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इस बार लाडली मीडिया अवार्ड जीतने के बाद मेरी इन तीन विजेताओं से बात हुई!

इस बार लाडली मीडिया अवार्ड की कुछ विजेताओं से हमारी बात हुई तो उन्होंने अपने लेखन के सफर और लाडली तक पहुंचने के खबर को हमसे साझा किया।

इस बार लाडली मीडिया अवार्ड की कुछ विजेताओं से हमारी बात हुई तो उन्होंने अपने लेखन के सफर और लाडली तक पहुंचने के खबर को हमसे साझा किया।

हम सभी को प्रोत्साहन एक मजबूती प्रदान करता है ताकि हम अपने फील्ड में बेहतर कर सकें। पत्रकारिता और लेखन जगत में अगर प्रोत्साहन मिले तो इससे लिखने को और मजबूती मिल जाती है, जिसमें युएनएफपीए-प्रतिष्ठित दसवीं लाडली मीडिया एंड एडवरटाइजिंग अवॉर्ड फॉर जेंडर सेंसटिविटी अवार्ड  एक बेहद प्रेरणादायक अवार्ड है। यह अवार्ड पत्रकारिता और लेखन में जेंडर बेस्ड अर्थात लिंग पर होने वाले मतभेदों को सामने लाने का प्रयास करता है।

यह उन लोगों को प्रोत्साहित करता है, जिन्होंने इन सामाजिक मुद्दों पर अपनी कलम चलाई है और बदलाव की दिशा में अपने कदम को आगे बढ़ाया है, ताकि हाशिए पर खड़े हर उस व्यक्ति को बोलने की हिम्मत मिले। लाडली मीडिया मुंबई स्थित पॉपुलेशन फर्स्ट एनजीओ से और युएनएफपीए से भी जुड़ा है।

हम सब जानते हैं कि कोरोना ने हम सबकी जीवन को अनेक तरह से प्रभावित किया है, जिसकी बानगी इस बार के लाडली मीडिया अवार्ड में भी दिखी। 10वां लाडली मीडिया अवार्ड इस साल यूट्युब के ज़रिये संपन्न हुआ। चीफ गेस्ट में इस साल नेशनल कमीशन फॉर वूमेन की चेयरपर्सन रेखा शर्मा थीं और गेस्ट ऑफ ऑनर में इस साल युएनएफपीए की रिप्रेजेंटेटिव अर्जेंटीना माटावेल पिकिन थीं। साथ ही प्रोग्राम का संचालन डॉ. अनोना ने किया, जो स्वयं मल्टी वूमेन हैं।

लाडली मीडिया अवार्ड के लिए लोगों का उत्साह चरम पर रहा

पॉपुलेशन फर्स्ट की निदेशक एआई शारदा ने बताया कि लाडली मीडिया अवार्डस यह साबित करता है कि सबसे खराब परिस्थितियों और मुश्किल समय में एक आशा है। वे कई पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के लिए रोल मॉडल हैं। इस बार 75 मीडियाकर्मियों को पुरस्कार और 18 को ज्युरी प्रशंसापत्र दिया गया है। बताया गया कि इस बार पूरे भारत से 10 भाषाओं में 1100 से ज्यादा प्रविष्टियां आईँ थीं।

जानिये लाडली मीडिया अवार्ड की कुछ विजेताओं और उनके सफर को

इस बार की कुछ विजेताओं से हमारी बात हुई तो उन्होंने अपने लेखन के सफर और लाडली तक पहुंचने के खबर के हमसे साझा किया।

स्वाति के लिए लिखना ज़मीन से जुड़ना है

इस कड़ी में सबसे पहला नाम स्वाति सिंह का आता है। स्वाति ने लिखना इसलिए शुरु किया क्योंकि उन्हें ज़मीनी हकीकत को सामने लाना अच्छा लगता है। स्वाति बताती हैं कि जब वे लिखती है, उससे समाज की सच्चाई सामने आती है, जिससे लोग अंजान रहते हैं।

खासकर लड़कियों के लिए उनकी कलम हमेशा से लिखती है क्योंकि पितृसत्ता के खिलाफ उनकी लड़ाई स्वयं अकेले की नहीं है। आज समाज की हर एक लड़की पितृसत्ता से जूझती है, जिसकी आवाज़ बनना स्वाति को हिम्मत देता है। साथ ही स्वाति मुहीम नामक अपने एक एनजीओ भी संचालन करती हैं, जिसमें लड़कियों को माहवारी की जानकारी देना वे अपना दायित्व समझती है। उनके लिए हिंदी में लिखना इसलिए जरुरी है क्योंकि जमीनी मुद्दों से हिंदी भाषा न्याय करेगी क्योंकि लोग हिंदी में पढ़ेंगे, तब शब्दों से जुड़ेंगे भी।

