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बॉम्बे हाईकोर्ट के अनुसार यौन हिंसा तब जब गलत इरादे से त्वचा से त्वचा का संपर्क हो

लोग अपने बच्चों को 'गुड टच-बैड टच' की परिभाषा बताते हैं मगर अब इस निर्णय के बाद शायद 'बैड टच' यौन हिंसा में आएगा ही नहीं।

लोग अपने बच्चों को ‘गुड टच-बैड टच’ की परिभाषा बताते हैं मगर अब इस निर्णय के बाद शायद ‘बैड टच’ यौन हिंसा में आएगा ही नहीं।

चेतावनी : इस पोस्ट में चाइल्ड एब्यूज का विवरण है जो कुछ लोगों को उद्धेलित कर सकता है।

24 जनवरी को बालिका दिवस की बधाईयां सोशल मीडिया पर स्क्रॉल कर रही थीं। उन्हीं बधाईयों के बीच अचानक एक ऐसा फैसला स्क्रॉल करने लगा, जिसमें जबरदस्ती छूने को, तब तक, यौन हिंसा की श्रेणी से बाहर कर दिया गया, जब तक त्वचा से त्वचा का संपर्क ना हो।

यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट ने नागपुर पीठ की सुनवाई के दौरान जस्टिस पुष्पा गनेडिवाला ने दिया, जिसके अनुसार अब-

  • किसी घटना को यौन हमला तब ही माना जाएगा, जब स्किन-टू-स्किन संपर्क स्थापित हुआ हो।
  • महज कपड़े के ऊपर से छूने को यौन हिंसा नहीं माना जाएगा।
  • टॉप के ऊपर से ब्रेस्ट को छूना यौन हिंसा नहीं है, जब तक की हाथ अंदर ना गए हो।

यह था मामला

14 दिसंबर 2016 को आरोपी सतीश कुमार ने एक 12 वर्षीय बच्ची को अमरुद देने के बहाने से अपने कमरे में बुलाया था, जहां उसने बच्ची के ब्रेस्ट को सलवार के ऊपर से छुआ था और कपड़े को हटाने का प्रयास कर रहा था, मगर तब तक बच्ची की मां के आ जाने के कारण उसकी मंशा पूरी नहीं हुई और तुरंत प्राथमिकी दर्ज की गई।

इसी मामले की सुनवाई में उच्च न्यायालय ने फैसले दिया है कि आरोपी ने बच्ची के ब्रेस्ट को पकड़ा और उसके कपड़ों को हटाने की कोशिश की, चुंकी आरोपी ने बच्ची के कपड़े हटाए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की है इसलिए इसे यौन हमला नहीं कहा जा सकता है।

कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 354 (जबरदस्ती करने), 363 (किडनेपिंग) और 342 (गलत मंशा) के तहत और पोक्सो एक्ट 2012 के तहत दोषी ठहराया था, मगर हाईकोर्ट ने केवल आईपीसी की धारा 342 और 354 के तहत सजा सुनाई है।

पोक्सो और आईपीसी एक्ट

वहीं पोक्सो एक्ट के अनुसार यौन हिंसा तब मानी जाती है, जब यौन हिंसा के इरादे से वजाइना, पेनिस, ब्रेस्ट और पीछे के भाग को यौन क्रिया की नज़र से छुआ गया हो, तब ही वह यौन हिंसा की श्रेणी में आता है। पोक्सो एक्ट की धारा 8 के तहत न्यूनतम सजा का प्रावधान तीन सालों तक का है। वहीं आईपीसी की धारा 354 के तहत न्यूनतम एक साल की सजा होती है। साथ ही दोनों में अधिकतम सजा का प्रावधान 5 सालों का है।

पहले भी सुर्खियां बंटोरी गई हैं

इसके पहले भी पुष्पा गनेड़ीवाला ने ऐसे निर्णय देकर सुर्खियां बंटोरी है, जिसमें एक मरीज ने डॉक्टर के खिलाफ केस दर्ज कराया था। मरीज की दलील थी कि डॉक्टर ने पेट दर्द में जान-बुझकर उसके अंदरुनी अंगों को छुआ है। इस पर पुष्पा ने कहा था, “मरीज का इलाज करने के लिए डॉक्टर स्वतंत्र है और वह अपने तरीके से जांच कर सकता है। वह महिला के ब्रेस्ट समेत अन्य भागों को छू सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर को 50,000 रुपयों का जुर्माना लगाया गया था।

शायद रेप की परिभाषा भी बदल जाए

हाईकोर्ट का यह फैसला एकदम निंदनीय है क्योंकि यह एक अपराधी को और मौके देगा कि वह किसी के भी साथ जबरदस्ती कर सके मगर उसके जबरदस्ती को अपराध माना ही नहीं जाएगा क्योंकि त्वचा से त्वचा छुई ही नहीं जा सकेगी।

शायद अब रेप की परिभाषा भी बदल जाएगी। कंडोम लगाकर वजाइना में जबरदस्ती डाला गया पेनिस भी रेप नहीं कहलाएगा क्योंकि पेनिस और वजाइना के बीच कंडोम है और त्वचा का मिलन हुआ ही नहीं इसलिए यह रेप की श्रेणी में नहीं आएगा।

मानसिक स्थिति का क्या?

एक बात समझ नहीं आती की स्त्रियों के साथ होने वाले अपराधों को इतना कैजुअली क्यों लिया जाता है? किसी भी स्त्री को आंखों से लगातार देखते रहने पर भी असहजता हो जाती है, और तब भी उसका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है क्योंकि मन में डर बस जाता है।

निर्भया केस के बाद ही कानून में अनेक बदलाव हुए थे, जिसमें कहा गया था कि लड़की का पीछा करना अपराध माना जाएगा, सेक्सुअल कमेंट करना अपराध माना जाएगा, जबरदस्ती करना अपराध माना जाएगा और भी अनेक बातों को सम्मलित किया गया था, मगर यह सब बातें कोरी कहानी साबित हो गई क्योंकि ना महिलाओं के प्रति अपराध कम हुए और ना सजाओं की संख्या बढ़ी।

न्यायलय एक तरफ महिलाओं को अर्थव्यवस्था में हिस्सेदार बनाता है, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं और बच्चियों के लिए फालतू फैसले लेकर आता है।

किसी भी महिला को अगर एक अनजाना सा टच भी महसूस होता है, तब वह अपने हाथ सिकोड़ लेती है और मानसिक रुप से कमज़ोर हो जाती है मगर इस निर्णय ने तो महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को ही ताक पर रख दिया। उस बच्ची की मानसिक हालत समझने की जरुरत भी न्यायलय को नहीं हुई कि उसे समझ भी आया है नहीं कि उसके साथ आखिर हुआ क्या है। लोग अपने बच्चों को गुड टच-बैड टच की परिभाषा बताते हैं मगर इस निर्णय के बाद शायद परिभाषा ही बदलनी पड़ेगी क्योंकि बच्चों के साथ ‘अच्छी मंशा’ के साथ किया बैड टच यौन हिंसा में आएगा ही नहीं।

मूल चित्र : Thainolpho via Canva Pro

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