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क्या तेरी माँ ने तुझे बस यही सब सिखाया है?

बेटी को कुछ घर के काम भी सिखाए हैं या सिर्फ मारना पीटना ही सिखा रही हो। कल को सासू माँ कहेगी कि माँ ने क्या सिखाया है?

बेटी को कुछ घर के काम भी सिखाए हैं या सिर्फ मारना पीटना ही सिखा रही हो। कल को सासू माँ कहेगी कि माँ ने क्या सिखाया है?

“जल्दी चल पीहू जुड़ो क्लास शुरु हो जाएगी”, 12वीं में पढ़ने वाली बिटिया को जल्दी करने के लिए बोल रही है। दादी आई हुई है गांव से और वो देख रही है कि कितनी बड़ी बेटी है और घर का कोई काम नहीं करती है। तब तो सुबह-सुबह भागा दौड़ी मची हुई है। सब लोग जल्दी जल्दी निकल जाते हैं।

लेकिन शाम को बहू बैठती है तो सासु मां बोलती है, “बहू, बेटी को कुछ घर के काम भी सिखाए हैं या सिर्फ मारना पीटना ही सिखा रही हो। कल को सासू मां कहेगी कि मां ने क्या सिखाया है?”

तभी पीहू बोलने लगी, “दादी बताओ क्या खाओगे? चलो मैं तुम्हें अपने हाथ की डलगोना कॉफी पिलाती हूँ।”

“मुझे नहीं पीना है अलगगोना डालगोना। कुछ रोटी बनानी आती है?”

“हां दादी, चलो गरमा गरम गोभी के पराठे बनाती हूँ।”

“अच्छा आते हैं तुझे। मैं तो सोच रही थी कि तेरी मां ने तुझे यही सब कुछ सिखाया है और कल को सासू मां ताने मारेगी।”

“दादी आजकल समय बदल गया है। सासू तो कोई ताने नहीं मारती बल्कि हम लोग ही बेटी को ताने मार-मार कर उसकी आधी जिंदगी तो सास के डर से निकाल देते हैं। क्या पता मेरी सास बहुत अच्छी हो? वह भी जुडो कराटे जानती हो?”

अब सब चुपचाप सुन रही थी दादी। “यही सब देख-समझ कर हम लोग बड़े हुए हैं तो यह हमारी रग-रग में बसा हुआ है और बेटी है खाना बनाना तो आना ही चाहिए। अच्छा चल तुझे आते हैं तो परांठे बना कर दिखा”, दादी भी पीछे नहीं रहने वाली थी।

“हां दादी जी बहुत सुंदर परांठे बनाऊंगी।”

तभी पीयूष आकर बोला, “मैं भी दादी को बनाकर कुछ अपने हाथों से खिलाऊंगा।”

“चल तू कहां बनाएगा? तुझे कहां कुछ आता है? बकवास कर रहा है।”

“नहीं दादी, मां ने मुझे सब कुछ सिखाया है। जब पीहू जुडो क्लास में जाती है तो मैं गिटार सीखने जाता हूं और खाना भी सीखता हूँ।”

“अरे! तू क्या यह नाचने गाने का शौक करेगा। यह काम तो लड़कियों के होते हैं। भैया और तुम्हारी मर्जी। तुम शहर में रहने वाले लोग, हम पुराने लोगों को क्या पता?”

तभी बहु दूध लेकर आ गई और बोली, “मां जी, आप आजकल खबरें सुनती रही हैं। आसपास का ऐसा माहौल है कि बेटी को रोटी बनाना आए या ना आए लेकिन बेटी को अपनी रक्षा स्वयं करना आना चाहिए और इसी के चलते में उसको जूडो कराटे सिखा रही हूँ।

कल को वह बाहर भी जाएगी अकेली होगी आपने देखा कि लड़कियों के खिलाफ अपराध बढ़ गए हैं। अपनी रक्षा करने में सक्षम होगी तो उसे हम सब की जरूरत नहीं पड़ेगी और रोटी का तो क्या है, यह तो जन्मजात गुण है यह तो सब का काम है और हम सब सीख लेते हैं। लेकिन मुझे लगता है आज के जमाने को देखते हुए बेटी को सेल्फ डिफेंस आना चाहिए और जहां तक गाने बजाने का है शौक तो किसी को भी हो सकता है जो समय रहते पूरा करना चाहिए।”

सासू मां भी समझ गई, “हाँ बहू, हम सब यही देखते हुए, सीखते हुए बड़े हुए तो हमने वहीं सब अपने बच्चों को सिखाया लेकिन जब समय की मांग कुछ और हो तो हमें बदलना चाहिए। बदलाव प्रकृति का नियम है और मां दुर्गा भी तो काली का रूप रख लेती है जब दुष्टों का संहार करना होता है। बिल्कुल सही कर रही हो बेटा”, और कहते हुए सासु मां ने सिर पर प्यार से हाथ फेर दिया।

फिर दादी बोलती है, “जरा मुझे तो बता कि तेरे दादाजी को एक दो स्टेप मैं भी दिखा दूँ और पोते को बोलती है, “तू अपने दादा जी को चाय बनाना सिखा। सारा दिन चाय-चाय चिल्लाते रहते हैं।”

पीहू फटाफट से तैयार होकर आ जाती है और दादी को दादी की साड़ी को बेल्ट बना देती है। दादी हंसने लग जाती है और सभी खुश हैं।

सखियों समय की नई मांग है। आज छोटी-छोटी घटनाओं से हर मां आहत है। हमेशा तो हम अपनी बेटी के साथ नहीं रह सकते तो उसे रोटी सिखाने से पहले स्वयं की रक्षा सिखाना होगा। आप बताइए आप क्या सोचते हैं। आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत है।

मूल चित्र : Deepak Sethi from Getty Images Signature, vis Canva Pro

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