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अलविदा इलीना सेन : अपनी असहमतियों को कम नहीं होने देना, वही तुमको गतिशील बनाए रखेंगी

प्रोफ़ेसर इलीना सेन का मानना था, “स्त्री विमर्श इंसान को बेहतर संवेदनशील इंसान बनाने का विमर्श है यह किसी लिंग के विरुद्ध का विमर्श तो है ही नहीं।"

प्रोफ़ेसर इलीना सेन का मानना था, “स्त्री विमर्श इंसान को बेहतर संवेदनशील इंसान बनाने का विमर्श है यह किसी लिंग के विरुद्ध का विमर्श तो है ही नहीं।”

प्रोफ़ेसर इलीना सेन से अपनी कई असहमतियों के साथ मिला, उन्होंने मेरी असहमितों को सहमतियों में बदलने का प्रयास कभी नहीं किया। समय के साथ उनके साथ काम करते करते असहमतियां कम होती चली गयीं। उन्होंने इस बात के लिए मुझे ज़रूर सजग किया कि अपनी असहमतियों को कभी कम नहीं होने देना, वही तुमको गतिशील बनाए रखेंगी।

परसों आठ बजे एक झकझोर देने वाली ख़बर से वास्ता पड़ा। पता चला कि सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षिक कार्यकर्ता, नारीवादी और जनांदोलनों से गहरा सरोकार रखने वाली लेखिका, प्रोफ़ेसर इलीना सेन, जो मेरी गाइड, दोस्त, मेंटर भी थी, नहीं रहीं।

पिछले दस वर्षों से वो कैंसर से लड़ती-भिड़ती रहीं, लेकिन उन्होंने कभी कैसर से हार नहीं मानी।  प्रोफ़ेसर इलीना सेन के अपनी आंखें बंद भी कीं तो उस दिन, जब दुनिया विश्व आदिवासी दिवस मना रहा था।

प्रो इलीना सेन आदिवासी महिलाओं की बहन, दोस्त ही नहीं, अभिभावक भी थीं

इतिहास में आदिवासी महिलाओं का संघर्ष भी दर्ज हो सके यह कोशिश इलीना लगातार छत्तीसगढ़ में रहकर करती रहीं। सैकड़ों आदिवासी महिलाओं के लिए ‘इलीना दी’ का जाना व्यक्त्तिगत नुक़सान की तरह है, क्योंकि वह उन आदिवासी महिलाओं की बहन, दोस्त ही नहीं, अभिभावक भी थीं।

ख़ासकर उन आदिवासी बच्चों के लिए जिनके लिए चलता-फिरता स्कूल वह अपने स्तर पर चला रही थीं। जिन आदिवासी संस्कृतिकर्मियों के साथ उन्होंने उनके मुक्ति के गीत गाए और उनकी संस्कॄति को इतिहास में दर्ज कराने की कोशिश वह करती रहीं।

उनके लिए इलीना अनमोल महिला थीं, जिनसे बात करते समय उनकी आंखों में आत्मविश्वास की  चमक होती थी। उनके लिए तो इलीना का जाना उनके परिवार के सदस्य का जाने जैसा है। प्रोफ़ेसर सेन का जाना उनसे जुड़े-मिले हर व्यक्त्ति के मन में उनसे जुड़ी यादों को फिर से जीवित कर गया होगा।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में पितृसत्ता के वर्चस्व के ख़िलाफ़ लगातार सवाल उठाए

इलीना सेन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की साथी संगठन महिला मुक्ति मोर्चा से जुड़ी थीं और उन्होंने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में पितृसत्ता के वर्चस्व के ख़िलाफ़ लगातार सवाल उठाए और उसको ख़त्म कराने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई।

वह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविधालय, वर्धा और टाटा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल साइंसेज, मुंबई के स्त्री अध्ययन विभाग से भी जुड़ी रहीं। इन दोनों जगहों पर उन्होंने स्त्री विमर्श को छात्रों के बीच में साझा करने का प्रयास किया स्त्री विमर्श के किसी भी वैचारकी को तथ्य आधारित तर्कों के साथ ही स्वीकार्य किया।

स्त्री विमर्श किसी लिंग के विरुद्ध का विमर्श तो है ही नहीं

उनका मानना था, “स्त्री विमर्श इंसान को बेहतर संवेदनशील इंसान बनाने का विमर्श है यह किसी लिंग के विरुद्ध का विमर्श तो है ही नहीं। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम स्त्री विमर्श को खेत-खदान-मिल और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के बीच में तलाश करे। समानता, स्वतंत्रता और स्त्री अस्मिता के संघर्ष की पहचान वहां होना ज्यादा ज़रूरी है।”

प्रो इलीना सेन के शोध को आज भी रेफ़र किया जाता है

बहुत कम लोगों को पता है कि इलीना देश की सम्भवत: पहली शोध छात्रा थीं जिन्होंने अपने जनांकिकीय (Demography) शोध में बताया था कि भारतीय समाज में महिलाओं की दर तेज़ी से घट रही है और इलीना के शोध को आज भी रेफ़र किया जाता है- ना जाने उसके कितने एडिशन छपे है!

इलीना के व्यक्त्तित्व की सबसे बड़ी ख़ूबी उनसे जुड़े व्यक्तियों के साथ उनका भावनात्मक लगाव हो जाना था, जिसकी शुरूआत एक अजनबी की तरह होती थी और पहली मुलाकात के बाद ही वो पारिवार सरीखी बन जाती थीं।

अपनी असहमतियों को कभी कम नहीं होने देना, वही तुमको गतिशील बनाए रखेगी

प्रोफ़ेसर इलीना सेन से मैं अपनी कई असहमतियों के साथ मिला, उन्होंने मेरी असहमितों को सहमतियों में बदलने का प्रयास कभी नहीं किया। समय के साथ उनके साथ काम करते करते असहमतियां कम होती चली गई। उन्होंने इस बात के लिए मुझे ज़रूर सजग किया कि अपनी असहमतियों को कभी कम नहीं होने देना, वही तुमको गतिशील बनाए रखेगी।

क्लास में लेक्चर से ज़्यादा उनका मानना यह था जो भी चीज़ आप पढ़ रहे हैं या कर रहे हैं, उसके साथ आपकी विकसित की हुई कार्य-संस्कृति ही आपके सारे सवालों का जवाब दे सकती है, उसको ज़्यादा बेहतर तरीक़े से समझा सकती है।

लेक्चर और नोटस बस सपोर्ट मैटिरियल होते हैं। उनके छात्र के बतौर जुड़ने पर मैने उनसे बहुत कुछ सीखा, जो सबसे बड़ी चीज़ सीखी वह यह कि “तुम ग़लत नहीं हो, तो कभी झुको नहीं, आगे बढ़ते चलो रास्ते बनते चले जाएगे और कारंवा भी बनता चला जाएगा। कभी घबराओं नहीं, कभी डरो नहीं। तुम अगर ग़लत नहीं हो तो दुनिया की कोई ताक़त तुमको डरा नहीं सकती है।”

उनकी यही बात उनसे जुड़े हर छात्रों के जीवन में उनको हमेशा ज़िंदा रखेगी। ऐसे लोग कभी नही जाते, बल्कि वे जाकर भी यही रह जाते है पूरे के पूरे!

इलीना, हम सब आपको बहुत प्यार करते हैं और आपके प्यार और सीख को हमेशा अपने अंदर जिंदा रखेंगे।

नोट : लेखक वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर इलीना सेन के छात्र रह चुके हैं.

मूल चित्र : YouTube

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