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जैसे सब लड़कियाँ सीख लेती हैं, मैंने भी सीखा है अपनी माँ से…

छोटे छोटे बर्तनों में निरा प्रेम पका, थालियों में परोस देना भूख के साथ, मैंने सीखा है स्त्री होना, अपनी माँ से सानिध्य में।

छोटे छोटे बर्तनों में निरा प्रेम पका, थालियों में परोस देना भूख के साथ, मैंने सीखा है स्त्री होना, अपनी माँ से सानिध्य में।

जैसे सब लड़किया सीख लेती हैं,

मैंने भी सीखा है,

बहुत सारा स्नेह अपनी माँ से!

वो जैसे अपनी स्निग्ध उंगलियों से,

रमा देती थी बहुत सारा प्रेम, सौम्यता

मैंने भी बाँधा है अक्षुण्ण स्नेह,

अपनी मेले वाली गुड़िया की,

चोटी गूँथते हुए!

जैसे वसन को निचोड़,

वो भर देती थी,

ममता का रक्षा कवच,

मैंने भी सजाया है उसी लाड से,

अपनी गुड़िया की नीली चुन्नी को!

छोटे छोटे बर्तनों में निरा प्रेम पका,

थालियों में परोस देना भूख के साथ, 

मैंने सीखा है स्त्री होना, 

अपनी माँ से सानिध्य में!

मूल चित्र : Pexels

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