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डॉ असीमा चटर्जी बनीं देश की पहली महिला वैज्ञानिक जिन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिली

डॉ असीमा चटर्जी का देश को एहसानमंद होना चाहिए क्योंकि कोरोना के वैक्सीन बनाने में या कोरोना के नियंत्रण में उनकी दवा से भी मदद ली जा रही है।

डॉ असीमा चटर्जी का देश को एहसानमंद होना चाहिए क्योंकि कोरोना के वैक्सीन बनाने में या कोरोना के नियंत्रण में उनकी दवा से भी मदद ली जा रही है।

डॉ असीमा चटर्जी की मौत के दस साल बाद गूगल ने उनको 2017 में 100वें जन्मदिवस पर डूडल बनाकर याद किया। अचानक से सब असीमा के बारे में यह जानकर आश्चर्य जाहिर करने लगे कि वह भारत में रसायन विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधी हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उनके पहले जानकी आमला को यह उपाधी मिल चुकी थी पर जानकी को यह उपाधी वनस्पति और कोशिका विज्ञान के क्षेत्र में मिला थी।

डॉ असीमा चटर्जी का जन्म 23 सिंतबर 1917 को कलकत्ता में हुआ था। यह वह दौर था जब बंगाल में लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में अपना दखल बढ़ा रही थी। 1930-40 के दशक में पश्चिम बंगाल की राजधानी में असीमा अचानक से चर्चा में आई थीं। उस दौर में भारत में गिनी चुनी महिलाएं ही साक्षर थीं।  उस समय असीमा ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में रसायनशास्त्र में ग्रेजुएशन और उसके बाद एम.एस सी किया, उसके बाद पी.के.बोस के निर्देशन में डी.एस.सी की उपाधि प्राप्त की।

इसके बाद असीमा ने पीछे मुड़कर नही देखा। 1940 में उन्होंने महिला कालेज कलकत्ता में रसायन विज्ञान के संस्थापक हेड के रूप में काम करना शुरू किया।  1944 में वो प्रवक्ता के रूप कार्यरत हुई। देश आजाद हुआ तब 1954 में वो विज्ञान विभाग में रीडर के रूप में नियुक्त हुईं जहां वह अंतिम समय तक रहीं।

एक दशक के बाद वे अति सम्माननीय चेयर, खैरा प्रोफेसर चेयर पद पर पदासीन हुईं। इस तरह असीमा प्रथम भारतीय महिला वैज्ञानिक हुईं। 1972 में यूजीसी से अनुदान प्राप्त विशेष प्रोग्राम की कोआंडिनेटर रही। यह काम प्राकृतिक उत्पादों की कैमिस्ट्री रिसर्च का था। उनके मेहनत से भारतीय मेडसीन के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया वो जीवनपर्यन्त इस पद पर रही।

यही उन्होने मारसीलिया माइनुटा नाम की एंटी ऐपिलैप्टिक दवा का निमार्ण भी उन्होंने ही किया था। जिससे मलेरिया निवारक दवाओं का निमार्ण हुआ। इनमें से अनेक पेटेंटेड दवाइयां कई कंपनियों के माध्यम से बिक रही हैं। जाहिर है उनकी दवा भारत में मलेरिया नियंत्रण में कामयाब रही है। आज जब हम कोरोना के लिए वैस्सीन और दवाओं की खोज में लगे हुए हैं तो डॉ असीमा चटर्जी का देश को एहसानमंद होना चाहिए क्योंकि कोरोना के वैक्सीन बनाने में या कोरोना के नियंत्रण में उनकी दवा से भी मदद ली जा रही है।

डां अशीमा ने औषधीय रसायन में विशेष योगदान दिया जिसमें प्रमुख शाखा थी अल्कालोइड्स, टरपेनोइड्स, और कार्बनिक रसायन। उनके चार सौ से ऊपर रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए। वह इंडियन नेशनल साइंस अकेडमी की फैलो भी रहीं।

1961 में उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया इसके साथ उन्हें 1975 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। वह इंडियन साइंस कांग्रेस की अध्यक्ष भी चुनी गईं। उन्हें राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए मनोनित भी किया जिसे उन्होंने 1982 से मई 1990 तक सफलतापूर्वक निभाया।

2006 में 90 साल के उम्र में वह इस दुनिया से चली गईं। डॉ असीमा चटर्जी वह भारतीय महिला हैं  जिनके बारे में स्कूलों में जरूर बताया जाना चाहिए जिससे लड़कियो में साइंस के प्रति रूचि पैदा हो और लड़किया साइंस के क्षेत्र में अपनी भूमिकाएं तलाश सकें।

नोट : इस लेख की जानकारी प्रीति श्रीवास्तव के किताब से जुटाई गई है।

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