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दस साल के उम्र में गायिका एम एस सुब्बालक्ष्मी का पहला रिकार्ड बता देता है कि छोटी सी आयु में ही उनका संगीत शिक्षण आरंभ हो गया होगा। आज उनका जन्म दिवस है।
भारत रत्न, एम एस सुब्बालक्ष्मी जिनको पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ‘संगीत की रानी’ और बड़े गुलाम अली खान ने ‘शुद्ध स्वरों की देवी’, लता मंगेशकर ने ‘तपस्विनी’ और किशोरी आमोनकर ने ‘आठवाँ सुर’, जो संगीत के सात सुरों से भी ऊंचा है, कहा है।
आज के ही दिन 1916 में तमिलनाडु के मदुरै में उनका जन्म हुआ। उस वक्त आज का चैन्नई, मद्रास और मद्रास प्रेसीडेंसी कहा जाता है। श्रीमती मदुरै षण्मुखवडिवु सुब्बुलक्ष्मी उनका मूल नाम था पर लोग उन्हें सुब्बालक्ष्मी के नाम से ही जानते हैं।
दस साल के उम्र में उनका पहला रिकार्ड डिस्क ही बता देता है कि छोटी सी आयु में ही उनका संगीत शिक्षण आरंभ हो गया होगा। उनकी मां शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर कर्णाटक संगीत में पंडित नारायणराव व्यास से हिंदुस्तानी संगीत में शिक्षा ली थी। मात्र सत्रह साल के उम्र में म्यूजिक अकाडमी संगीत में सुब्बालक्ष्मी का संगीत कार्यक्रम ही उनकी संगीत साधना का प्रमाण दे देता है। मलयालम से लेकर पंजाबी तक भारत के उपलब्ध उनका संगीत उनको भाषाओं के सीमाओं से आजाद कर देता है।
एम एस सुब्बालक्ष्मी ने कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया। जिसमें अधिक याद वह मीरा फिल्म के लिए की जाती है जो 1945 में रिलीज हुई। यह फिल्म तमिल और हिंदी दोनों में बनाई गई और उसमें उनके मीरा भजन काफी लोकप्रिय रहे। उनका मीराबाई का किरदार हमेशा यादगार रहा है लोगों के जेहन में खासकर ‘मोरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई’ जब कानों में गुंजते है तो वह साक्षात कृष्ण की मीरा लगती थी।
बाद में उन्होंने संगीत आधारित सेवा सदनम, सावत्री भी की। उनको जल्द ही यह एहसास हो गया वह गायन के क्षेत्र में ही ज्यादा अच्छा कर सकती है।
उनके मीरा भजन के बारे में बहुत लोगों को पता है बहुत कम लोग जानते है कि उन्होंने महात्मा गांधी के अनुरोध पर ‘हरी तुम हरो जन की भीर’ गांधी भजन को संगीत और स्वर दोनों दिए। महात्मा गांधी ने यहा तक कहा कि अगर श्रीमति सुब्बालक्ष्मी ‘हरि तुम हरो जन की भीर’ गाने के बजाए बोल भी दें, तब भी उनको वह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा।
सुब्बालक्ष्मी भारत की वह पहली महिला है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में अपना संगीत प्रस्तुत किया। कर्णाटक संगीत को सर्वोत्तम ऊंचाई पर ले जाने में उनकी भूमिका को कभी नकारा नहीं जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष उनके जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में डाक टिकट जारी करने की घोषणा की है।
सुब्बालक्ष्मी को भारत ही नहीं दुनिया के सर्वोत्तम गायिका बनने में उनके पति सदाशिवम ने मार्गदर्शन की भूमिका निभाई, उन्होंने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है। उनके पति सदाशिवम गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे।
सुब्बालक्ष्मी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि रामधुन और भक्ति संगीत को गाने की प्रेरणा भी उन्हें अपने पति से ही मिली थी। सुब्बालक्ष्मी को ‘नाइटेंगेल आंफ़ इंडिया’ भी कहा जाता है। 2004 मे उनके देहात के बाद, आज भी उनकी जगह रिक्त है जो उन्होने अपने संगीत साधना से भरी थी। वह भारत की सच्ची भारत रत्न थी, ऎसा रत्न जिसकी कमी सदियों तक भारत को खलेगी।
(इस लेख को लिखने के लिए विकीपीडिया के संदर्भों का सहारा लिया गया है)
मूल चित्र : YouTube
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