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कसम से अब घोर कलियुग आ गया है…

लड़कियाँ क्या क्या नहीं इस्तेमाल कर रहीं है संस्कारों की फैक्ट्री उजाड़ने के लिए। आजकल संस्कारों पर हमले हो रहे हैं, घोर कलियुग आ गया है।

लड़कियाँ क्या क्या नहीं इस्तेमाल कर रहीं है संस्कारों की फैक्ट्री उजाड़ने के लिए। आजकल संस्कारों पर हमले हो रहे हैं, घोर कलियुग आ गया है।

सुना है आजकल संस्कारों पर हमले हो रहे हैं। लड़कियाँ राफेल से लेकर नेवी के शिप्स तक इस्तेमाल कर रहीं है संस्कारों की फैक्ट्री उजाड़ने के लिए। घोर कलियुग आ गया है कसम से। लड़के ने किचन में पैर धर दिए तो संस्कारों के गोडाउन में ग्रेनेड फट गए। लड़कियों ने ऑफिस में पैर पसारे तो संस्कारों की नैया पलट कर ज़ार ज़ार हो गयी।

‘अपनी’ कथित सँस्कृति इस घोर कलियुग में

उस पर स्लीव्स की घटती हुई लम्बाई और स्कर्ट की लंबाई का तो कहना ही क्या? इन मिसाइल की मारक क्षमता ने तो संस्कृति और सम्पूर्ण सभ्यता छिन्न भिन्न कर रखी है। पर ऐसे थोड़े चलेगा? कुछ वीर संस्कृति रक्षक मन्च के जिजीविषा युक्त योद्धा बचाने में लगे हुए हैं, ‘अपनी’ कथित सँस्कृति। जिसमें नारी की जगह रसोई और नर की ऑफिस में नियत है। ये इन दोनों को अपनी अपनी लक्ष्मण रेखा पार करने नही देंगे।

लक्ष्मण रेखा सुरक्षा के लिए खींची गई थी, बंधन के लिए नहीं

पर ये भूल जाते हैं कि लक्ष्मण रेखा सुरक्षा के लिए खींची गई थी, बंधन के लिए नहीं। पर इन्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है। ये तो लकीर के फकीर बनकर अपनी ढपली अपना राग पीटेंगे, चाहे दुनिया मल्हार गाकर मेघ बुला रही हो। इन्हें तो दीपक राग गाकर दियों की बजाय अरमान जलाने हैं महत्वाकांक्षी बालाओं के और राख करना है, सह अस्तित्व की भावना को।

कोई बात नहीं। हम भी बिगुल बजाते रहेंगे। इनके कथित संस्कारों की कलाई खोल कर इन्हें दिखाते रहेंगे। ये आंखे मूंद लें फिर भी रौशनी के दिये जलाते रहेंगे।

#बैंकवालीपण्डिताइनकीकलमसे

मूल चित्र : graytown from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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