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एक सोशल वर्कर का काम कैसा होता है, वो करती क्या हैं, बताती हैं शैली अग्रवाल

'वो करती क्या हैं' में आज हम सोशल वर्कर शैली अग्रवाल से जानेंगे कि एक सोशल वर्कर का दिन कैसे गुज़रता है, और क्या-क्या काम करती हैं ये। 

‘वो करती क्या हैं’ में आज हम सोशल वर्कर शैली अग्रवाल से जानेंगे कि एक सोशल वर्कर का दिन कैसे गुज़रता है, और क्या-क्या काम करती हैं ये। 

क्या आप भी किसी प्रोफेशन में जाने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी जानना चाहते हैं कि आखिर आपका दिन कैसा होगा, आपको क्या-क्या काम करने पड़ सकते हैं, किस तरह की चुनोतियाँ आपके सामने आएँगी, किस तरह के लोगों से आप रूबरू होंगे, आपको दिन का कितना समय उसमे देना होगा?  

ये सीरीज़ आपके लिए है जहां हम मिलेंगे अलग अलग फील्ड की महिलाओं से और जानेंगे कि आखिर उनका दिन कैसा गुज़रता है यानी वो करती क्या हैं?

सबसे पहले हम जानेंगे कि एक सोशल वर्कर को दिन यानी सामाजिक कार्यकर्त्ता का दिन कैसे गुज़रता है। सोशल वर्कर बनने के लिए आप निर्धारित पढ़ाई भी कर सकते हैं या फिर वॉलंटरिंग के साथ ट्रेनिंग भी ले सकते हैं। इसके बारे में अधिक जानने के लिए मिलते हैं गाज़ियाबाद की सोशल वर्कर शैली अग्रवाल से जो अभी कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। 

45 साल की शैली अग्रवाल एक होम मेकर और 8-9 सालों से सोशल वर्कर हैं। इन्होंने कंप्यूटर साइंस में MCA और MPHIL किया है और 6 साल दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाया है। इसके अलावा ये लिखती हैं और पेंटिंग भी करती हैं खासकर ट्राइबल आर्ट।

शैली अग्रवाल को हमेशा से अनजान (कम से कम 5) लोगों की लाइफ में कुछ पॉजिटिव चेंज लाना था और आज इसी सपने के साथ ये कई लोगों की मदद कर रही हैं। और इनके साथ, पर्यावरण की रक्षा के लिए इनके द्वारा उठाये गए कदम को भी कई जगह सराहा जा चुका है। ये स्टे एट होम मॉम हैं।

जानिये सोशल वर्कर का दिन कैसा होता है और क्या काम करती हैं शैली अग्रवाल 

आस्था से जागरूकता तक

शैली अग्रवाल इन दिनों ‘आस्था से जागरूकता तक’ प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। इसमें पूजा घर का वेस्ट, जिसे अक्सर हम पीपल के पेड़ के पास छोड़कर चले जाते हैं, वहां से उठाकर उनमें से सामान अलग-अलग कर उनको नए तरीके से यूज़ करते हैं। शैली और उनकी 5 फ्रैंड्स मिलकर मिटटी के दीपकों और कुछ और रिसोर्सेज से सोसाइटी की वॉल पेंट कर रहे हैं। 

शैली ने ये प्रोजेक्ट 2019 में दिवाली के बाद छट पूजा वाले दिन शुरू किया था। तब से ये लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि प्रकति को आप भगवान समझ रहे हैं फिर उसे ही गंदा कर रहे हैं जोकि गलत है।

हालांकि कोविड के बाद से ये रुक गया था लेकिन अभी जनवरी से फिर से शुरू किया है। इसमें शैली हफ्ते में 5 दिन जाती हैं। अपने इस काम के रूटीन के बारे में शैली ने बताया कि वे 12 बजे घर से निकलती हैं। फिर सामान कलेक्ट करके साइट पर पहुँचते हैं। तो लगभग 12:30 से 2:30 तक काम करते हैं और 3 बजे तक वापस घर आ जाते हैं। 

शुरुवात में इन महिलाओं ने कई चुनौतियों का सामना किया जैसे इनकी पहली पेंटिंग को वॉश करवा दिया गया था लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपनी जेब से भी पैसे लगाए, बिल्डर्स को इसके लिए राज़ी किया और आगे बढ़ती गयी। इन दिनों स्कूल फ्रॉम होम, वर्क फ्रॉम होम होने के कारण काम भी बढ़ गया लेकिन अपने दिन का कुछ हिस्सा ये सोसाइटी के लिए दे रही हैं।  

शैली कहती हैं कि हमें सब कहते हैं आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन साथ काम करने के लिए चुनिंदा लोग ही आते हैं। 

नन्हे कदम

शैली अग्रवाल का दूसरा प्रोजेक्ट जो उनके बेहद करीब है, वो है ‘नन्हे कदम।’ ये एक प्राइवेट ट्रस्ट ‘प्रभा रस्तोगी चेरिटेबल फ़ाउंडेशन’ का प्रोजेक्ट है। यहां झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को फ्री बेसिक एजुकेशन दी जाती है और उनमें से कुछ ब्रिलियंट बच्चों को फॉर्मल एजुकेशन के लिए प्राइवेट या गवर्नमेंट स्कूल में एडमिशन कराते हैं। 

