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बंदिशें

तेरी चुप्पी कहीं, उनका हौसला न बन जाए! दिखला दो ज़माने को, है हममें भी, उड़ान भरने की कुव्वत! बंदिशों से भरी गुत्थी, आखिर कब, सुलझाएगी तू?

तेरी चुप्पी कहीं, उनका हौसला न बन जाए! दिखला दो ज़माने को,  है हममें भी, उड़ान भरने की कुव्वत! बंदिशों से भरी गुत्थी, आखिर कब, सुलझाएगी तू? 

औरत तेरी, यही कहानी!

सदियों से तुझ पर,

समाज ने, लगाई बंदिशें।

तूने उनको, हंसते-हंसते सहा है।

आखिर कब तक चुप रहेगी तू?

आखिर कब तक?

तुझे लड़ना है!

दमन और शोषण के खिलाफ।

तुझे लड़ना है!

अपने अधिकारों के लिए।

औरत तेरी, यही कहानी!

जब तू माँ के, गर्भ में आई।

समाज के कुछ लोगों ने,

आने की, बंदिशें लगाईं।

जैसे-जैसे तेरी, उम्र बढ़ी।

वैस-वैसे बंदिशों की, सीमा बढ़ी।

तुझे शिक्षा, निर्णय लेने की

स्वतंत्रता और समानता

से दूर रखा गया।

औरत तेरी, यही कहानी!

जब तू नैहर से, पीहर गई।

तेरे साथ, सामाजिक बंदिशें भी गई।

तेरे पैरों की उड़ान को,

चार दीवारी में, जकड़ा गया।

समाज द्वारा, तुझ पर नित्य,

नए-नए नियमों को थोपा गया।

अंधविश्वास, परम्पराओं

और रूढ़िवादिता से बाँधा गया।

औरत तेरी, यही कहानी!

तोड़ दो! उन जंजीरों को,

जो तेरी उड़ान को, कम कर दें।

तोड़ दो! उन परम्पराओं को,

जो तुझको घर में कैद कर दें।

औरत तेरी, यही कहानी!

तुझे लड़ना होगा!

उन के खिलाफ,

जिन्होंने तुझे रौंदा है।

तेरे अस्तित्व को मिटाया है।

तेरी चुप्पी कहीं,

उनका हौसला न बन जाए।

दिखला दो ज़माने को,

है, हममें भी उड़ान भरने की कुव्वत,

बंदिशों से भरी गुत्थी,

आखिर कब, सुलझाएगी तू?

आखिर कब तक, चुप रहेगी तू?

आखिर कब तक?

मूल चित्र: Canva Pro

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