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सारे रिश्ते निभाने वाली औरतें अक्सर अपनी दोस्ती के रिश्ते भूल जाती हैं…क्यों?

हमें फैमिली और पति के फ्रैंड्स को टाइम देना है, लेकिन अपने दोस्ती के रिश्ते को नहीं, अगर हम उनसे बात भी करें तो अक्सर आप उसे टाइम की बरबादी कहेंगे...

हमें फैमिली और पति के फ्रैंड्स को टाइम देना है, लेकिन अपने दोस्ती के रिश्ते को नहीं, अगर हम उनसे बात भी करें तो अक्सर आप उसे टाइम की बरबादी कहेंगे…

हर साल की तरह इस साल का फ्रेंडशिप डे भी आ गया है। और सब में वही खुशी देखने को मिल रही है, जो हर साल होती है। कुछ लोग ऑनलाइन गिफ्ट्स भिजवा रहे हैं तो कुछ लोग ऑनलाइन पार्टी की तैयारी कर रहें हैं। लेकिन हर साल की तरह इस साल भी एक वर्ग में एक मायूसी सी है। हां मैं बात कर रही हूँ, महिलाओं की।

अक्सर शादी करके अपने बच्चों, घर, जॉब आदि में महिलाएं अपने उन दोस्तों के लिए समय ही नहीं निकाल पाती हैं जिनके साथ उन्होंने अपने सबसे यादगार लम्हों को जिया है। या यूं कहें हमारे समाज में सालों से यही परम्परा है कि शादी के बाद लड़की अपने पुराने दोस्तों को नहीं मिल सकती है। लेकिन क्या ये सही है? क्या फ्रेंडशिप डे एक माँ, पत्नी, बहु के लिए नहीं है? क्या एक औरत दोस्ती का रिश्ता नहीं निभा सकती है?

सोचिये अगर आपको भी आपके स्कूल से लेकर कॉलेज तक के दोस्तों को छोड़ना पड़ जाये वो भी बस इसलिए क्योंकि अब आपको शादी के बाद दूसरे शहर में एक नये तरीके से रहना पड़ेगा। अब आप को जब मर्ज़ी चाहें तब दोस्तों से मिलने की इजाज़त नहीं है। अब आप उनसे घंटों तक फ़ोन पर नहीं बतिया सकते हैं। अब आप उनके सुख दुःख में उनका साथ नहीं दे सकते हैं। बर्थडे पार्टीज़ और अन्य सेलिब्रेशन तो जैसे भूल ही जाओ। और दोस्ती के रिश्ते इसलिए भूल जाओ क्योंकि अब आपकी शादी हो चुकी है और अब आपको एक नए सिरे से नए लोगों के साथ घुलना मिलना होगा (वो भी पति और ससुराल की रजामंदी के बाद) तो कैसा लगेगा? 

शादी के बाद उन महिलाओं के दोस्त भी तो पीछे छूट गए हैं

हां! ऐसा ही तो होता आ रहा है हमारे समाज में सदियों से। लड़की शादी के बाद ससुराल चली जाती है अपने पीछे सब कुछ छोड़कर। अक्सर उनके घर, परिवार के बारे में तो फिर भी बात हो जाये लेकिन कभी कोई इस बारे में नहीं सोचता है कि आखिर उनके दोस्त भी तो पीछे छूट गए हैं। उन्हें भी तो इस नए माहौल में ढलने के लिए अपनी मन की बात किसी से तो शेयर करनी होगी। लेकिन नहीं, हमारे समाज में ऐसे कैसे हो सकता है। हम औरतों की खुशियों के बारे में कैसे सोच सकते हैं। औरतें तो देवी की मूरत हैं उन्हें तो हर तरीक़े से ढलना सीखना ही होगा। लेकिन क्यूँ? 

शादी के बाद पुरुष और महिलाओं के रूल्स हैं अलग-अलग

उन्होंने भी तो अपनी सहेलियों के साथ मिलकर कई ख़्वाब देखें होंगे न? उनकी भी तो बकेट लिस्ट में अभी बहुत कुछ अधूरा होगा न? उन्हें भी तो अपनी गर्ल गैंग के साथ मिलकर एक बार ट्रिप पर जाना होगा न? लेकिन नहीं वो औरत है। हाँ लेकिन शादी के बाद भी पुरुष अपने दोस्तों के कहीं भी जा सकते हैं। क्योंकि वो पुरुष है। और इस एक शब्द के आगे पीछे समाज को किसी तर्क की ज़रूरत नहीं है। 

