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भारत की पहली महिला इंजीनियर, ए. ललिता, को क्या आप जानते हैं?

ए. ललिता की कहानी किसी प्रेरणादायक महिला के संघर्ष के कहानी से कम नहीं है, साथ ही साथ वो भारत की पहली महिला इलेक्ट्रिकल इंजीनियर तो थी ही।

ए. ललिता की कहानी किसी प्रेरणादायक महिला के संघर्ष के कहानी से कम नहीं है, साथ ही साथ वो भारत की पहली महिला इलेक्ट्रिकल इंजीनियर तो थी ही।

आजकल में रिलीज हुई दो फिल्में ‘शंकुतला देवी’ और ‘गुंजन सक्सेना’ काफी चर्चा में ही नहीं, लोगों को पसंद भी आ रही हैं। शंकुलता देवी के हूयुमन कम्पूंटर और बेटी के साथ उनके भावपूर्ण-तनावपूर्ण जीवन की कहानी है तो वहीं गुंजन सक्सेना सेना की एक महिला पायलेट के संघर्ष की कहानी है। बेशक दोनों ही कहानियां महिलाओं के लिए प्रेरणादायक हैं।

पर, जब हमारे पास इन दोनों किरदारों का कॉकटेल एक ही महिला के जीवन संघर्ष में देखने को मिल जाए, तो हम उनके बारे में क्यों न जाने और उनको क्यों न याद करे। चौंक गए होगे आप? चौकिए मत।

भारत की पहली महिला इंजीनियर ए. ललिता

ए. ललिता की कहानी किसी प्रेरणादायक महिला के संघर्ष के कहानी से कम नहीं है। साथ ही साथ वो भारत की पहली महिला इलेक्ट्रिकल इंजीनियर भी थीं। वह भी उस दौर में जब भारत में महिलाओं के कंधों पर कुप्रथाओं का बोझ काफी बड़ा तो था ही यह मान्यता भी थी कि पढ़ी-लिखी औरतों के पति नहीं रहते, लड़कियों को गृह-कार्य की ही शिक्षा दी जाती थी और बहुत कोशिशों के बाद कुछ महिला डाक्टर भारते में गिनी-चुनी होने लगी थी। पर इंजीनियरिंग का क्षेत्र तो पुरुषों के लिए ही जाना जाता था, महिलाओं का इस क्षेत्र में प्रवेश तो दूर की कौड़ी लाने के बराबर था।

ए. ललिता अपनी माता पिता की पांचवी संतान थीं

ए. ललिता का जन्म 27 अगस्त 1919 को पिता पप्पू सुब्बा राव जो स्वयं भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे के घर हुआ। वह अपनी माता पिता की पांचवी संतान थी। सात बच्चों के परिवार में लड़को को तो इंजीनियर बनने की शिक्षा मिली पर लड़कियों को बुनियादी शिक्षा तक ही सीमित रखा गया।

उन दिनों बाल विवाह भारतीय समाज में समान्य सी बात थी तो 15 साल के उम्र में ललिता की शादी भी हो गई। 18 साल के उम्र में लतिता एक बच्ची की मां बन गई और बेटी के जन्म के चार महीने बाद ही पति का देहांत हो गया। गौरतलब हो कि सती प्रथा जैसी कुप्रथा का चलन दक्षिण के समाज में नहीं था परंतु इससे विधवा महिला का जीवन सरल नहीं हो जाता था। विधवा विवाह के सामाजिक सुधार के प्रयास शुरू हो गए थे पर वह सामाजिक स्वीकारिता की राह देख रहा था दक्षिण के समाज में।

उन्होंने अपने सकल्प से इतिहास रच दिया

ललिता ने विधवाओं के लिए तय की गई सामाजिक व्यवस्था को मानने से इंकार कर दिया और अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया। यह फैसला उन्होंने अपने साथ-साथ अपनी बेटी श्मायला के लिए भी किया जिसके साथ वह अधिक से अधिक वक्त बिताना चाहती थी। उनका यही फैसला आज कितनी ही इंजीनियर लड़कियों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है, यह वह कदम था जिससे इंजीनियरिग के क्षेत्र में महिलाओं के लिए दरवाजे खुलने की शुरुआत हो गई।

मद्रास कांलेज आंफ इंजीनियरिंग का सफर

ललिता अपने जीवन को संवारने के साथ-साथ अपने बेटी को भी पूरा समय देना चाहती थी और डाक्टरी का प्रोफेसन इस तरह का था कि उसके लिए किसी भी वक्त आपको अपनी सेवा देनी पड़ती थी, ललिता अपने लिए नौ बजे से पांच बजे तक की नौकरी ही चाहती थी। पिता और भाइयों को इंजीनियर होने का प्रभाव उनपर भी पड़ा।

पिता ने उनके फैसले में समर्थन किया और मद्रास कांलेज आंफ इंजीनियरिंग में उन्होंने अपना दाखिला हुआ। उनके दाखिले के तुरंत बाद ही दो और छात्राओं ने भी दाखिला लिया जिनका नाम लीलम्मा जार्ज और पीके थ्रेसिया था पर इन दोनों ने सिवित इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। इन तीनों ने एक-दूसरे का साथ हास्टल में निभाया और 1943 के आसपास अपनी डिग्री ली।

भारत की पहली महिला इंजीनियर ए. ललिता का करियर

इसके बाद ललिता ने अपने कैरियर की शुरुआत बिहार के जमालपुर में रेलवे वर्कशांप में एक साल की एप्रेंटाइसशिप की। कुछ साल सेंट्रल स्टैंडर्ड आंर्गनाइज़ेशन आंफ इंडिया, शिमला में बतौर इंजिनियरिंग असिस्टेंट काम किया। साथ ही साथ इंस्टीट्यूशन आंफ इंजीनियर्स, लंदन, यूके का ग्रैजुएटशिप एग्जाम भी दिया। वह अपने पिता के साथ रिसर्च में भी जुड़ी रही।

अपनी आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने असोसिएट इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीस ज्वाइन कर लिया। भारत के सबसे बड़े भाखड़ा नांगल बांध के लिए जनेटर प्रोजेक्ट उनके प्रसिद्ध कामों में से एक है। उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित किया गया। 1964 में न्यूयार्क में आयोजित पहले इंटरनेशनल कांन्फ्रेस आंफ वुमन इंजीनियर एंड साइंटिस्ट में उनको आमंत्रित किया गया।

अगर ललिता एक विधवा के तरह जीवन जीना स्कीकार कर लेती तो इसका सब कुछ अपने जीवन में कभी नहीं पा सकती थी। उन्होंने अपने लिए ही नहीं देश की कितनी ही महिलाओं के लिए इंजीनियर बनने के रास्ते खोल दिया।

60 वर्ष के आयु में एक गरिमापूर्ण जीवन जीते हुए उन्होंने इस दुनिया से अलविदा लिया और भारत के सामने बेमिसाल प्रेरणादायक कहानी छोड़ गईं, उनके लिए जो देश की अनमोल धरोहर हैं जो अपने जीवन में कुछ नया करने का सपना देख रही है। आज उनके सामने ललिता के तरह के संकट तो नहीं है, परंतु संकट बिल्कुल ही नहीं है यह नहीं कहा जा सकता है।

मूल चित्र : YouTube 

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