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आईएएस अफसर रितिका जिंदल ने महिलाओं से अपील की कि वे आगे बढ़ कर रूढ़िवादी और पितृसत्ता वाली सोच का विरोध कर समाज की ऐसी विचारधारा को बदलें।
दुर्गा अष्टमी पर हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित मां शूलिनी के मंदिर में महिला आईएएस अफसर रितिका जिंदल को हवन यज्ञ करने से रोकने पर उन्होंने किया सालों से चली आयी परम्परा का अंत। दरअसल आईएएस अफसर रितिका जिंदल कार्यकारी तहसीलदार होने के साथ मंदिर अधिकारी भी हैं जो कि उस वक़्त मंदिर में कार्य व्यवस्था का जायज़ा लेने पहुंची थीं। लेकिन जब उन्होंने हवन में बैठने के इच्छा व्यक्त करी तो पंडितों ने तर्क दिया कि कोई भी महिला हवन में हिस्सा नहीं ले सकती हैं। और इस रूढ़िवादिता के नाम पर महिलाओं से भेदभाव को आईएएस रितिका जिंदल ने गंभीरता से लिया और पंडितों को समानता के बारे में बताते हुए हवन में हिस्सा भी लिया।
डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर्स (IAS) के ट्विटर हैंडल @DCsofIndia से ट्वीट में रितिका जिंदल के इस कदम की तारीफ में कहा गया है कि ‘युवा आईएएस अधिकारी रितिका जिंदल को सैल्यूट कि उन्होंने सोलन हिमाचल प्रदेश के शूलिनी देवी के मंदिर में हवन में हिस्सा लेकर युग पुरानी संकीर्ण परम्परा को तोड़ा। उन्होंने पुजारियों और अन्य को समानता का पाठ भी पढ़ाया। इस साहसी अधिकारी ने दशहरे की सही भावना हमें दिखाई।’
रितिका जिंदल ने पंडित और वहां मौज़ूद अन्य लोगो से कहा, “एक लड़की या महिला को हवन में हिस्सा नहीं लेने देना तार्किक नहीं है। इसका कोई तुक नहीं है। हम आंखें मूंद कर किसी बात का इसीलिए समर्थन नहीं कर सकते कि वो बरसों से चलती आ रही है। हमारा संविधान सबको समान अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सुनिश्चित किया है।”
“आप लोगों ने मुझे हवन में बैठने के लिए इसलिए अनुमति दी कि मैं मंदिर की ऑफिस इंचार्ज हूं। सभी महिलाओं और लड़कियों को आज से हवन में बैठने की अनुमति मिलनी चाहिए। भगवान की पूजा हर एक का अधिकार है और किसी भी नागरिक को लैंगिक, जातिगत या किसी भी अन्य कारण की वजह से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए।” रितिका जिंदल ने महिलाओं से अपील की कि वे आगे बढ़ कर ऐसी रूढ़िवादी और पितृसत्ता वाली सोच का विरोध करें।
इस वाक़ये को लेकर अमर उजाला से रितिका जिंदल ने कहा कि अष्टमी के दिन हम महिलाओं के सम्मान की बात तो करते हैं, लेकिन उन्हें उन्हीं के अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इस मानसिकता को देखकर उन्हें भारी धक्का लगा और उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि सभी महिलाओं को ऐसी विचारधारा बदलने की आवश्यकता है और इसे वे तभी बदल सकती हैं, जब वे इस रूढ़िवादी सोच का विरोध करेंगी। मैं एक अधिकारी बाद में हूं, महिला पहले हूं। महिला होने के नाते ही उन्होंने यह लड़ाई लड़ी है। यह अधिकार हर महिला को मिलना चाहिए।
जहां एक और रितिका जिंदल के साहसी कदम को सराहा जा रहा है वहीं उन्हें ट्रॉलिंग का शिकार भी होना पड़ा। इंटरनेट पर कुछ यूजर्स इसे अन्य धर्मों से जोड़ रहे हैं तो कुछ उसी रूढ़िवादी परंपरा के साथ रहने को सपोर्ट कर रहे हैं। कुछ यूजर्स लिख रहे हैं कि ये उनकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं था। ये सब पब्लिसिटी के लिए किया गया है। ये सत्ता का गलत इस्तेमाल है। कुछ यूजर्स ने हैशटैग SackRitikaJindal भी चलाना शुरू कर दिया।
हवन में महिलाओं या दलितों को हिस्सा नहीं लेने देना या मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं देना कोई नई बात नहीं है। और इस तरह किसी अच्छी शुरुवात का ट्रोल होना भी कोई नयी बात नहीं है। तनिष्क के विज्ञापन से लेकर रितिका जिंदल की पहल तक जब जब किसी नए पहलू को उठाया जाता है तो इसी तरह उस पर कुछ इंटरनेट यूजर्स अपनी फ़िज़ूल राय रखकर प्रताड़ित करते हैं। लेकिन इन सबसे से उठकर हमें सपोर्ट करना होगा और महिलाओं को ही आगे आकर रूढ़िवादिता को खत्म करना होगा अन्यथा हर साल यूं ही 9 दिन लड़कियों की दिखावटी पूजा करी जाएगी और बदलेगा कुछ नहीं।
रितिका जिंदल पंजाब की रहने वाली हैं। वे कॉमर्स स्ट्रीम से सीबीएसई टॉपर रह चुकी हैं। उन्होंने अपना ग्रेजुएशन दिल्ली विश्वविद्यालय से किया। और उसके तुरंत बाद वे 2017 में यूपीएसई की तैयारी में जुट गयी थी। लेकिन उसी दौरान उनके पिता को टंग कैंसर हुआ जिस वजह से वे इसे क्लियर नहीं कर पायी। 2018 में अपने दूसरे एटेम्पट के दौरान उनके पिता को लंग कैंसर हुआ लेकिन इस बार उन्होंने ना केवल एग्जाम पास किया बल्कि आल इंडिया 88th रैंक भी हासिल करी। रितिका जिंदल इसका श्रेय अपने पिता को देती हैं।
मूल चित्र : Twitter
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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