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और 2020 में विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स हैं ये…

विमेंस वेब के लिए ये वर्ष कई मायनों में खास रहा। तो इसे और यादगार बनाते हैं और मिलते हैं साल 2020 के विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स से!

विमेंस वेब के लिए ये वर्ष कई मायनों में खास रहा। तो इसे और यादगार बनाते हैं और मिलते हैं साल 2020 के विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स से!

हम नए साल की और बढ़ रहे हैं। जाते जाते अगर हम 2020 को देखें तो ये इसने हमें एक अलग तरह का अनुभव दिया है। सभी के लिए एक अलग और खास वर्ष रहा है। विमेंस वेब के लिए भी ये वर्ष कई मायनों में खास रहा है। इसी साल हमने 10 साल पूरे किये हैं। इस जश्न को हम सब ने साथ मनाया।

इसी साल हमने विमेंस वेब हिंदी का इंस्टाग्राम पेज भी शुरू किया है। साथ ही नवंबर के महीने में आपके प्यार और साथ से विमेंस वेब हिंदी को 10 लाख से अधिक व्यूज मिले। और ये अब रीडर्स की वजह से तो हुआ ही है। लेकिन हमारे पाठकों तक बेहतरीन लेख पहुँचाये है हमारे ऑथर्स ने। इसमें हर एक ऑथर का योगदान रहा है जिन्होंने समय समय पर हर मुद्दे पर अपने विचार रखे।

तो आइये मिलते हैं 2020 के विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स से। इस लेख में टॉप 12 ऑथर्स और उनके एक बेहतरीन लेख से हम आपको रूबरू करवा रहे हैं। लेकिन याद रखियेगा, आप सब हमारे लिए खास हैं, आप सब हमारे फेवरेट हैं। आप सब टॉप हैं।

साल 2020 के विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स

एकता ऋषभ

एकता ऋषभ बड़ी खूबसूरती से अपनी कहानियों के ज़रिये हर मुद्दे पर अपनी बात रखती हैं। और ऐसे मुद्दों पर अपने लेख लिखती हैं जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। साथ ही ये फ़िल्मों और हिंदी टीवी शोज़ के रिव्युज़  भी लिखती हैं। एकता के हर लेख को आपने बहुत पढ़ा और सराहा है। 

आज आपकी बहु नहीं एक माँ बोल रही है…” इस लेख में एकता ऋषभ कहानी के ज़रिये समाज में महावारी को लेकर फ़ैले अन्धविश्वास पर तंज कसती हैं। 

“ये क्या कह रही हैं आप माँजी? मासिक धर्म एक स्वाभविक शारीरिक क्रिया है जिससे हर औरत गुजरती है। मैं गुजर रही हूँ, कुछ सालों पहले तक आप भी गुजरती थीं। जो क्रिया माँ बनने के लिये ज़रुरी है, उससे कोई स्त्री अपवित्र कैसे हो सकती है? और दिया! बच्ची है वो और बच्चे तो खुद भगवान का रूप हैं, फिर दिया से मंदिर कैसे अपवित्र कैसे होगा?” और ऐसे ही सभी को आवाज़ उठानी चाहिए।  

बबिता कुशवाहा 

बबिता कुशवाहा अपने बारे में कहती हैं कि लिखना की वे शौकीन हैं। ये रोज़मर्रा में औरतों के साथ हो रहे भेदभाव को सीधे शब्दों में कथाओं के साथ समझा देती हैं। 

अपने ब्लॉग “अपने सपनों के बीच अपनी उम्र के बंधन को ना आने दें…” के माध्यम से  बबिता के कहती हैं कि शादी के वक़्त कई औरतें अपने सपने को बीच में ही रह जाते हैं, फिर घर-पति-बच्चों के बीच वे सपने कहीं दफ़न हो जाते हैं, लेकिन ये ना सोचें कि अब देर हो गयी। जब बच्चे बड़े और समझदार हो जाते हैं तो ज़िंदगी दोबारा मौका देती है अपने सपनों को पूरा करने का।

