरेंटिंग, महिला सशक्तीकरण और कल्याण के लिए एक खास मुक़ाम है।”

श्वेता अपने लेखों के ज़रिये कई सामाजिक बुराइयों के ललकारती नज़र आतीं है। और इनके लेख इस बात की गवाही देते हैं। इनके लेख सत्य घटनाओं पर भी आधारित होते हैं।

वो 5 बातें जो मैं अपनी माँ से किसी भी हाल में नहीं सीखना चाहती ...ये लेख हम सब ने खूब पसंद किया। इसमें श्वेता ‘माँ ने सिखाया’ के लिए कहती हैं, ” यहां सिर्फ ये 5 बातें, लेकिन और बहुत लंबी सूची है। पर, हमारे बच्चों के लिए नहीं होगी। उन्हें उनके हिसाब से रहने की उन्हें पूरी आजादी होनी चाहिए। उनके उठने-बैठने जैसी क्रियाओं पर पाबंदी, उन्हें केवल हमारी संकीर्ण सोच का ही उदाहरण देगी। अनुभव में जब नवीनीकरण का तड़का लगे तभी परवरिश का स्वाद आए। पुराने लोगों की कुछ सीख और नए ज़माने के नुस्खे, हमारी आने वाली पीढ़ी का बेहतर कल तैयार कर सकती है।”

हम सब ने उनके इस लेख को खूब सराहा।

वो 5 बातें जो मैं अपनी माँ से किसी भी हाल में नहीं सीखना चाहती

उस चांदी की अंगूठी को निकाल फेंकना! निशाँ ये हाथ पर नहीं ज़मीर पर कर जायेगी … श्वेता की इस कविता को मैं अपने दिल के करीब इसलिए मानती हूँ क्यूँकि, श्वेता के कहने के साथ मैं भी सहमत हूँ कि “ये छोटी सी कविता उन सभी औरतों के लिए है जो कभी ना कभी किसी शोषण का शिकार हुई हैं। कभी दफ्तर में, कभी घर में, कभी पति से, कभी दोस्त और कभी किसी अनजान से, किसी ना किसी रूप में परेशां होती आई हैं। समझदारी और सहनशक्ति के नाम पर चुप रहती आई हैं। ‘औरत ही घर को संभाल सकती है’ के नाम पर खुद की हर ख्वाहिश को पैरों तले दबाती आई हैं। अपने ही घर में अपनी अस्मत खोती  आई हैं। उम्र के हर पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारती आई हैं। कोई चांदी की अंगूठी हमारी आज़ादी को ना बाँधने पाए, कभी ना मिटने वाला कोई निशाँ ना छोड़ने पाए! सच है ना?”

उस चांदी की अंगूठी को निकाल फेंकना! निशाँ ये हाथ पर नहीं ज़मीर पर कर जायेगी

अंशु सक्सेना

अंशु अपने बारे में कहती हैं, “मैं एक लेखिका एवं समाजसेवी हूँ। मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में MSc किया है। मैंने कई वर्षों तक अध्यापन कार्य भी किया है। मुझे अपनी अनुभूतियों को कविताओं, कहानियों एवं लेखों के माध्यम से व्यक्त करना अत्यन्त प्रिय है। लेखन मुझे आत्मसंतुष्टि  प्रदान करता है।”

अंशु के लेख समाज के कई बुराइयों और उनके खिलाफ औरत की लड़ाई को हमारे समक्ष प्रस्तुत करती हैं।

एक निर्णय ज़िंदगी की राह बदलने का… अंशु के इस लेख को आप सब का पसंदीदा लेख कहना गलत न होगा। अंशु इसमें एक औरत की कश्मकश और उस पर उसकी जीत को हमारे समक्ष रखती हैं, ” नेहा ने अपनी माँ को फ़ोन लगाया और कहा, “अब मैं शादी के लिये तैयार हूँ माँ। आपने जो मैरिज प्रपोज़ल्स सेलेक्ट किये हैं मुझे भेज दीजिये। मुझे अपनी ज़िंदगी की राह बदलनी है और सही निर्णय करना है।” “

और नेहा की इस बहादुरी ने हम सब का दिल जीत लिया।

एक निर्णय ज़िंदगी की राह बदलने का

सबको खुश रखने की ज़िम्मेदारी अगर बहु की है तो उसको खुश रखने की ज़िम्मेदारी आपकी है!….अंशु का ये लेख हमें और आप सब को भी बहुत पसंद है। एक आम लड़की की ज़िंदगी को ब्यान करते हुए अंशु कहती हैं,  ” दीपक वहीं बैठे-बैठे सोचने लगा, इन आठ महीनों में कितनी मुरझा सी गई है मोना। जब वह मोना को दुल्हन बनाकर लाया था तो वह कैसे हमेशा चहकती रहती थी। मोना जैसी सुन्दर और सुशील पत्नी पाकर वह निहाल हो गया था। विवाह के समय उसने मोना के माता-पिता से वादा किया था कि मोना को हमेशा ख़ुश रखेगा। अपने माता-पिता के घर फूल की तरह पली बढ़ी मोना को विवाह के तुरंत बाद ही गृहस्थी के बोझ तले दब सी गई है। वह, उसके माँ-पापा, भाई-बहन, सब अपनी सारी आवश्यकताओं के लिये मोना पर ही पूरी तरह निर्भर हैं। मोना घर का सारा काम कर के ऑफ़िस जाती है और लौट कर फिर घर के कामों में उलझ जाती है। वह ऐसा क्यों सोचता रहा कि गृहणी होने के नाते सारे काम मोना के ही हैं। मोना तो उसकी अर्द्धांगिनी है, मोना के सुख दुख का ख़्याल वह नहीं रखेगा तो कौन रखेगा।”

और इन हालत को आपने और मैंने, हम सब ने जिया है।

सबको खुश रखने की ज़िम्मेदारी अगर बहु की है तो उसको खुश रखने की ज़िम्मेदारी आपकी है!

तो ये थे हमारे टॉप 10 लेखक और आपकी और हमारी पसंद के उनके टॉप के लेख। हमें आशा है कि आप भी इन लेखकों और इनके लेखों को उतना ही सराह रहे हैं जितना की हम।

अब आप सब के साथ हमें भी उस दिन का इंतज़ार रहेगा जब इसी जगह हम विमेंस वेब हिंदी के पहले दशक का जश्न मन रहे होंगे, क्यूंकि… ये सफर हमने इकट्ठे शुरू किया है और इसे बहुत ऊँचे मुकाम तक भी हम ही लेकर जाएंगे।

एक बार फिर आपका, और हमारे लेखकों का तहे दिल से शुक्रिया।

विमेंस वेब का पहला दशक हम सब को मुबारक हो! #ADecadeOfWomensWeb

मूल चित्र : Facebook/Women’s Web

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Pragati Adhikari

Editor at Women’s Web, Designer, Counselor & Art Therapy Practitioner. read more...

10 Posts | 32,908 Views
All Categories