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बेटा, मुझे तुम्हारे पैसे नहीं तुम्हारा साथ चाहिए…

मुझे पेंशन मिलता है बच्चों, मुझे तुम्हारे पैसों की जरूरत नहीं है। मैं घर में अपने कमरे में अकेली पड़ी रहती हूँ। मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है। 

मुझे पेंशन मिलता है बच्चों, मुझे तुम्हारे पैसों की जरूरत नहीं है। मैं घर में अपने कमरे में अकेली पड़ी रहती हूँ। मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है। 

“आज दादी बहुत उदास हैं”, संजू ने बैठते हुए कहा।

“मगर क्यों?” पंकज और परी ने एक साथ पूछा।

“मुझे लगता है दादाजी की याद आ रही है”, पायल ने कहा।

“मुझे तो नहीं लगता”, इस बार परी ने कहा। आज सारे कज़न इकट्ठा थे। छुट्टी थी कालेज में, गपशप कर रहे थे, जब संजू ने दादी के बारे में कहा था।

“आज छुट्टी है तो क्यों न दादी को कहीं घुमा लाया जाए? बेचारी सारा दिन घर में पड़ी रहती हैं। न कहीं आना न कहीं जाना”, संजू ने आइडिया दिया।

सब को ये बात बहुत पसंद आई। सब ने ओके कर दिया मगर मसला ये था कि इतना पैसा कहाँ से आएगा?

“बाहर जाने में पैसे बहुत खर्च होते हैं यार”, पंकज ने मायूसी से कहा। “इतना पैसा लाएं कहाँ से? घर वालों से माँगे क्या?”

“नहीं! परी ने कहा। हम किसी से पैसे नहीं लेंगे। हम अपनी पॉकेट मनी से ले जाएगें।  एक काम करते हैं पहले अपना अपना पॉकेट मनी ला कर हिसाब लगाते हैं, फिर उसी हिसाब से खाना मँगवाया जाएगा।”

“सब मिलाकर भी इतना नहीं हो रहा था कि दिल खोल कर खर्च करें। खैर कोई बात नहीं अब जब सोच लिया है तो दादी हमारे साथ बाहर जरूर जाएंगी पनीर-शनीर ना मंगा के सब्जी मंगा लेगे, रोटी-चावल और आइसक्रीम,” पायल ने खड़े होते हुए कहा।

बाहर जाने की बात जब दादी को बताया तो वो एकदम खुश हो गई। तुरंत बोलीं, “परी ज़रा मेरी नयी वाली साड़ी निकाल बेटा और हाँ थोड़ा मेकअप भी कर देना। देखना तुम दोनों से सुंदर लगूँगी।” वो एकदम खुश दिखाई देने लगीं थी।

“वाह दादी आज तो आप बहुत क्यूट लग रहीं हैं”, पायल ने उनका हाथ पकड़ कर घुमा दिया। “अब समझ में आया कि मैं इतनी खूबसूरत कैसे हूँ। अपनी दादी पर जो गयी हूँ!”

“ओ हो!” सबने एक साथ कहा तो दादी हंस पड़ी।

सब रेस्टोरेंट पहुंचे। वेटर ने आ कर खाने के बारे में पूछा। कोई कुछ बोलता इससे पहले ही दादी बोल पड़ीं, “शाही-पनीर, दाल-मखनी, कढ़ाई-पनीर, रायता, पापड़, सलाद, मिस्सी-रोटी और हाँ वेजिटेबल बिरियानी भी।”

खाना लग चुका था मगर किसी के अन्दर हिम्मत नहीं थी कि खाने को हाथ लगाए सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे और अन्दर ही अन्दर बोल रहे थे, ‘खा ले बेटा अभी बरतन भी धोने हैं।’

“शुरू करो!”, दादी ने कहा तो सब चुपचाप खाने लगे।

खाना खाने के बाद वेटर फिर आया, “डेजर्ट में कुछ लाऊँ?” उसने पूछा।

“हां, हां बिल्कुल! पांच आइसक्रीम लाओ”, उन्होंने कहा।

“नहीं दादी! अब बिल्कुल जगह नहीं बची।”

“अरे आइसक्रीम के लिए जगह की क्या जरूरत? जाओ तुम ले आओ।”

अब बिल देने की बारी आई। पंकज बिल उठाने की कोशिश करता, इससे पहले ही बिल दादी ने उठा लिया। और अपने साथ लाए बटुए से पैसे निकाल कर दे दिए। सब हैरानी से उनको देखने लगे तो वो मुस्कुराईं!

“मुझे पेंशन मिलता है बच्चों, मुझे तुम्हारे पैसों की जरूरत नहीं है। मैं घर में अपने कमरे में अकेली पड़ी रहती हूँ। सब अपने अपने काम में बिज़ी रहते हैं। मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है, तुम्हारी बिज़ी लाइफ़ से थोड़ा वक्त की जरूरत है। बताओ दोगे समय अपनी दादी को?”

सब एक साथ आके चिपक गए, “बिल्कुल दादी! हम वादा करते हैं कि रोज़ आपके पास आकर बैठेगे बातें करेंगे, और जब भी मौका होगा हम साथ में घूमने जाएंगे और शापिंग भी करेंगे।”

मूल चित्र : Still from Sanskari Bahu/JK Chopra Films, YouTube

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