सीमा शर्मा पाठक 

सीमा शर्मा पाठक अपने बारे में बताती हैं, “अपने मन के भावों को लिखती हूँ। लिखना मेरे लिए उतना ही जरूरी है जितना जीना। कहानी कविता या कोई भी लेख लिखकर मुझे अपार खुशी और सुकुन मिलता हैं। कोशिश करती हूँ सच्ची घटनाओं को कहानी के रूप में आपके सामने पेश कर सकूं। 

अपनी कहानियों और कविताओं के ज़रिये बहुत सुंदरता के साथ सीमा अपनी बात हम सब के सामने रख जाती हैं।

बहुत चुभती हैं समाज की नज़र में…ये बेबाक सी लड़कियां…” सीमा की ये कविता बहुत ही चंद शब्दों में बहुत बड़ी बात कह जाती है और इसलिए ये सबने बेहद पसंद की है। “कभी लज्जाहीन और बेशर्म भी कहाती हैं, पुरूष की पहुंच से जब बाहर हो जाती हैं। झुंझलाता है, चिल्लाता है, इल्ज़ाम लगाता है, मगर उससे ना घबरातीं वो बेबाक लड़कियां।”

अरशीं फ़ातिमा 

अरशीं फातिमा की कलम कहानियों के ज़रिये कई मुद्दों को पाठकों के करीब लेकर आयी हैं। 

आखिर क्यों एक बेटी नहीं है हक़दार उसके मायके और ससुराल में सम्मान पाने की?” इस लेख के माध्यम से अरशीं पूछती हैं कि आखिर क्यों बेटियों को उनके घर में और ससुराल में उनके हक़ का प्यार और सम्मान नसीब नहीं होता? और वे इसे एक कहानी से बहुत सुंदरता से कहती हैं। 

सोमा सुर 

सोमा सुर अपने फ़ेमिनिस्ट लेखों के जरिये सच्ची घटनाओं पर बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहती हैं। ये प्रकति के बेहद क़रीब हैं और इनके लेख इस बात की गवाही देते हैं। इनकी लघु कथाए और कविताओं को आप सभी ने  बहुत पढ़ा और प्यार दिया है। 

सोमा “क्या सुहागरात से जुड़े ऐसे रिवाजों का कोई अस्तित्व होना चाहिए?” इस लेख के ज़रीये एक ऐसे मुद्दे पर सवाल कर रही हैं जिसे हम कभी रिवाज़ तो कभी हंसी-ठिठोली के नाम पर अनदेखा कर रहें थे।

वर्षा बोहरा 

वर्षा बोहरा अपने कहानियों और कविताओं के ज़रिये हम सबसे मिलती हैं। 

वर्षा के लेख, “लेकिन मुझे दहेज चाहिए क्यूंकि ये मेरा हक़ है…” ने हम सब के दिलों को छुआ और इस लेख को आप सब ने बेहद सराहा। इसमें वे कहानी से समझाती हैं कि जिस दहेज़ को इक्क्ठा करने में परिवार एक बेटी को बाकि सब अधिकारों से वंचित रखता है तो आखिरी में वो उसका ही तो हक़ है। 

“मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं बिना दहेज के शादी हो जाए? वो दहेज जिस पर मेरा हक है, मेरे बचपन के खिलौने हैं, मेरी पढ़ाई है मेरी अधूरी इच्छा है। पूरी जिंदगी ये बोलकर मुझे कोई हक़ नहीं दिया कि मुझे दहेज देना है तो फिर आज अगर मैं अपना हक़ मांग रही हूँ तो क्या गलत कर रही हूँ?”