स्वाति को उनकी लिखी स्टोरी लड़कियों के लिए आज भी बुरा समझा जाता है नर्स बनना के लिए मिली है। उन्हें 2018 में भी अपने लेख प्लास्टिक सेनेटरी पैड का खतरनाक खेल #ThePadEffect के लिए भी अवार्ड मिल चुका है।

रितिका की कश्मीर में साहसिक रिपोर्टिंग

इस कड़ी में अगला नाम आता है रितिका का, जिन्हें इस साल लाडली अवार्ड से सम्मानित किया गया है। ‘चिल्ड्रेन ऑफ वॉर’ की याद दिलाती हिबा निसार के लिए मिला है। रितिका बताती हैं कि उन्हें लिखना बचपन से ही पसंद है और उनकी इच्छा थी कि वे इसी फील्ड में ही आगे बढ़ें। खासकर हिंदी में लिखना उनके लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि लोग हिंदी में पढ़ते हैं, उससे उनकी नींव मजबूत होती है।

रितिका आगे बताती हैं कि अवार्ड मिलने वाली स्टोरी के लिए उन्होंने कश्मीर के दुर्गम स्थानों पर जाकर रिपोर्टिंग की थी क्योंकि उनका मानना है कि लड़कियां भी कश्मीर के इलाकों में जाकर रिपोर्टिंग कर सकती हैं। इस तरह के रिपोर्टिंग करने पर खुद को भी एक कॉफिडेंस आता है कि हां, लड़कियां भी पत्रकारिता जगत में साहसिक कार्य कर सकती हैं।

पूजा के लिए लिखना हौसला बढ़ाता है

पूजा बताती हैं कि लिखते हुए उन्हें 10 साल हो गए और इस बीच आगे बढ़ने में लोगों का सहयोग मिलता रहा। वह आगे बताती हैं, “मुझे लिखने का शौक बहुत पहले से ही रहा है। कॉलेज के दिनों में कविताएं, कहानियां और कई रिपोर्ट लिखा करती थी और पोस्ट के माध्यम से विभिन्न अखबारों के दफ्तरों में भेजा करती थी। जब यह छपते तो मेरे हौसलों को परवाज मिलती। इस दौरान हिंदी विषय से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू की। जिसके बाद, कॉलेज में होने वाले कई प्रतियोगिता में हिस्सा लेती और विजेता बनते जाती जिससे मुझे आगे बढ़ते रहने की हिम्मत मिली।”

इस बार उन्हें लाडली मीडिया अवार्ड ये दाग जरुरी है के लिए मिला है। पूजा पत्रकारिता पढ़ने वाली लड़कियों के लिए कहना चाहती हैं कि हर क्षेत्र में लड़कियां आगे हैं, बस जरुरत इस बात की है कि अपने काम से ही पहचान बनती है। इसको मन में बैठाकर ही आगे बढ़के रहना चाहिए।

पूजा सिंह

 

लिखना बुलंदी देता है इसलिए लिखें

इन तीन महिलाओं से बात करके मुझे भी स्वयं काफी अच्छा लगा क्योंकि इससे महिलाओं को मजबूती से खड़ा देखना स्वयं के अंदर भी साहस भरता है। हर महिला को अपनी खासियत को बरकरार रखना चाहिए क्योंकि इससे ही उनकी पहचान होती है और दुनिया उन्हें याद रखती है। लिखना हमेशा से सुकून देता है क्योंकि लिखने से ही कारवां बनता है और लोगों की आवाज़ को बुलंदी मिलती है।

मुझे मिले लाडली मीडिया अवार्ड को मैं अपनी मां को समर्पित करना चाहती हूं 

साथ ही इस बार लाडली मीडिया अवार्ड मुझे भी मिला है, जिसकी श्रेणी ब्लॉग और प्रिंट है। ब्लॉग में मेरे लेख गंदे और बिन पानी के शौचालयों की वजह से मेरी दोस्त को UTI हो गया और प्रिंट में इज्ज़त और मर्दानगी के सही मायने के लिए भी मुझे यह अवार्ड- एप्रीसिएशन सर्टिफिकेट मिला है। मेरे लिए लिखना मेरी खुशी है, जिसे मैं अपनी मां को समर्पित करना चाहती हूं क्योंकि मेरी मां ही पहली पाठिका और आलोचक थी। भले ही मां आज साथ नहीं है क्योंकि वह अब स्टार बन गई है मगर उनकी बेटी लिखेगी क्योंकि मां, मेरा लिखना तुम्हारे लिए है।

मूल चित्र : Provided by the author

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