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भाभी गलती हो गयी प्लीज़ माफ़ कर दो…

परिवार में सुख और शांति किसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन राधेश्याम जी के घर से जैसे सुख शांति रूठ ही गई थी। रोज़-रोज़ के तनाव और कलेश से तंग आ  राधेश्याम जी ने अंत में ना चाहते हुए भी अपने दोनों बेटों के बीच बँटवारा कर ही दिया।

राधेश्याम जी के दो बेटे थे बड़ा सोहन और छोटा रोहन। सोहन की पत्नी रत्ना बहुत ही नेक दिल महिला थी। घर-परिवार को परिस्थिति से सामंजस्य बिठाना उसे अच्छे से आता था। रत्ना की शादी के थोड़े समय बाद ही राधेश्याम जी की पत्नी का निधन हो गया था। खुद नई बहु होने के बाद भी अपने परिवार को रत्ना ने अपने बिखरते परिवार को बहुत अच्छे से संभाल लिया था।

परिवार की स्तिथि की देख-रेख के कारण पढ़ी-लिखी होते हुए भी जॉब नहीं की थी रत्ना ने। अपने ससुर जी का भी रत्ना बहुत ध्यान रखती। समय आने पर राधेश्याम जी ने अपने छोटे बेटे रोहन की शादी नीलम से कर दी। नीलम भी पढ़ी-लिखी लड़की थी और सरकारी स्कूल में टीचर के पद पर  थी।

शुरु-शुरु में तो सब ठीक था। रत्ना अपनी देवरानी को बहन समान रखती लेकिन नीलम को अपनी नौकरी का बहुत घमंड था उसे लगता कि वो तो कमाती है, फिर घर के कामों के क्यों सहयोग करे?

रत्ना के बच्चे अभी छोटे थे। बच्चे साथ में बुजुर्ग ससुर जी के भी ढ़ेर सारे काम हो जाते थे। इसके साथ घर के काम होते थे जिन्हें रत्ना अकेली ही करती। जब कभी नीलम से सहयोग करने को रत्ना कहती तो नीलम लड़ाई शुरु कर देती। ऐसे ऐसे कड़वे बोल बोलती नीलम की रत्ना रो देती। अपनी सीधी बहु का ये हाल देख राधेश्याम जी को बहुत दुःख होता।

इन सब से तंग आ राधेश्याम जी ने दोनों बेटे को अलग कर दिया और खुद रत्ना और सोहन के साथ रहने लगे। रोहन और नीलम घर के पिछले हिस्से में रहते। अंधा क्या चाहे दो ऑंखें? यही तो नीलम चाहती थी अलग हो अपने तरीके से रहना। रोहन को भी अपनी पत्नी के व्यवहार देख अलग रहना ही उचित लगा।

अपनी नौकरी और सुंदरता का नीलम  को इतना दंभ था कि रत्ना के कभी सामने पड़ने पर भी मुँह फ़ेर लेती। कभी रत्ना कुछ पूछती, तो रुखा सा दो टूक ज़वाब दे देती। तंग आ रत्ना ने नीलम को बुलाना भी छोड़ दिया।

समय बीतता गया और कुछ समय बाद नीलम प्रेग्नेंट हो गई। प्रेगनेंसी में कुछ परेशानी के कारण उसने लीव ले रखी थी। एक दिन रोहन को भी नौकरी के सिलसिले में कहीं बाहर जाना था।

“नीलम तुम अकेली इस हालत में कैसे रहोगी?  चाहो तो बड़े भैया के घर चली जाओ। वहाँ रत्ना भाभी भी हैं, तुम्हारा ख़याल रख लेंगी और मुझे भी चिंता नहीं रहेगी।”

“तुम भी ना रोहन कैसी बात कर रहे हो? पढ़ी-लिखी आधुनिक लड़की हूँ। मैं क्या अपना ध्यान नहीं रख सकती? मेरी चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं, तुम आराम से जाओ। रत्ना भाभी से सेवा करवाने का मुझे कोई शौक नहीं।” नीलम की दो टूक बात सुन रोहन चुप रह गया।

रोहन के जाने के बाद एक दिन तो आराम से बीता लेकिन आधी रात के बाद नीलम के कमर में हल्का हल्का दर्द शुरु हो गया। हल्के दर्द को प्रेगनेंसी में होने वाला दर्द समझ नीलम ने थोड़ा बाम लगा लिया और गर्म पानी की थैली ले वापस सोने का प्रयास करने लगी लेकिन ये क्या दर्द तो धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा था। अब नीलम डरने लगी।