अनुराधा अग्निहोत्री 

अनुराधा के लेख सामाजिक बुराइयों को ललकारते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। ये कहानियां और कविताएं लिखती हैं। 

“और उसकी ये लड़ाई अपनी बेटी के लिए थी…” अनुराधा का ये लेख एक औरत की जिंदगी में शिक्षा का महत्व बताता है। इसमें वे कहानी के माध्यम से कहती हैं,  “वह इस बात का अनुभव कर चुकी थी कि एक औरत, चाहे वो जो भी हो, किसी की पत्नी हो, बहु हो या माँ हो, हर रूप में उसका शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है। किसी भी ग़लत रूढ़िवादी परम्परा के लिए हमें एकजुट होना होगा तभी इस समाज में बदलाव आएगा।”

प्रशांत प्रत्युष

प्रशांत प्रत्युष के लेख उन्हें फेमिनिस्ट पुरुषों की श्रेणी में रखते हैं। ये अभी फ्री लांस लेखक के रूप में काम कर रहें हैं। इनके लेख ज़्यादातर पितृसत्ता को ललकारते हैं और समाज से कठोर सवाल पूछते से हिचकिचाते नहीं। ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि हिंदी साइट पर ऐतिहासिक-महिलाओं की केटेगरी इनके दम से ही है। साथ ही प्रशांत ने कई वेब सीरीज़ के रिव्यु लिखे हैं।

कैसे इन पीरियड्स ने मुझे, एक लड़के को, पितृसत्तात्मक बना दिया…इस लेख में प्रशांत कहते हैं, “आज जब मैं जेडर स्टडी के रिसर्चर के तौर पर इन बातों के बारे में सोचता हूं तो यह विश्वास पक्का हो जाता है कि लड़कियों के पीरियड्स के दौरान अगर सामाजिक परिवेश बच्चों का उचित समाजीकरण करें तो पितृसत्ता के उस बीज का जड़ से खत्म किया जा सकता है। जिसका पाठ समाज बच्चों को खासकर लड़कों को देता है।”

विनीता धीमान

विनीता धीमान अपनी कहानियों के ज़रिये बड़ी से बड़ी पारिवारिक और सामाजिक परेशानी को बड़ी ही सरलता से कह जाती हैं। इनके अलावा विनीता हम सब के साथ एक से एक स्वादिष्ट पेय और व्यंजनों की रेसिपीज़ भी खूब साझा करती हैं। विनीता धीमान कहती हैं कि मेरे लिए सबसे बढ़ा अचीवमेंट्स होता है जब लोग मेरे लेख को पढ़ते है और अपनी राय मेरे साथ उस विषय पर साझा करते हैं।

“शादी होने के बाद क्यों सिर्फ बहु को ही देनी पड़ती है अपनी नींद की क़ुरबानी?” विनीता के इस लेख को लगभग सभी ने करीब से महसूस किया है और यही वजह है कि इसे अधिक प्यार मिला है। इसमें विनीता अपने साथ हुए वाकये को याद करते हुए कहती हैं, “शादी के बाद तो मेरी यही दुआ रहती है कि मैं अपने मायके कब जाउंगी और वहां जाकर ही अपनी कुंभकर्णी नींद ले पाऊंगी।” 

 मीनाक्षी शर्मा

अपने आप को बडिंग राइटर मानने वाली मीनाक्षी शर्मा का कहना है कि हमें बस अपना कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता ऊपर वाले पर छोड़ देनी चाहिए। ये 6 – 7 सालों से मीडिया से जुडी हुई हैं। अभी पीआर फर्म में कार्यरत हैं। ये ज़्यादातर फिल्मों और फैशन से जुड़े लेख लिखती हैं, लेकिन इन्होंने सामाजिक मुद्दों के बारे में भी उतनी ही भावना से लिखा है। खूबसूरती से साथ शब्दों का चयन मिनाक्षी की कलम को एक अलग पहचान देता है। 

मीनाक्षी का साईनी राज के साथ इंटरव्यू –  “साईनी राज से एक मुलाकात : इनकी कविता Dear Daughters of India सुन रहे हैं आप” मुझे बेहद पसंद है।  जितनी खूबसूरती के साथ साईनी राज ने अपनी कविता के बारे में चर्चा करी है उतने ही तरीके से मीनाक्षी ने उसे प्रस्तुत किया है। अगर आपने अभी तक नहीं पढ़ा है तो पढ़ लीजियेगा। 

