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मेरे कपड़ों से मेरे करैक्टर का क्या लेना देना है…

ये झूठ बोल रहा है! इसने मेरी कुछ वीडियो और फोटो ले ली थी और मुझे धमकी दे रहा था कि उसे सोशल मीडिया पर डाल देगा और जब मैंने मना किया तो...

ये झूठ बोल रहा है! इसने मेरी कुछ वीडियो और फोटो ले ली थी और मुझे धमकी दे रहा था कि उसे सोशल मीडिया पर डाल देगा और जब मैंने मना किया तो…

दादी, दादी की आवाज़ से पूरा शर्मा निवास गूंजा करता था। हर काम के लिये सुम्मी दादी को ही आवाज़ लगाती और कोई था भी तो नहीं। सुम्मी के मम्मी पापा तो जब वो दो साल की थी तभी एक कार एक्सीडेंट में गुज़र गए थे।

संपत जी और शीला जी के दो बेटे थे अजय और विजय। छोटा सा परिवार जिसमें खुशियाँ भरी थीं और इन खुशियों को साझा करने के लिए अजय की पत्नी बन आ गयी थी, स्नेहा। बेटी को तरसती शीला जी को बहु में बेटी मिल गई।

जब सुम्मी के आने की आहट हुई, तो सब की खुशी दोगुनी हो उठी थी। नन्हे-नन्हे क़दमों से ठुमकती सुम्मी जब चलती तो सब निहाल हो उठते। लेकिन इन खुशियों को किसी की नज़र लग गई जब एक दिन एक भयानक कार एक्सीडेंट में स्नेहा और अजय हमेशा के लिये चले गए और पीछे छोड़ गए अपने लिये बिलखता तड़पता उनका परिवार।

नन्ही सुम्मी जब अपने माँ के लिये मचलती तो पड़ोसियों तक की ऑंखें भर आतीं। सुम्मी के लिये शीला जी ने खुद को तो किसी तरह संभाल लिया, लेकिन संपत जी खुद को नहीं संभाल पाये और अपने लाडले बेटे बहु के ग़म में छः महीने में ही वो भी स्वर्ग सिधार गए।

सबसे बड़ा नुकसान तो शीला जी का हुआ था पहले जवान बेटा, बहु और अब उनका सुहाग। समय ने मरहम लगाया और शीला जी, सुम्मी और विजय तीनों ने फिर से जिंदगी जीनी सीख ली।  देखते-देखते सुम्मी भी चौदह साल की हो गई और हाई स्कूल में पढ़ने लगी। समय पर विजय की शादी भी विभा से हो गई।

विभा को घर के हालत पहले ही विजय ने समझा दिये थे। विभा एक पढ़ी लिखी सुलझी लड़की थी, सुम्मी को माँ और चाची दोनों का प्यार देती। एक दिन विभा ने कहा, “माँजी! मेरे ताऊजी का लड़का है जय, मेडिकल की कोचिंग के लिये इसी शहर में उसका एडमिशन हुआ है। उनके घर की आर्थिक हालत इतने ठीक नहीं है। हमारा तो इतना बड़ा घर है अगर आप कहो तो छत वाला कमरा उसको दे दूँ?”

शीला जी को बात उचित तो नहीं लगी लेकिन, सीधा सीधा विभा को मना करना भी ठीक नहीं लगा और जय रहने आ गया। ज्यादा अपने रूम में ही रहता और घर के भी छोटे मोटे काम कर देता तो शीला जी भी उसकी तरफ से बेफिक्र सी हो गई। इधर कुछ दिनों से सुम्मी थोड़ी चुपचुप सी रहने लगी थी। पहले स्कूल से आती तो विभा के बच्चों के साथ खेलती लेकिन अब अपने कमरे में ही रहती।

“क्या हुआ सुम्मी? कोई बात है क्या मेरी बच्ची, अपनी दादी को नहीं बतायेगी?” जब शीला जी ने पूछा तो उनके गोदी में सिर रख सुम्मी ने कहा, “नहीं तो दादी कोई बात नहीं है। बस पढ़ाई ज्यादा है तो थक जाती हूँ”, और धीरे से आँखों के गीले कोर को पोछ लिया।

गर्मियों की एक दोपहर थी। विभा काम ख़त्म कर अपने बच्चों को ले सोने चली गई। शीला जी को भी दो दिन से बुखार था वो भी दवा लेकर,  सोने का प्रयास कर रहीं थीं। अभी आँख लगी ही थी कि  छत से कुछ आवाज़ आयी। कच्ची नींद में कुछ समझती तक तक वापस से आवाज़ आयी।

