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वक़्त वक़्त की बात है…

जो बोलते थे मुझे कि कितना बोलती है, थोड़ी सी देर, चुप भी हो जा ना। आज वही घर देखो, कितना सुना सुना नज़र आता है ना...

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जो बोलते थे मुझे कि कितना बोलती है, थोड़ी सी देर, चुप भी हो जा ना। आज वही घर देखो, कितना सुना सुना नज़र आता है ना…

किसी का थोड़ा सा वक़्त, कितना मायने रखता है ना,
ग़मो की पोटली को, खुशियों की झोली से भर देता है ना।
पराये होकर, आज अपना घर कितना आता हैं ना,
सच्चे रिश्ते क्या होते हैं, बड़े होकर हम समझ पाते है ना।

अगर मैं बात करूँ मुझसे जुड़े रिश्तों की,
जिंदगी के हर पड़ाव पर जिन्होंने मेरी मदद की।
पिता का थोड़ा सा वक़्त कितना हौसला बढ़ा जाता था ना,
माँ के साथ बिताया हर पल, अब कितना याद आता है ना।
भाई के साथ की गई बातें, कितना कुछ सीखा जाती थी ना,
हर एक चीज़ पर की गई ज़िद, कितने अर्थ समझा जाती थी ना।

जो बोलते थे मुझे कि कितना बोलती है,
थोड़ी सी देर, चुप भी हो जा ना।
आज वही घर देखो, कितना सुना सुना नज़र आता है ना,
घर का हर कोना कोना कितना भावुक कर देता है ना।

घर जाकर हमारी पुरानी यादें, कितना रुला देती है ना,
ये तो सच है,
सबके साथ बिताया थोड़ा सा वक़्त भी कितना मायने रखता है ना।

मूल चित्र : Brijesh Kamal via Pexels

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