“हेलो रोहन,  पता नहीं क्यों मेरे कमर और पेट में दर्द हो रहा है।”

“अभी तो सातवां महीना ही चल रहा है, अभी क्यों दर्द हो रहा है?” रोहन भी परेशान हो उठा।

“मुझे बहुत डर लग रहा है रोहन, तुम प्लीज जल्दी आओ”, रोते हुए नीलम कहने लगी।

“मैं चाह कर भी कल शाम के पहले नहीं पहुंच पाऊंगा नीलम। मैं अभी भैया को फ़ोन करता हूँ। तुम परेशान ना हो।”

रोहन ने तुरंत अपने भाई को फ़ोन कर सारी बातें बताई। तुरंत रत्ना और सोहन नीलम के पास पहुंच गए। देखा तो नीलम दर्द से तड़प रही थी। रत्ना को देख नीलम को बहुत तसल्ली मिली और अपनी जेठानी का हाथ थाम रोने लगी।

“परेशान ना हो नीलम हम अभी डॉक्टर के पास चलते हैं”, रत्ना ने नीलम को सँभालते हुए कहा।

तुंरत नीलम को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। पता चला नीलम को लेबर पेन शुरु हो गया था। “डॉक्टर साहिबा अभी तो नीलम का सातवां महीना ही चल रहा है”, घबरा कर रत्ना ने पूछा।

“देखिये कभी कभी प्रीमचुआर डिलीवर होती है और नीलम की डिलीवरी आज ही होगी और शायद ऑपरेशन भी करना पड़े।”

डॉक्टर की बात सुन रत्ना और सोहन के हाथ पैर फूल गए। तुरंत रोहन को सारी स्थित बता कर ऑपरेशन की इज़ाज़त ली गई। सुबह होते-होते एक प्यारा से बेटे को नीलम ने ऑपरेशन से जन्म दिया। कमजोर होने के कारण कुछ दिन बच्चे को हॉस्पिटल में ही रहना पड़ा।

पूरे समय रत्ना और सोहन एक पैर पे नीलम और बच्चे की देखभाल में लगे रहे। रत्ना की सेवा देख नीलम शर्म से गड़ जाती। आज अपने किये पे उसे बहुत शर्म आ रही थी। कितना बुरा व्यवहार उसने अपनी बहन समान जेठानी से किया था। लेकिन सब कुछ भूल रत्ना अपनी बहन के जैसे नीलम की देखभाल में लगी थी।

दस दिन बाद नीलम अपने बच्चे के साथ घर आयी। शाम को छट्टी पूजन और नामकरण के वक़्त बच्चे को रत्ना की गोद में दे दिया।

“भाभी लीजिये अपने बेटे के लिये कोई अच्छा सा नाम रख दीजिये।”

” लेकिन नीलम, ये तो तुम रखोगी ना? मेरा हक़ नहीं है ये।”

रत्ना की बात सुन नीलम की नजरें शर्म से झुक गईं, “अब और सजा ना दें भाभी। आज अगर ये शुभ अवसर मेरे और रोहन की जिंदगी में आया है तो इसकी वज़ह सिर्फ आप हो। उस दिन अगर आप और जेठजी नहीं आते, तो मैं और ये बच्चा दोनों जिन्दा नहीं रहते। मेरे इतने बुरे व्यवहार के बाद भी आप ने मेरा इतना साथ दिया। अगर हो सके तो मुझे अपराधिनी को माफ़ कर देना भाभी।” पछतावे में जलती नीलम अपनी जेठानी के पैरों को पकड़ रोने लग गई।

रत्ना अवाक् रह गई और तुरंत नीलम को गले लगा लिया, “सुबह का भुला शाम को घर आ जाए तो उसे भुला नहीं कहते नीलम। तुम्हें तो मैंने सदा अपनी छोटी बहन ही समझा था।”

दोनों देवरानी और जेठानी अपनी सारी ग़लतफहमी भूल गले लग गई और अपने परिवार को वापस एक-जुट  होता देख राधेश्याम जी की ऑंखें भी ख़ुशी से नम हो गईं।

कहानी का सार बस इतना है कि हर परिवार में कोई ज्यादा तो कोई कम कमाने वाला होता है। इसका अर्थ ये नहीं कि दूसरे किसी मायने में कम हैं। अगर दंभ ही करना है तो अपने नेक इरादों और संस्कारों का करें ना कि धन और सुंदरता का क्यूंकि ये चीज़ें आज हैं कल नहीं।  परिवार की खुशियाँ तो अच्छे संस्कारों से चलती हैं।  

मूल चित्र : Manish Dhruw via Pexels

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