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छत्तीसगढ़ के मड़ई मेले की एक अजीब सी प्रथा में महिलाओं की पीठ पर चलते हैं पुरुष!

छत्तीसगढ़ के मड़ई मेले में जब महिलाएं एक पंक्ति में लेट गईं तो कई पुजारी और बैगा मंदिर में प्रवेश करने के लिए उनकी पीठ पर चढ़ गए। 

छत्तीसगढ़ के मड़ई मेले में जब महिलाएं एक पंक्ति में लेट गईं तो कई पुजारी और बैगा मंदिर में प्रवेश करने के लिए उनकी पीठ पर चढ़ गए। 

छत्तीसगढ़ से एक अजीब प्रथा की तस्वीर सामने आई है, जिसमें महिलाएं पेट के बल जमीन में लेटी हुई हैं और उनके पीठ पर से बैगा और पंडित छत्तीसगढ़ ज़िले धमतरी में बने एक मंदिर की ओर प्रवेश कर रहे हैं।

इस प्रथा के अनुसार शादी-शुदा महिलाएं अगर जमीन पर लेटी रहेंगी और उनके ऊपर से पुजारी और पुरुष गुज़रेंगे तब उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। हर साल यह मेला लगता है, जिसका नाम मड़ई मेला है। रायपुर से लगभग 90 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में देवी अंगारमोती के मंदिर में दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मेला लगता है।

महिलाओं की पीठ को रौंदकर मंदिर में प्रवेश

इस साल 20 नवंबर को हुई इस प्रथा में लगभग 52 गांवों की 200 से अधिक महिलाएं अपने बालों को सड़कों पर फैला कर जमीन पर पेट के बल लेट गईं। इस दृश्य को देखने के लिए वहां लोगों की काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। साथ ही वह भीड़ जमीन पर लेटी महिलाओं को देवी के नाम पर लोग नींबू, नारियल और पूजा सामग्री भेंट कर रहे थे।

जब सभी महिलाएं एक पंक्ति में लेट गईं तो, परण परंपरा को निभाते हुए, करीब एक दर्जन पुजारी और बैगा डॉक्टर बड़े झंडे लेकर मंदिर में प्रवेश करने के लिए उनकी पीठ पर चढ़ गए फिर महिलाओं की पीठ को रौंदते हुए वे आगे बढ़ने लगे। एक ओर जब कोरोना का दृश्य फिर से डराने वाला है, ऐसे में ऐसे मेलों से लोगों को दूरी बना लेनी चाहिए मगर अंधविश्वास के आगे लोगों की आंखें बंद हो जाती है।

यह समाज का दोहरा चेहरा ही है, जिसमें पहले महिलाओं को देवी बना देते हैं फिर उनके ऊपर केवल इसलिए चढ़ते हैं ताकि उन्हें संतान प्राप्ति हो, मगर यह कही से भी तर्क संगत नहीं है। 

नाजुक अंगों समेत मानसिक परेशानी

प्रथा के नाम पर महिलाओं के साथ यह व्यवहार बिल्कुल गलत है क्योंकि इससे उनके नाजुक अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही यह प्रथा महिलाओं के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को भी कुचलने का काम करता है क्योंकि महिलाएं मानसिक रुप से प्रताड़ित महसूस करती हैं, और सिर्फ इस प्रथा से बच्चों का होना नामुमकिन है।

किसी भी पुरुष के शरीर पर चलकर प्रवेश करने से बच्चे नहीं होते मगर इस प्रथा के अनुसार माना जाता है कि पुजारी और बैगा के इन महिलाओं की पीठ पर चलने से ये महिलाएं प्रेगनेंट हो जाती हैं।

महिलाओं के स्वाभिमान के साथ समझौता

लोग एक ओर जहां बदलाव की बात करते हैं, वहीं ऐसी तस्वीर का सामने आना बदलाव को झूठा साबित कर देता है। लोगों में जागरुकता की कमी के कारण ही ऐसे दृश्य सामने आते हैं। महिलाओं को स्वयं इन प्रथाओं का बहिष्कार करना चाहिए क्योंकि यह उनके स्वाभिमान के साथ समझौता है।

भले ही कुछ महिलाएं इसका विरोध करती होंगी मगर उन्हें भी संतान की चाह में जबरदस्ती लेटा दिया जाता है। यह सरासर गलत है और इसका विरोध करने और अंधविश्वास को खत्म करने के लिए महिलाओं को आगे आना ही होगा और समझना होगा कि बिना संतान के वे किसी से कम नहीं हो जातीं।

चित्र साभार : TOI Twitter  

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