कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अपनी बहु से कह दो सूट नहीं साड़ी पहने…

काम के बीच चाचा ससुर की बेटी रमा के पास आकर बोली, "भाभी, पापा बहुत गुस्सा हो रहे हैं। बोले बहु से कह दो कि साड़ी पहन ले।"

काम के बीच चाचा ससुर की बेटी रमा के पास आकर बोली, “भाभी, पापा बहुत गुस्सा हो रहे हैं। बोले बहु से कह दो कि साड़ी पहन ले।”

मायके आते ही रमा ने सारा काम संभाल लिया था। चाहे घर हो या बाहर बड़ी जिम्मेदारी से काम निपटा रही थी। तीन दिन बाद रमा की छोटी बहन रुपाली की शादी जो थी।  रमेश जी को तो अपनी बड़ी बेटी रमा की शादी के बाद रुपाली की ही चिंता थी कि उसे भी अच्छा सा रिश्ता मिल जाये। भगवान ने उनकी जल्दी सुन ली तभी तो अच्छी नोकरी वाला लड़का उन्हें अपनी बेटी के लिए मिल गया।

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थी। रमा घर की बड़ी बेटी थी और समझदार भी। शादी से पहले तक तो वो अपने घर का मानो लड़का ही थी। भाई-बहन छोटे थे, तो उनके एडमिशन से लेकर बिजली, पानी, बीमा सबका हिसाब किताब रमा ही रखती थी। फिर रमा की शादी हो गई पर रमा ने जाते जाते अपने भाई को काफी हद तक दुनियादारी और जिम्मेदारी का काम सीखा दिया था।

रुपाली की शादी तय हुई तो रमेश जी कार्ड लेकर सबसे पहले रमा के ससुराल ही गए और निमंत्रण देकर ससुराल में सबसे आग्रह किया था कि रमा की माँ लकवाग्रस्त होने के कारण ज्यादा काम नहीं कर पाती इसलिये शादी की तैयारियां रमा को ही देखनी हैं, सो उसे जल्दी ही मायके भेज दिया जाये।

रमा के ससुराल वाले भी बहुत अच्छे और समझदार थे और रमा की सास सरिताजी ने तो उसी समय रमेश जी के साथ अपनी बहू को भेज दिया। वो जानती थी कि रुपाली की शॉपिंग से लेकर घर बाहर सब रमा को ही देखना है और फिर लड़की की शादी में तो कितना काम रहता है बेचारे रमेश जी अकेले कहा तक देखेंगे।

रमा तो पहले से ही मायके आ चुकी थी पर ससुराल वाले शादी के एक दिन पहले ही आने वाले थे। रमेश जी के रिश्तेदार और रमा के ससुराल वाले जिस गाड़ी से बनारस आ रहे थे, वह रात को बारह बजे बनारस पहुँची थी। घर आते आते एक बजने को था।

वैसे तो रमा ससुराल में साड़ी ही पहनती थी और ससुराल में बड़ो को पल्ला भी करना होता था। पर मायके में रोज-रोज बाजार और शादी की भागदौड़ में उस दिन सूट ही पहनी थी। रात भी काफी हो चुकी थी और रमेश जी ने औरतों और पुरुषों के ठहरने की व्यवस्था अलग-अलग करवाई थी, तो रमा ने सोचा कोई पुरूष तो होगा नहीं और थोड़ी देर के लिए क्या साड़ी पहनना इसलिए रात में थकान और आलसी में सूट चेंज नहीं किया। जब मेहमान पहुँचे तो दुप्पट्टे से ही सिर पर पल्ला कर लिया।

थोड़ा बहुत खा कर सब सोने चले गए। पर रमेश जी की आंखों में नींद कहा आने वाली थी? एक बेटी की कल शादी है और एक बेटी के ससुराल पक्ष के इतने सारे रिश्तेदार पहली बार घर आये हैं।आवभगत में कहीं कोई कमी न रह जाये, इसलिये बार-बार व्यवस्था देख रहे थे। कहीं सोने के लिए गद्दे-पल्ली कम न पड़ जाए। कोई भूखा न सो जाये। रमा भी पापा के साथ-साथ सारी व्यवस्था देख रही थी। आखिर उसे भी अपने ससुराल वालों का ध्यान रखना था, वरना बाद में रिश्तेदार भी कहने से नहीं चूकते और अपने पापा के मान सम्मान में कोई ऊँगली उठाये ये किसी भी बेटी से सहन नहीं होता।

