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हुनर की अहमियत

आदिवासी कला केंद्र भोपाल में बोंड चित्रकार स्‍व. कलावती श्‍याम के चित्रों की प्रदर्शनी से साबित होता है कि हुनर की कितनी अहमियत है।

आदिवासी कला केंद्र भोपाल में बोंड चित्रकार स्‍व. कलावती श्‍याम के चित्रों की प्रदर्शनी से साबित होता है कि हुनर की कितनी अहमियत है।

‘इस दुनिया में जन्‍म लेने के पश्‍चात जब मां ने बोलना सिखाया तो मुख से पहला शब्‍द ही निकला मां!’ यह कहना था श्‍याम का जो चित्र प्रदर्शनी के अवसर पर सभी लोगों को बता रहा था और यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पिछले साल से हम सभी कोरोनाकाल की तमाम कठिनाईयों का सामना करने के बावजूद भी हमारी कलाकृतियों की आज भी उतनी ही अहमियत है और श्‍याम ने अपनी मॉं की बनाई कलाकृतियों को भोपाल शहर में  चित्र प्रदर्शनी में शामिल कर उनके सपनों को साकार किया।

जी हां साथियों विकट समय एवं परिस्थितियॉं कभी कहकर नहीं आतीं। वह तो साहब बिन बुलाए मेहमान की तरह आतीं ही हैं और इसीलिए तो हम कहते भी हैं कि यूं तो धूप-छॉंव, उतार-चढ़ाव आते रहते हैं साहब, लेकिन यह भी तय है कि हर पतझड़ के बाद बहार का आना भी निश्चित है और जिंदगी हमें यही खेल खिलाती है जनाब। इसी का नाम तो जीवन है।

सच बताऊं साथियों, मुझे खुशी इस बात की हुई कि बचपन से मां के साथ कलाकृति तैयार करने में सहायता करने वाले श्‍याम ने उसके विचारों को अहमियत देते हुए मां की कलाकृति को जीवित रखा। अब मैं आपको श्‍याम और उसकी मां  स्‍व. कलावती के संबंध में वाकिफ कराती हूँ।

श्‍याम ने बताया कि मां शहर आकर गोंड पेंटिंग करती तो गांव वाले मजाक उड़ाते थे, पर उन्‍होंने अपने काम की तरफ पूरा ध्‍यान केंद्रीत कर हुनर के निखार से सबको चुप कर दिया। जिस कलाकार में दिल से लगन हो कुछ कर दिखाने की तो वह अपनी कला को पूरा करके ही मानता है।

श्‍याम ने चित्र प्रदर्शनी के अवसर पर सभी को अवगत कराया कि मां कहती थी कि वे पाटनगढ़ गांव की प्रथम महिला थी, जो शहर में आकर गोंड पेंटिंग करती थी। यह हुनर देखकर गांव के लोग उनका मजाक उड़ाया करते, लेकिन उन्‍होंने लगन से काम को करते हुए अपने हुनर से सबको चुप कर दिया। उन्‍होंने 25 से अधिक परिवारों को और 70 से अधिक लोगों को गोंड चित्रकला सिखाकर चित्रकारी के हुनर को जीवित रखा। यह कहना है राष्‍ट्रीय स्‍तर की गोंड महिला चित्रकार स्‍व. कलावती के बेटे संभव सिंह श्‍याम का। स्‍व. कलावती की याद में उनके बनाए चित्रों की प्रदर्शनी भोपाल शहर में शुरू हुई और इस विशेष चित्रकारी को लोगों द्वारा बहुत सराहा भी गया।

श्‍याम ने मां द्वारा विभिन्‍न कलाकृतियों से अवगत कराया, जिसका संक्षिप्‍त विवरण निम्‍नलिखित रूप से प्रस्‍तुत है –

पेड़-पौधे, पशु-पक्षी ही बनाती थी मम्‍मी

संभव सिंह श्‍याम का कहना यह भी है कि उनकी मम्‍मी हमेशा चित्रों में पेड़-पौधे और पशु-पक्षी ही बनाया करती थीं। श्‍याम आठ साल का ही था तब से उसने सहायक के रूप में मम्‍मी के साथ काम किया। कलावती कहती थी कि पर्यावरण पर हम सभी निर्भर हैं, जिसकी झलक हमारे बनाए हुए चित्रों में भी दिखाई देना चाहिए।

उनकी 250 पेंटिंग अधूरी ही रह गई

कलावती ने आखरी पेंटिंग डेढ़ हफ्ते तक बनाई, लेकिन अचानक तबियत बिगड़ने लगी और यह पेंटिंग अधूरी ही रह गई। उनकी करीब 250 पेंटिग ऐसी हैं, जो अधूरी ही रखी हुई हैं। वे एक दिन में पांच पेंटिंग पर एक साथ काम किया करती थीं।

22 साल पुराना चित्र महत्‍वपूर्ण

प्रदर्शनी में स्‍व. कलावती द्वारा बनाया गया करीब 22 साल पुराना चित्र भी प्रदर्शित किया गया, इस पेंटिंग को बेचने के बजाए उनकी याद स्‍वरूप रखा गया है। इनका एक चित्र जो 4×6 केनवॉस पर बना है, इसे बनाने में उन्‍हें 22 दिन लगे थें।

जी हां, आदिवासी कला केंद्र भोपाल में शुरू हुई राष्‍ट्रीय स्‍तर की बोंड चित्रकार स्‍व. कलावती श्‍याम के चित्रों की प्रदर्शनी से यह भी साबित होता है कि हुनर की कितनी अहमियत है और चित्रों के माध्‍यम से भी पर्यावरण को प्रदर्शित करना कोई आसान काम नहीं है। साथियों स्‍व. कलावती ने अपने चित्रों के माध्‍यम से भी पर्यावरण की आवश्‍यकता को ध्‍यान में रखा। फिर जरा सोचिएगा कि पर्यावरण संरक्षण हमारे स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से कितना लाभकारी है और हमें भी अपने आस-पास पर्यावरण बनाए रखने में भरसक प्रयास करना अति-आवश्‍यक है।

फिर देखा आपने साथियों! किस तरह श्‍याम ने स्‍व. कलावती द्वारा बनाए गए चित्रों को यादगार-स्‍वरूप सहेज कर रखा, जो वाकई तारीफे काबिल है। कोई लाख मजाक उड़ा ले जनाब! हुनर तो हुनर है और असली कलाकार कलाकृतियों में उकेर कर उसकी अहमियत आखिर दिखा ही देते हैं।अब स्‍व.कलावती हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके बेटे श्‍याम ने यादगार रूप में कलाकृतियों को जीवित रखा और एक जीवंत उदाहरण प्रस्‍तुत किया कि चाहे किसी भी तरह की परेशानी आ जाए। उससे भागना नहीं है अपितु सामना करना है।

पिछले साल से हम सभी कोरोनाकाल से जूझ रहे हैं और बहुत सी अनिश्चित रूप से कठिनाईयों को झेला भी है, जिसमें आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से सबको हिला दिया है। परंतु किसी भी व्‍यक्ति में इस तरह से कोई भी हुनर हो तो वह स्‍वतंत्र रूप से अपने हुनर में निखार ला सकता है। सच में यह घटना हम सभी का हौसला बढ़ाने वाली और स्‍वच्‍छंदता से हुनर की अहमियत को प्रस्‍तुत करने वाली साबित हो रही है।

मूल चित्र : patrika.com

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