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पूर्वोत्तर की ज़िन्दगी में झांकती फिल्म एक्सोन चंद अहम सवाल उठाती है

फिल्म एक्सोन / अखुनी , यह सवाल पूछती है कि क्या आजाद लोकतंत्र में अपने पसंद का खाना खाने या पकाने की आजादी क्यों नहीं है? 

फिल्म एक्सोन / अखुनी , यह सवाल पूछती है कि क्या आजाद लोकतंत्र में अपने पसंद का खाना खाने या पकाने की आजादी क्यों नहीं है?

भारतीय सांस्कृति जीवन में खान-पान से जुड़ी एक खास बात यह रही है कि उसकी पैदाइश भले कहीं की भी हो। स्वाद में विविधता के कारण थोड़ा-बहुत फेर-बदल करके उसको अपने ज़ायके में शामिल करने का काम यहां के आम लोगों ने किया है। फिर चाहे वह राजसी खाना-पीने की अपनी विलासी संस्कृत्ति हो या सड़कों के किनारे मिलने वाले स्टीट्र फूड।

कौन जानता था कि समोसा, लिट्टी, चाट और पकौड़े को अपना स्टीट्र फूड मानने वाला भारत का हर समुदाय इडली, डोसा ही नहीं मोमोज, बर्गर-पीजा, पास्ता और नूल्ड्स को इस तरह से स्वीकार कर लेगा। आज यह कोई नहीं कहता ये दक्षिण भारतीय व्यंजन है या नार्थइस्ट का फूड है। सभी इसे भारतीय व्यजंन के नाम से जानते है और बड़े चाव से खाते हैं।

फिल्म एक्सोन का ट्रेलर 

एक-दूसरे की संस्कृत्ति के साथ घुलते-मिलते, उठते-बैठते भारत में ये जो संस्कृत्ति विकसित हुई उसे ही भारत के संविधान में सामासिक संस्कृति कहते है और आमबोल चाल की भाषा में गंगा-जमुनी तहज़ीब। संस्कृत्ति को जानने समझने की इस तह़ज़ीब में अगर किसी समुदाय को बहुत कम समझा-बूझा गया तो वह है आदिवासी समुदाय और नार्थ-इस्ट का समुदाय। हालांकि नार्थ-इस्ट के समुदाय में भी बहुत सारी विविधताएं सुनने को मिलती है इसलिए उनकी पूरी संस्कृति को दो शब्दों के पदबंधों में बांटना सही नहीं होगा।

आदिवासी समुदाय के खान-पान को प्रकृत्ति पर आधारित उनका जीवन भारतीय समाज में ही नहीं विदेशी समाज में भी इको-फ्रेडली और नैचुरल बोलकर उसके प्रति जुनूनी फैंटेसी का विकास हाल के दशकों में हुआ है, जिसको बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था भी धीरे-धीरे बढ़ावा देना शुरू किया। परंतु नार्थइस्ट का समुदाय और उसके खान-पान पर आज भी एक पूर्वाग्रही मानसिकता हावी है जो एक नहीं सैकड़ों बार नार्थइस्ट के लोगों के साथ भेदभाव को बढ़ावा देता है।

यह समुदाय अपने साथ हो रहे भेद-भाव को चुपचाप खामोशी से सहने को मज़बूर है 

स्वभाव से शांत, मृदृल और जरूरत पर भी आवश्यकता से अधिक नहीं घुलने-मिलने और स्वयं अपनी दुनिया में मस्त रहने वाला यह समुदाय अपने साथ हो रहे भेद-भाव को चुपचाप खामोशी से सहने को मज़बूर है। यह किसी एक राज्य में नहीं पूरे देश में एक ही जैसा है। कभी थापा कभी चीनी कभी चिंकी तो कभी नेपाली इस तरह के सम्बोधन से उनको पुकारा जाना तो आम है, जिसपर वो प्रतिक्रिया तक नहीं करते है।

यह कितना अज़ीब है न हमारे साथ रहते-रहते उनको हमारे खाने मसाले और समान्यत छोटी-बड़ी चीजें उनको पता है। इसकी वज़ह शायद यह होगी कि हमारे साथ रहते-रहते उन्होंने हमारे खाने-पीने को अपना लिया है। परंतु हम लोग उनके खाने पीने और विशेष आयोजनों पर बनने वाले डिशेज के बारे में ज़रा सा भी नहीं पहचानते हैं।

किसी भी राज्य के नागरिक को राइट टू ईट और कुक का अधिकार मिले

निकोलस खारकोंगर निर्देशित फिल्म एक्सोन  / अखुनि जो नेटफिलक्स पर रिलीज़ हुई है, महानगरों में रहने वाले पूर्वोत्तर के युवाओं के समूह की सांस्कृतिक चुनौतियों को पेश करने की कोशिश की है। फिल्म में असम, मिजोरम, अरूणाचल, सिक्किम और नागालैंड के समाज़ और संस्कॄति के साथ खान-पान और पलायन कर चुके युवाओं के सामने इन्हीं में किस तरह के बदलाव आते है, उसको पेश करती है।

फिल्म एक्सोन कहीं न कहीं इस मांग की ज़गह भी बनाती है कि उनको ही नहीं किसी भी राज्य के नागरिक को राइट टू ईट और कुक का अधिकार मिले। अकुनी नाम की डिश बनाने का संघर्ष यह सवाल पूछता है कि क्या आजाद लोकतंत्र में अपने पसंद का खाना खाने या पकाने की आजादी नहीं है?

फिल्म एक्सोन / अखुनि की सबसे बड़ी खूबी

फिल्म एक्सोन की सबसे बड़ी खूबी है इसमें पूर्वोत्तर के किसी स्टार को शामिल नहीं किया गया, सभी नये चेहरों के साथ फिल्म बनाई गई है।  दूसरी पूरी फिल्म में विमेन डामिनेश वैसा ही दिखता है जैसा वहां के समाज़ में मौजूद है। तीसरी खूबी है दिल्ली के वातावरण में बनाई गई यह फिल्म….।

मेरा मानना है कि जिन लोगों को पूर्वोत्तर के समाज के लोगों का छोटा सा संघर्ष उनके अपने भारत में देखना है तो ‘अखुनी ‘ जरूर देखें। उनको समझ में आएगा कि “भारत विविधताओं का देश है” पर इस पंचलाइन में कितनी विविधता पूर्वाग्रहों के आगे हर रोज दम तोड़ देती है।

स्पेशल नोट :

फ़िल्म : एक्सोन/ अखुनी
डायरेक्टर : निकोलस खरकोंगोर
कास्ट : सयानी गुप्ता, डॉली अहलूवालिया, लीन लिआश्रम, विनय पाठक, तेनजिन डेल्हा

एक्सोन, का उच्चारण है ‘अखुनी’, इस तत्व को विशेष रूप से इसे नागा व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है। ‘एक्सोन’, के शुरु में, नायक एक विशेष डिश में इसका उपयोग करते नज़र आते हैं जिससे पूरे मोहल्ले में हंगामा मच जाता है। वे इस डिश को अपने सबसे अच्छे दोस्त के लिए बना रहे हैं जिसकी शादी है।  

मूल चित्र :  YouTube 

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