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बेटा या बेटी होना हमारे हाथ में नहीं है…

अगर तुम हिम्मत करोगी तब ही कुछ होगा। तुमने बेटे की चाहत में अपनी बेटियों की जिंदगी खराब कर दी है। अब बस और बेटीयों की बलि नहीं चढ़ाएंगे।

अगर तुम हिम्मत करोगी तब ही कुछ होगा। तुमने बेटे की चाहत में अपनी बेटियों की जिंदगी खराब कर दी है। अब बस और बेटीयों की बलि नहीं चढ़ाएंगे।

नोट : विमेंस वेब की घरेलु हिंसा के खिलाफ #अबबस मुहिम की कहानियों की शृंखला में पसंद की गयी एक और कहानी!

“आज फिर से तू लेट आई, पता है ना कितने काम पड़े हैं!” कंचन अपनी कामवाली बाई गीता को कहती है।
“मेम साहब आगे से ऐसा नहीं होगा” गीता बोली। कंचन को उसकी आवाज से ऐसा लग रहा था कि वो बहुत दर्द में है।

कंचन गीता को कहती है “तुम ठीक हो, क्या बात है? बहुत उदास लग रही हो, कोई बात है? बोलो?”
“नहीं मेम साहब नहीं… ऐसा कुछ नहीं है, मैं ठीक हूँ। आप कोर्ट जाइए, मैं ठीक हूँ।”

“सब काम खत्म करके अनु को स्कूल से ले आना। मैं शाम को आ कर तुम से बात करती हूँ।” कंचन गीता को बोल कर कोर्ट के लिए निकल जाती है।

कंचन पेशे से वकील है। उसकी एक बेटी अनु है जो पांच साल की है। गीता कंचन के यहां करीब दो साल से काम कर रही है। गीता की तीन बेटियां हैं। बेटे की चाहत में उसके पति और सास ने पांच बार गीता का बच्चा गिराया है। क्योंकि पांचों बार गीता की कोख में बेटी थी। गीता की मर्जी ना होते हुए भी उसे जबरदस्ती सब करवाया जाता है। गीता की सास और उसके पति को बेटा चाहिए, तीन बेटियों का बोझ तो पहले से है ही और नहीं चाहिए।

अगले दिन गीता काम पर आती है तभी कंचन गीता के पास आती है और पूछती है “क्या बात है, बोलो? तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही है। कितनी कमजोर हो गई हो! क्या फिर से तेरे पति और सास ने तेरे साथ मारपीट की? कितनी बार मैंने बोला है, ये लोग कभी नहीं सुधरेंगे, छोड़ क्यों नहीं देती? मैं हूँ ना तेरे साथ, मैं तेरी तीनों बेटीयों की परवरिश अच्छे से करूंगी। तुम यहां काम तो करती ही हो, साथ मैं तुम अपनी एक सिलाई की दुकान भी खोल लेना। तुझे सिलाई कढ़ाई भी आती है। कब तक ऐसे जीयोगी?”

गीता कंचन की बातों को सुनकर रोने लगती है। “दीदी कैसे होगा ये सब? आप सब जानती हैं ना, मेरा पति कैसा इंसान है, वो इतनी आसानी से नहीं जाने देगा मुझे।”

कंचन गीता को कहती है “अगर तुम हिम्मत करोगी तब ही कुछ होगा। तुमने बेटे की चाहत में अपनी बेटियों की जिंदगी खराब कर दी है। बार-बार बच्चे को गिराने से तेरी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ रहा है। गीता मेरी बात ध्यान से सुनो, तुमने कभी ये सोचा कि बेटे की चाहत में तुमने कितनी अजन्मी बेटीयों की बलि दे दी। तुमने ये सोचा तुझे कुछ हो गया तो तेरी तीनों बेटीयों का क्या होगा। पहले से ही तेरी बेटीयां घर वालों के लिए बोझ हैं। बेटे की चाहत में इतनी अंधी भी ना हो जाओ कि तुम अपनी बेटीयों का भविष्य बबार्द कर दो। बेटा होना या ना तेरे हाथ में नहीं है। जब बेटीयां ही नहीं होगी तो बेटे कहाँ से होंगे।”

आप सभी लोगों से निवेदन है कि बेटे की चाहत में बेटीयों की बलि ना चढ़ाएं। बेटा या बेटी होना हमारे हाथ में नहीं है। औलाद का सुख अगर हमें मिलना होगा वो मिल जाएगा। चाहे बेटी हो या बेटा, कन्या भ्रूण हत्या ना करें।

मूल चित्र : Gift Habeshaw via Unsplash

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