कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

विधवा जीवन में रंग भरती फ़िल्म द लास्ट कलर एक खूबसूरत अहसास है…

पहली नज़र में फ़िल्म द लास्ट कलर केवल विधवाओं की कहानी लगती है लेकिन कई गंभीर मुद्दों पर समाज में घृणित मानसिकता की भी एक खूबसूरत कहानी है यह। 

पहली नज़र में फ़िल्म द लास्ट कलर केवल विधवाओं की कहानी लगती है लेकिन कई गंभीर मुद्दों पर समाज में घृणित मानसिकता की भी एक खूबसूरत कहानी है यह। 

अपने व्यंज़नों से पूरी दुनिया में भारत का नाम बुलंदियों पर पहुंचाने वाले शेफ विकास खन्ना ने वृंदावन और बनारस में रहने वाली विधवाओं के जिंदगी पर एक कहानी फ़िल्म द लास्ट कलर में सुनाई, जो ऑस्कर पुरस्कार की फीचर फिल्म के सूची में अपनी जगह बना चुकी है। फिल्म रिलीज तो जनवरी 2019 के पाम स्प्रिंग्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पर कोई थियेटर रिलीज अभी तक नहीं हो पाई थी। अलबत्ता लोगों को इस फिल्म के बारे तब पता चला जब शेफ विकास खन्ना ने इसके आस्कर नामिनेशन की जानकारी ट्वीट किया।

यह शेफ विकास खन्ना की डेब्यू डायरेक्ट फिल्म है, जो अमेजन प्राइम पर अब उपलब्ध है। पहली नज़र में फ़िल्म द लास्ट कलर की कहानी केवल विधवाओं की कहानी लगती है पर अपने कहानी में अनाथ बच्चों, ट्रांसजेडरों के पुलिसिया शोषण, पुत्र प्राप्ति के चाह और अनाथ, ट्रांसजेंडर और विधवाओं के बारे में समाज में घृणित मानसिकता की भी कहानी है।

कह सकते  है कि फिल्म की कहानी एक विधवा और नौ साल की लड़की की है, जो एक विधवा की बेरंग सी दुनिया में रंग भरने का काम नादांन से उम्र में करना चाहती है पर इसको हकीकत में बदलने के लिए एक आधी जिंदगी का संघर्ष लग जाता है।

छोटी, नूर को चाय-समोसा खिलाना-पिलाना चाहती है, उसका खूबसूरत रंग जानना चाहती है और गुलाबी रंग के नेलपॉलिश के साथ उनके पैरों के नाखूनों को रंगना शुरू करती है। नूर समाज के डर और अपने अंदर की इच्छा को कम करने की लड़ाई लड़ती हुई नजर आती है। जंहा एक तरफ नूर  को रंग लगवाने पर सुकून मिलता नजर आता है तो वहीं समाज के डर की चिंता होती है।

क्या कहानी है फ़िल्म द लास्ट कलर की

कहानी शुरु होती है बनारस घाट के सुबह-सुबह के गंगा के शांत पानी के हलचल में हल्के-हल्के शोर से, उसके अगले ही शॉट में एक महिला वकील जो आत्मविश्वास से लबरेज दिखती है कोर्ट से उस फैसले पर पत्रकार से बात करती हुई बताती है कि वृंदावन और बनारस की विधवाओं को होली के रंग खेलने की इज्जात मिल चुकी है, वह बताती है अभी तो यह शुरुआत है।

उसके बाद वही महिला वकील बनारस के राजकीय विधवा आश्रम में पहुंचती है और कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है, जहां एक अनाथ बच्ची छोटी एक अनाथ बच्चे के साथ रस्सी पर चलने का तमाशा करके पैसा जमा कर रही है क्योंकि वह पढ़ना चाहती है। दो हवलदार उनको दौड़ाते है पर लकड़ी पकड़ में नहीं आती है और घाट पर नूर (नीना गुप्ता) को बैठे देखती है। धीरे-धीरे छोटी और नूर में दोस्ती हो जाती है।

विधवा महिला उसके लिए तय किए गए नियम-कायदे के अनुसार जीवन जी रही है पर अनाथ बच्ची के बातों से मोहित हो जाती है। वह अपने अनुभवों से अनाथ बच्ची को दुनियादारी की बातें समझाती है। छोटी विधवा के पैर में एक सीन में नेलपालिश लगाती है। यह सीन सबसे खूबसूरत है इस फिल्म का।

विधवा छोटी को दुनिया से लड़ने और बहुत बड़ा बनने कहती है। इसी घाट पर एक ट्रांसजेंडर अनारकली छोटी का ख्य़ाल रखती है जो एक पुलिस के यौन शोषण को इसलिए झेलती है क्योंकि वह छोटी को बेचने की धमकी देता है। आगे क्या होता है और ये सब एक दूसरे से इस खूबसूरती से जुड़ता है कि अंत तक ये फिल्म किरदारों समेत आपके दिल में समां जाती है।

कलाकारों का काम कमाल का है

इस फिल्म में नीना गुप्ता, राजेश्वर खन्ना, असलम शेख और अक्सा सिद्दीकी ने भी अभिनय किया है। पर मुख्य किरदार नीना गुप्ता का ही है जो कुछ नहीं करती, केवल विधवाओं का एक समान्य सा जीवन जीती है। छोटे-मोटे संवाद करती है छोटी के साथ और अपनी मुक्ति के माला को जपती है। पर इस किरदार के चेहरे पर जो भाव है वह बहुत कुछ कह जाता है। इस चरित्र को स्वयं को स्थापित करने के लिए कुछ कहना नहीं पड़ता है। इस चरित्र को नीना गुप्ता ने जीवंत कर दिया है। कहना गलत नहीं होगा नीना गुप्ता के साथ समान्य से कलाकारों ने कमाल का काम किया है, उसमें दिखवाट जरा भी नहीं है।

फिल्म के अंत का दृश्य कमाल का बना है विधवा महिलाओं के जीवन में रंग घोलती अबीर का दृश्य। बार-बार यही सवाल पूछता है क्यों हमने रंग खेलने से वंचित रखा उन महिलाओं को जिनके पति इस दुनिया में नहीं है? क्यों उनको लेकर नियम-कायदों बना दिए गए? क्यों उनको एक कोने में सिमटने को मजबूर कर दिया गया समाज में? क्यों और किस लिए उनकी नियती को सफेद रंग के साथ बांध दिया गया? इन सवालों के जवाब में उतरेगे तब इस समाज के चेहरे का रंग उतर जाएगा इसलिए रहने दे, सेफ विकास खन्ना और नीना गुप्ता की “द लास्ट कलर” देख लें।

मूल चित्र : Screenshot of trailer, YouTube

 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 736,290 Views
All Categories