यहां भी 4-5 महिलाएँ मिलकर काम कर रही हैं और बच्चों की पढ़ाई के लिए अलग से टीचर अप्पॉइंट किये हुए हैं तो शैली अग्रवाल को सेंटर पर रोज नहीं जाना पड़ता है। लेकिन जिस दिन वे नहीं जाती हैं उस दिन वे लगभग 2 घंटे का समय निकालकर घर से ही काम करती हैं। इसमें वे मुख्य रूप से फंड्स के लिए ट्रस्टीज़ से बात करना, अन्य वालंटियर्स के साथ कोऑर्डिनेट करना, टीचर्स से बात करना, सभी इवेंट्स का संचालक करना आदि काम संभालती हैं।

जिस दिन वे स्कूल सेंटर जाती हैं उस दिन उनका काम का दिन अलग होता है। इसके बारे में शैली बताती हैं कि सबसे मुश्किल काम पेरेंट्स को समझाना होता है क्योंकि अधिकतर बच्चों के माँ बाप उन्हें भीख माँगने भेज देते हैं जिससे आराम से वे दिन के 250-300 रूपये कमा लाते हैं। तो सबसे पहला स्टेप हमारा ऐसे परिवारों को पढ़ाई की इम्पोर्टेंस बताना है। शुरुवात के 1-2 साल हमारा मकसद होता है कि इन बच्चों को बेसिक नॉलेज दें और उसके बाद फॉर्मल स्कूल भेजते हैं।

जब शैली नन्हें कदम के सेंटर जाती हैं तो कम्युनिकेशन करना उनका मुख्य काम होता है। इसमें टीचर्स को गाइड करना, बच्चों से बात करना, उनके पेरेंट्स को समझाना इनके काम का हिस्सा है। साथ ही सोशल मीडिया और मीडिया से कॉन्टैक्ट करना आदि शैली हीं देखती हैं।

ये नन्हें कदम में बच्चों के ओवरऑल डेवलपमेंट पर काम करते हैं। यहां सॉफ्ट स्किल्स भी सिखाते हैं। और साल भर में एक आउटडोर एक्टिविटी करवाते हैं।

किचन वेस्ट से खाद

शैली ने अपने घर से शुरू किये वेस्ट मेनेजमेंट के कदम को कम्युनिटी लेवल तक पहुंचाया है। इस पर शैली ने करीब 7- 8 साल पहले अपने घर में ही किचन वेस्ट से खाद बनाना शुरू किया था फिर इन्हें इसके बेनिफिट्स दिखाई दिए। इन्होंने इसे अब सबके साथ शेयर किया और फ्री वर्कशॉप्स कंडक्ट करने लगी जिसमें ये डेमो देती हैं। 

इसके लिए शैली ने RWA से बात करी और अपनी एक फ्रेंड के साथ मिलकर इसे कम्युनिटी लेवल पर शुरू किया और इससे आज उनकी कम्युनिटी का रोज करीब 150 kg वेस्ट उन्होंने लैंडफिल में जाने से रोक लिया। इसमें शैली बताती हैं कि वे सिर्फ रोज के 2 मिनट देती हैं। घर से कचरे को अलग-अलग करती हैं और किचन वेस्ट से खाद बनाती हैं।

शैली अग्रवाल अपने इस पूरे रूटीन के बारे में एक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहती हैं, “इन सबके बावज़ूद मैं भी कभी कभी फ़्रस्ट्रेट हो जाती हूँ कि मैं करना तो बहुत कुछ चाहती हूँ लेकीन कर नहीं पा रही हूँ। फिर बाद में शांत होने के बाद समझ आता है कि हर बार 100% देना ज़रूरी नहीं है। जितना हो रहा है पहले उसे तो अच्छे से कर ले। कई बार इन सब में बहुत सी चीज़ों को इग्नोर करना पड़ता है। जैसे मेरा घर बाकि सबकी तरह इतने अच्छे से मैनेज नहीं रहता। लेकिन मैं खुद की पहली प्रायोरिटी हूँ इसीलिए जो काम मुझे पसंद है उसे में वक़्त देती हूँ।”

तो ये है सोशल वर्कर शैली अग्रवाल का दिन और उनका काम। अगर आप भी सोशल वर्कर बनना चाहते हैं, तो आप भी अपनी क्वॉलिफिकेशन, कॉन्फिडेंस, और सारे रिसोर्सेज को यूज़ करके कुछ पॉज़िटिव चेंज ला सकते हैं। इसके लिए आपके पास कोई स्पेसिफ़िक डिग्री होना ज़रूरी नहीं है। और शैली के दिन से आपको अंदाज़ा भी हो गया होगा कि अगर आप सोशल वर्कर बनती हैं तो आपका दिन कैसा होगा। तो एक बार शुरू करिये, हफ्ते में एक घंटा ही निकालिये, आपको अच्छा लगेगा।

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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