सुबह सुबह रमा चाय नाश्ते में लगी थी और दुप्पट्टे से पल्ला भी करी हुई थी कि तभी चाचा ससुर की बेटी रमा के पास आकर बोली, “भाभी, पापा बहुत गुस्सा हो रहे हैं। बोले बहु से कह दो की साड़ी पहन ले।”

रमा सोचने लगी वो तो पुरुषों वाले कमरे में गई भी नहीं, न ही किसी के सामने गई फिर चाचा ससुर ने उसे सूट में कब देख लिया? रमा को मन से बुरा लगा और जल्दी से सूट बदल कर साड़ी पहन ली और घूँघट कर लिया। वह सोच रही थी कि ‘माँजी तो कल से ही मेरे साथ ही है पर उन्होंने मुझसे एक बार भी नही कहा कि बहु साड़ी पहन लो जब उन्हें कोई परेशानी नही है तो चाचा ससुर को आखिर क्या परेशानी है दूसरे की बहु है कुछ भी पहने?’

साथ में रमा को अब यह डर भी था कि कही ये सूट वाली बात पापा को पता न चल जाये वरना उनका मन भी दु:खी होगा और मुझपर ही गुस्सा करेंगे। धीरे धीरे रिश्तेदारो में खुसर फुसर होने लगी। रमा की सास भी सब देख सुन रही थी पर कुछ न बोली।

शाम को सब सज धज के शादी वाले गार्डन पहुँच चुके थे। बारात आने मे अभी समय था। रमा भी नीली साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी। सब खाने-पीने में व्यस्त थे पर रमा के पास तो अभी फुर्सत ही कहा थी कभी रूपाली को तैयार करती तो कभी रिश्तेदारो को देखती। रमेश जी द्वार पर खड़े बारात का इंतजार कर रहे थे। किसी को कुछ भी काम या सामान की जरूरत होती सब रमा को ही आवाज देते।

सभी मेहमान रमा की तारीफ कर रहे थे और सरिताजी को रमा जैसी बहु मिलने के लिए बधाई भी दे रहे थे। सरिताजी भी बहु को इस तरह जिम्मेदारी से काम करते हुए देख कर फूली नहीं समा रही थी। इतने में चाचा ससुर रमा की सास के पास आकर बोले, “देख रही हो भाभी, तुम्हारी बहु को तुम्हारी मान मर्यादा की बिल्कुल फिकर नहीं है। कैसे बिना घूँघट किये दौड़ती फिर रही है, हमें तो देखने मे भी शर्म आती है।”

चाची सास भी मुँह बनाते हुए बोली, “लाज शर्म भी बिल्कुल न है। कल भी सूट पहने ही घूम रही थी और आज देखो… जब पता है कि मेरे ससुराल वाले यहाँ हैं, तो सूट पहनने की क्या जरूरत थी?”
दोनो पति पत्नी मिलकर सरिताजी जी को उकसाने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे।

अब सरिताजी से भी रहा न गया। वो बोलीं, “ये उसका मायका है छोटी, और क्या हो गया जो सूट पहन लिया? सूट में ही सही पर सिर पल्ला तो तब भी किया था और अभी भी किया हुआ है उसने। बहन की शादी है, घर की बड़ी बेटी होने के नाते कई जिम्मेदारी है उसपर। अब वो काम करेगी या घूँघट करते फिरेगी?”

“तो क्या हुआ भाभी? रमा को भूलना नहीं चाहिये मायके में है तो क्या।, आखिर है तो बहु ही न?” चाची सास बोली

“भले ही वो मेरी बहु है, पर उसे मेरी बेटी की ही तरह पहनने ओढ़ने की आजादी है। और रही बात मान-मर्यादा की तो संस्कार और मर्यादा तो व्यवहार में होती है न कि पहनावे में। अगर मेरी बहु के घूँघट न करने से आपको शर्म आती है तो आप उस और देख ही क्यों रहे हो?” कहते हुए सरिता जी वहाँ से चल दी।

दोनो पति पत्नी एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए।

दोस्तों, हर परिवार में कुछ रिश्तेदार ऐसे होते ही है जिन्हें दूसरे की बहू बेटियां क्या कर रही हैं, क्या पहन रही हैं, उनमें ज्यादा इंटरेस्ट होता है। इसलिए अपने परिवार की खुशियां बनाये रखने के लिए ऐसे मतलबी रिश्तेदारो की बातों में आने से बचें।

मेरी कहानी अच्छी लगे तो लाइक करना न भूलें। धन्यवाद।

चित्र साभार :  gawrav from Getty Images Signature via Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Babita Kushwaha

Devoted house wife and caring mother... Writing is my hobby. read more...

15 Posts | 642,609 Views
All Categories