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चाहे दूर रहे या पास, पर दिल तो सबके है साथ। जैसे बूँद-बूँद से बनता सागर, वैसे ही रिश्तों से बनता परिवार। आखिर परिवार है तो हम हैं...
चाहे दूर रहे या पास, पर दिल तो सबके है साथ। जैसे बूँद-बूँद से बनता सागर, वैसे ही रिश्तों से बनता परिवार। आखिर परिवार है तो हम हैं…
‘अनेकता में एकता’, यही तो है परिवार का एक रूप। जैसे पाँचों उंगलियों से मिलकर बनता है, हाथ का ये रूप।
भिन्न भिन्न स्वभावों से मिलकर बनता है परिवार का ये स्वरूप, एक दूसरे की ग़लतियों को भूलकर,
अच्छाइयों को गिनाना यही तो है प्यार का रूप।
रिश्तों की नाज़ुक डोरी को बांधा है प्रेम की मज़बूत डोरी से, चाहे दूर रहे या पास, पर दिल तो सबके है साथ। जैसे बूँद-बूँद से बनता सागर, वैसे ही रिश्तों से बनता परिवार।
दादा-दादी, चाचा-चाची मोती बनकर, बनाते हैं परिवार रूपी हार, परिवार है तो हम हैं, हम हैं तो परिवार है।
सबका ख़याल रखते रखते, अपने को भी बनाना है, ये भी हमें हमारे प्रति अपना कर्तव्य निभाना है, सबके साथी बनकर अपने साथी भी बन जाना है।
मूल चित्र : Pixabay via Pexels
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