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वर्क फ्रॉम होम के बाद कई कंपनियों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई

भारत की कई मशहूर कंपनियों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अपनी भर्तियों में महिलाओं को 40% भागीदारी देने की परियोजना बनाई है।

भारत की कई मशहूर कंपनियों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अपनी भर्तियों में महिलाओं को 40% भागीदारी देने की परियोजना बनाई है।

दक्षिण एशियाई देशों के मुकाबले भारत में काम करने वाली महिलाओं की तादाद उतनी ज्यादा नहीं है, जितनी जनसंख्या के हिसाब से होनी चाहिए थी। कुछ समय पहले हमने आपको बताया था कि भारत में फीमेल लेबर फोर्स कैसे घट गया है, जो कि कुछ हद तक नज़र आ  रहा है। कोरोना काल के दौरान महिलाओं ने कंपनी की भाग-दौड़ बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाई, पर आज भी उन्हे बड़े पदों पर काम देने से कंपनियां बचती नज़र आती हैं।

हाल ही में भारत की कई मशहूर कंपनियों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अपनी भर्तियों में महिलाओं को 40% भागीदारी देने की परियोजना बनाई है। इसका एक बड़ा फायदा फीमेल लेबर फोर्स की बढ़ोत्तरी में होगा।

जहाँ कोरोना काल के दौरान महिलां अपनी नौकरियां बचाती नज़र आ रही थीं, वहीं आने वाले वक्त में उन्हें अनेकों अवसर मिलेंगे, जिसके कारण भी उनका विकास दर बढ़ेगा। भारत में मौजूद प्रमुख स्केटर जैसे- आईटी, हेल्थ, बैंकिंग, इंश्योरेंस अब महिलाओं की भर्ती पर ज्यादा फ़ोकस किया करेंगी।

अचानक ऐसा क्यों

भारत में कोरोना काल के दौरान महिलाओं ने घर और ऑफिस को बराबर की तवज्जो देते हुए काम किया है। भारत मे व्हाइट कॉलर और ब्लू कॉलर यानी ऑफिस एंव मेहनत-मजदूरी से काम करने वाली महिलाएं महज 12 प्रतिशत हैं। इस असमानता को दूर करने के लिए देश की प्रमुख कंपनियों ने अपनी नई भर्तीयों में चालीस प्रतिशत का हक़ महिलाओं को देने का मन बनाया है।

ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि महिलाओं ने अपने अच्छे प्रर्दशन से कंपनी की पुरानी सोच पर अंकुश लगा दिया, एक औरत घर और ऑफिस दोनों ही बहुत बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं।

नाइट शिफ्ट

भारत के किसी भी सेक्टर में महिलाओं की नाइट शिफ्ट पर यह कह दिया जाता है कि रात में काम कैसे करेगी, घर जाना होगा, पति और बच्चे तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे, रात में काम सिर्फ मर्द कर सकते हैं पर भारत सरकार ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए बजट 2021-22 में सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट को बढ़ावा देने की बात मानी है। इससे कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ने के साथ ही लीडरशिप की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।

भारत में लैंगिक समानता

बाकी देशों के मुकाबले भारत में हर क्षेत्र में महिलाओं के साथ लैंगिक असमानता है। जन्म से ही हम बच्चों में भेदभाव कर देते हैं। बड़े होते- होते उनकी मानसिकता हो जाती है, ‘एक औरत कभी भी एक मर्द का मुकाबला नहीं कर सकती है।’ कुछ समय पहले आर्मी जैसे प्रतिष्ठित क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ने पर रोक लगा दी थी, सिर्फ यह कहकर वह ये कार्यभार नहीं संभाल पाएँगी। लेकिन महिलाओं ने इस सोच का मुकाबला किया और अपनी जगह पक्की की।

कंपनियों ने बदली अपनी सोच

एक्सिस बैंक, इंफोसिश, टाटा स्टील, वेदांता, आरपीजी ग्रुप, डालमिया सीमेंट और टाटा केमिकल्स ने फीमेल टैलेंट की तलाश तेज कर दी है। एक्सिस बैंक इस साल दो हजार कैंपस प्लेसमेंट करने वाला है, जिसमें 40% महिलाएं होंगी। इंफोसिस भी लैंगिग समानता का  ध्यान रखते हुए 17 हजार फ्रेश ग्रेजुएट्स की भर्ती करेगा।

डालमिया सीमेंट भी वीमेंस कॉलेज और यूनिवर्सिटी से प्लेसमेंट की खास योजना बनाऐगा। टाटा स्टील भी इस साल अपनी मैनेजमेंट भर्तीयों में 50% औऱ इंजीनियरिंग भर्तियों में 40% महिलाओं को हायर करेगा।

जहाँ आज भी हम महिलाओं को कम आकते हैं। वहीं बड़े देशों को छोड़कर भारतीय महिलाएं आगे निकलीं। चीन, ब्राजील, रुस, मैक्सिको से भारत आगे निकल गया। MSCI,ACWI, इंडेक्स की नई स्टडी में पाया गया है कि भारत की प्रमुख कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी 17% तक पहुंच गई है। हांलाकि स्टडी में शामिल किए गए थाईलैंड, अमेरिका, साउथ अफ्रीका और यूके से  भारत अभी भी पीछे है।

पुरानी सोच बदली

कोरोना काल से पहले कंपनियों की धारणा थी कि महिलाएं ज्यादा काम नहीं कर सकती हैं। घर और ऑफिस में सामंजस्य बैठने के चक्कर में वह कई बार छुट्टियां लेती हैं। पारिवारिक कारणों के कारण कई बार उनके काम पर असर दिखता है पर वर्क फॉम होम से उनके परफॉरर्मेंस बढ़ी है। जिसके कारण कंपनियों की मानसिकता में बदलाव आया है।

आज भी विश्व की बड़ी कंपनिया महिला सीईओ से घबराती हैं, ऐसा इसीलिए क्योंकि हमारे विश्व में महिलाओं को दूसरे दर्जे का मनुष्य माना जाता है। महिला से उम्मीद की जाती है कि परिवार को संभालना उनका पहला कर्तव्य है। काम वह अपने शौक पूरे करने के लिए कर रही है, पर असल में तो उन्हें बच्चों को ही पालना है।

महिलाएं जज़्बाती होती हैं, इसीलिए वह कोई भी फैसला भावनाओं में आकर ले सकती हैं पर हम यह भूल जाते हैं कि एक महिला अगर जज़्बाती होती है तो उतनी ही मजबूत भी होती है। अगर कोरोना काल नहीं आता तो शायद आज भी महिलाओं की हायरिंग पर सवाल खड़े होते।

मूल चित्र : LiudmylaSupynska from Getty Images Signature via Canva Pro 

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