कभी-कभी बंदरों का झुण्ड आ जाता था छत पे कहीं जय डर ना जाये ये सोच विभा को आवाज़ लगाई। थकी होने के कारण विभा ने सुना नहीं और कमरे से बाहर नहीं आयी। शीला जी ने सुम्मी को आवाज़ लगाते उसके कमरे में झांका और सुम्मी को ना देख उन्हें थोड़ा अजीब लगा, लेकिन जय की चिंता थी तो खुद ही सीढ़ी के पास रखा डंडा उठाया और छत पे चली गईं।

देखा तो छत पे कोई नहीं था, वापस आने को मुड़ी ही थी कि सुम्मी के सिसकने की आवाज़ आयी। अनजानी आशंका से पूरे शरीर में सिहरन फ़ैल गई।  खिड़की के पास गई तो एक पल्ला खुला था अंदर झांकते ही शीला जी दंग रह गईं। जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगी थोड़ी देर में दरवाजा खुला और शीला जी डंडा ले जय को पीटने लगी अपनी दादी को देख भाग के सुम्मी दादी के पीछे छिप गई।

शीला जी की बूढ़ी हड्डियां आज रुक नहीं रही थीं और वे जय को मारे जा रही थीं। अपनी जान बचा जय नीचे की और भागा। शोर सुन विभा भी कमरे से बाहर आ गई, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा था।

“दीदी! बचाओ मुझे ये बुढ़िया मुझे मार डालेगी”, सीढ़यों से उतरती शीला जी और सुम्मी की तरफ इशारा कर जय बोला।

“ये क्या हो रहा है माँजी? जय के चोट कैसे आयी और ये खून?”

“ये अपने भाई से पूछो बहु, सुम्मी क्या कर रही थी इसके कमरे में?”  सिंघनी की तरह दहाड़ते हुई शीला जी ने कहा। क्रोध से थर्र-थर्र  काँप रही थीं शीला जी।

आश्चर्य से आँखे फट गई विभा की, जब उसने जय को देखा तो खुद को बचाने के लिये जय झूठ बोलने लगा कि मैंने कुछ नहीं किया ये सुम्मी खुद आयी थी कमरे में।

“दादी, चाची! ये झूठ बोल रहा है! इसने मेरी कुछ वीडियो और फोटो ले ली थी और मुझे धमकी दे रहा था कि उसे सोशल मीडिया पर डाल देगा और जब मैंने मना किया तो कहने लगा कि सारी तस्वीरें चाचा को भेज देगा और आप सब शर्म से आत्महत्या कर लेंगे। मैं डर गई और आज इसके कमरे में चली गई वो तो आप आ गई दादी वरना आज मेरी इज़्ज़त नहीं बचती।”  रोते-रोते सुम्मी हाँफने लगी थी।

विभा ने जय को कस के दो थप्पड़ जड़ दिये और कहा, “तुझे मैंने इस घर में आसरा दिया और तूने इसी घर की इज़्ज़त पे हमला किया? अरे! कुछ तो शर्म की होती थोड़ी तो मर्यादा रखी होती रिश्तों की।”

जय अभी भी अपनी गलती नहीं मान रहा था और विभा से कहने लगा, “इतने छोटे-छोटे कपड़ों में घूमेगी तो मैं क्या कोई भी लूज़ करैक्टर समझेगा।”

चटाक! एक कस के थप्पड़ सुम्मी ने जय के गालों पे दिया, “मेरे कपड़ों से मेरे कैरेक्टर को नापने वाले तुम कौन होते हो? गलती मेरी है अगर पहले दिन ही ये थप्पड़ तुम्हे जड़ दिया होता या दादी और  चाची को बता देती तो आज तुम्हारी हिम्मत इतनी ना बढ़ती।

हाँफती सुम्मी को विभा ने अपने बाहों ने ले लिया और  तुरंत विजय को कॉल किया। सारी बात सुन विजय जय को मारने दौड़ा लेकिन विभा ने उसे रोक तुरंत पुलिस को ख़बर की और जय को उनके हवाले कर दिया।

“मुझे माफ़ कर दे सुम्मी, मेरे भाई के कारण तुझे इतना कुछ सहना पड़ा”, विभा ने सुम्मी से माफ़ी मांगते हुए कहा।

“नहीं चाची, गलती मेरी है मुझे डरना नहीं चाहिए था।” अपने भाई-भाभी की अमानत पे आंच आती देख विजय और विभा बहुत दुखी हुए लेकिन सुम्मी सुरक्षित थी इसकी तसल्ली थी। पूरे परिवार ने मिल कर जय को उसकी हरकतों की सजा दिलवाई और सुम्मी ने भी इन सब बातों को भुला एक नई शुरुआत की।

Picture Credits: Bhupi from Getty Images Signature, via CanvaPro

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