औरतों का जीवन में घर, शादी, बच्चे, जॉब आदि में घूम कर रह जाता है और अगर इन सबसे टाइम मिले तो ससुराल के फैमिली फ्रैंड्स, पति के फ्रैंड्स को भी तो टाइम देना है। लेकिन खुद के फ्रैंड्स को नहीं। अगर वो उनसे बात भी करें तो फिर शायद आप उसे टाइम की बर्बादी कहेंगे और उन्हें पिछले छूटे हुए काम याद दिला देंगे।

समाज की पितृसत्ता सोच ने कभी महिलाओं की फ्रेंडशिप को तवज्जो ही नहीं दिया

हम सुनते भी तो जय वीरू की जोड़ी ही आये हैं। क्योंकि हमारे समाज की पितृसत्ता सोच ने कभी फ़ीमेल फ्रेंडशिप को तव्वजो ही नहीं दी है। एक लड़का अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकता है, लेकिन एक लड़की को अपनी दोस्त की मदद करने से पहले भी घरवालों के हज़ार सवालों के जवाब देने पड़ेंगे। 

लेकिन एक महिला को भी अपने उन दोस्तों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती हैं जिनके साथ उन्होंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ को जिया हो। उन्हें अपनी लाइफ के हर वो बात शेयर करने के लिए अपनी सहेलियों की जरूरत होती है। हाँ उन्हें हर वक़्त पति और परिवार की ज़रूरत नहीं होती है।

महिलाओं को कई बार परिवार से ज़्यादा अपनी दोस्ती के रिश्ते की ज़रूरत होती है

पुरुषवादी समाज को अब समझना ही होगा कि औरतों को उनके सुख दुःख में अपनी सहेलियों की ज़रूरत होती है। एक ऐसे ग्रुप की जरूरत होती है जहां वो अपनी बात बिना डर के कह सकें। जहां उन्हें किसी भी प्रकार से कोई जज नहीं करें। जहां लोग उन से अपने आप को जोड़ सकें।

कई लोगों को कहते हुए सुना होगा, औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है। फिर आपने ये भी सुना होगा की एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते हैं। तो दोनों बातों में औरत को ही क्यों रखा गया है। इस हिसाब से तो एक औरत के कभी दोस्त ही नहीं हो सकते हैं। ख़ैर ये तो समाज की सदियों पुरानी सोच है जिसे अब हमें ठोकर मारकर आगे ही बढ़ना ही होगा।

औरत हर रिश्ते की तरह दोस्ती के रिश्ते को भी बखूबी निभाना जानती है 

कहते है ना एक औरत रिश्तों को बख़ूबी निभाना जानती है, तो बस वैसे ही ये ही औरतें अपनी दोस्ती के रिश्ते को भी बखूबी निभाना जानती है। इन्हें अपनी दोस्ती के रिश्ते को निभाने के लिए किसी की परमिशन की ज़रूरत नहीं है। अब ऑनस्क्रीन फ्रेंडशिप में भी फीमेल फ्रेंडशिप को जगह मिलने लगी है। तो अब जरूरत है हमें अपने विचारों को बदलने की। अब हमे समझना होगा कि एक औरत शादी के बाद जितना अपने परिवार को याद करती हैं उतना ही वो अपने उन दोस्तों को भी याद करती है जिनके साथ उन्होंने हर फ्रेंडशिप डे पर हमेशा साथ रहने के वादे किये थे। 

हमारे समाज में कुछ चीज़ें अपने आप ही रूप ले लेती हैं और उन्हीं में से ये एक है। लेकिन अब हमें समझना होगा कि एक महिला को दूसरी महिला की ज़रूरत होती है। जब उन्हें कोई नहीं समझता तो दूसरी औरत ही उस समय उन्हें सबसे ज़्यादा समझ पाती है और उन्हें महसूस कर पाती है।

इस फ्रेंडशिप डे आप भी बेपरवाह अपनी सहेलियों के साथ बिताये हुए पलों को एक बार फिर जियें

तो क्यों ना इस बदलाव की शुरुवात इसी फ्रेंडशिप डे से करी जाये जहां महिलाओं को भी अपने उन दोस्तों के साथ समय बिताने का मौका मिले जिनके साथ वो सबसे ज़्यादा खुश महसूस करती हैं। और ये सिर्फ एक दिन के लिए नहीं बल्कि आने वाले समय के लिए बदलाव की तरह होना चाहिए। फीमेल फ्रेंडशिप को भी अब रील लाइफ के साथ रियल लाइफ में जगह और महत्वता देनी होगी।

आप इस फ्रेंडशिप डे पर बेझिझक अपनी सहेलियों के साथ मिलकर बिताएं हुए वो सारे पल याद करें और एक बार फिर फ्रेंडशिप डे को पहले की तरह यादगार बनाये। हां, फ्रेंडशिप डे आपके लिए भी है।

हेव अ हैप्पी फ्रेंडशिप डे !!

मूल चित्र :

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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