सुजाता गुप्ता

सुजाता गुप्ता यानि कि सुज्ञाता अपने जीवन के 22 वर्ष अध्यापन के क्षेत्र में देते हुए इन्होने हिंदी में कई बच्चों को महारत बनाया है। लेकिन इनका मानना हैं कि इन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है। ये कमला भसीन जी को अपनी प्रेरणा मानती हैं। सुजाता गुप्ता ने कई मुद्दों पर अपनी आवाज़ लेखों के ज़रिये बुलंद की है। इनकी कविताएं सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। ये अपने लेख में ह्यूमर जोड़कर उसे जीवंत बनाती हैं। 

सुजाता अपनी कविता “खुद को नई सी लगने लगी हूँ…हाँ, अब मैं बदल गई हूं!” के ज़रिये कहती हैं, “मैं अब पहले की तरह मरती नहीं हूं, जीती हूं मन ही मन, दुनिया की परवाह कर आँसू बहाती नहीं हूं, अब मैं बदल गई हूं…अब मैं बदल गई हूं!” इसे आप सबने बहुत सराहा है। 

श्वेता व्यास 

श्वेता व्यास ऑरेंज फ्लॉर फ़ेस्टिवल 2019 में राइटिंग फॉर सोशल इम्पैक्ट(हिंदी) की विजेता श्वेता व्यास मुंबई के एक कॉलेज में केमिस्ट्री की एसोसिएट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं। साथ ही अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोने में तो इन्होंने जैसे पीएचडी कर रखी है। जी हां, ये लिखने में माहिर हैं। श्वेता अपने लेखों के ज़रिये कई सामाजिक बुराइयों के ललकारती नज़र आतीं है। और इनके लेख इस बात की गवाही देते हैं। इनके लेख सत्य घटनाओं पर भी आधारित होते हैं। 

श्वेता व्यास, “सब छोड़िये, आज ज़रा प्यार और रोमांस की बातें करते हैं…” लेख में कहती हैं कि शादी के बाद रोमांस’ शायद समय के साथ फीका पड़ सकता है पर ‘प्यार’ कभी नहीं। हम अक्सर रिश्तों को उनके दिखाने या जताने के तरीकों से आंक लेते हैं, लेकिन वो हमेशा उसी तरह हमारे साथ होते हैं जैसे फूलों में सुगंध। सूखने के बाद भी किताब के उस पूरे पन्ने को महका देती हैं। प्यार दिखावे की उन सभी सीमाओं से परे है।

विमेंस वेब की तरफ से शुक्रिया : तो ये हैं साल 2020 के विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स और उनकी बेहतरीन रचनाएँ। और लेकिन ये सिलसिला अभी ख़त्म नहीं बल्कि शुरू हुआ है। हमे पूरी उम्मीद है इस लिस्ट में अभी कई नाम जुड़ने हैं।

आप और हम मिलकर ऐसे ही हमारे ऑथर्स का हौसला बढ़ाते रहेंगे। क्योंकि अगर चंद शब्दों में हम उनका शुक्रिया करें तो वो जायज़ नहीं होगा। साथ ही हमारे रीडर्स और उन तमाम ऑथर्स का भी आभार जिन्होंने अपने लेख हमारे साथ साझा किये। बस आप यूँ ही हमारे साथ जुड़े रहिये और ये कारवाँ यूँ ही आगे बढ़ता रहेगा।

हमें आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा। साल 2020 के विमेंस वेब हिंदी के टॉप 12 ऑथर्स को हार्दिक शुभकामनाएं!

विमेंस वेब की तरफ से आप सभी को नए साल के लिए खुशियों भरी शुभकामनाएं!

मूल चित्र : From Author’s Profile, Women’s Web

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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