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अपनी सासू माँ में मुझे मेरी खोयी माँ वापस मिल गई…

विदाई के समय दुल्हन बनी दिव्या ने माँ की तस्वीर ऐसे सीने से लगा रखी थी कि मानो हर पल माँ को साथ रखना चाहती थी। 

विदाई के समय दुल्हन बनी दिव्या ने माँ की तस्वीर ऐसे सीने से लगा रखी थी कि मानो हर पल माँ को साथ रखना चाहती थी। 

दुल्हन बनी दिव्या अपने पापा के गले लग रोये जा रही थी। सिसकियों में डूबी बेटी को सँभालते राजीव जी को अब खुद को संभालना भी बेहद मुश्किल लग रहा था। कलेजे से माँ की तस्वीर चिपकाये रोती बिलखती दिव्या को किसी तरह मामी चाची ने गाड़ी में बिठा कर विदा किया।

इकलौती बेटी विदा हो गई थी, राजीव जी बेहद उदास हो उठे थे।

गाड़ी में बैठी दिव्या को आज अपनी माँ बहुत याद आ रही थी। कितनी ख़ुश थी माँ जिस दिन दिव्या की शादी अमन से पक्की हुई थी। घर में रात दिन सिर्फ शादी की बातें होती रहती।

“एक ही बेटी है राजकुमारी की तरह विदा करुँगी।”

“क्यों माँ, मैं भी तो हूँ? आपको तो हमेशा दीदी ही दिखती है”, छोटा भाई सनी शिकायत करता तो घर में सब हॅंस पड़ते।

शादी की एक एक चीज माँ खुद पसंद करती थी। शादी को तीन महीने रह गए थे।

“दिव्या बेटा आज लहंगे की डिलीवरी के लिये बुटीक से कॉल आया था चल कर फिटिंग देख लो।”

“आज नहीं माँ कल चले क्या आज मन नहीं है।”

“मन क्यों नहीं है? कैसी लड़की है? अरे सीख दूसरी लड़कियों से कैसे शॉपिंग करती हैं अपनी शादी की। यहाँ तेरे शादी का लहंगा तक मैंने पसंद किया है।”

माँ की मीठी डांट सुन दिव्या हँसने लगी, “माँ आपकी पसंद है ही बेस्ट, अच्छा ठीक है आज ही चलते है।”

मन ही मन तो दिव्या भी जानती थी की कितना शौक था माँ को उसकी शादी का तभी तो कितने शौक से माँ तैयारी कर रही थी, इसलिए तो वो भी सब कुछ सिर्फ और सिर्फ अपनी माँ के पसंद की लेनी चाहती थी।

बुटीक के पास पहुंच राजीव जी ने गाड़ी सड़क के किनारे ही पार्क कर दिया और सब दुकान के अंदर चले गए, तभी माँ को याद आया की पर्स तो गाड़ी में ही रह गया था।

“तुम बैठो मैं लें आता हूँ”, राजीव जी ने कहा।

“नहीं मैं लें आती हूँ ना आप बस चाभी दीजिये।”

ज़िद कर माँ ने चाभी लें ली, अभी माँ रोड के पास पार्क गाड़ी के पास पहुंची ही थी एक गाड़ी से जोरदार टक्कर हो गई।

बाहर एक्सीडेंट का शोर सुन दिव्या और उसके पापा भी बाहर भागे। देखा तो दोनों को काठ मार गया सड़क पे दिव्या की माँ खून से लथपथ पड़ी थी।

आनन फानन में अस्पताल लें जाया गया लेकिन सब व्यर्थ था, माँ तो वहीं ख़त्म हो चुकी थीं।

दिव्या का परिवार उजड़ चुका था। ख़बर सुन अमन का परिवार भी आया था। दुखी माहौल में सारे क्रिया कर्म हो गए।

बड़े बुजुर्गो की सलाह पे शादी की डेट आगे ना बढ़ा कर राजीव जी ने उसी मुहूर्त पे सादे कार्यक्रम में दिव्या और अमन की शादी करने की ठानी ।

दिव्या जो अपने माँ की बेहद करीब थी बिलकुल टूट चुकी थी।

“नहीं करनी मुझे मेरे माँ के बिना शादी पापा।”

“ज़िद ना कर बेटा आखिर तेरे माँ की भी तो यही इच्छा थी।” किसी तरह दिव्या को राजीव जी ने मना ही लिया।

माँ की तस्वीर सीने से लगा माँ की पसंद किये लहंगे में ही दिव्या ने सारे विधि विधान विवाह के पूरे किये। माँ की तस्वीर ऐसे सीने से लगा रखा था जैसे हर पल माँ को अपने साथ रखना चाहती थी।

एक झटके से गाड़ी रुकी और “दुल्हन आ गई” का शोर उठा।

गृहप्रवेश की रश्म के बाद सारा दिन छोटे मोटे रस्मों में निकल गया।

“दिव्या बहु कल चूल्हा छूने की रस्म है जल्दी उठ जाना।” रात को बुआ सास ने कहा तो दिव्या डर गई।

“माँ होती तो जरूर सीखा कर भेजती क्या क्या बनाना होता है, लेकिन अब मैं क्या करुँगी? इतने लोगो का खाना कभी बनाया भी नहीं”, सोच सोच कर ही दिव्या रुआँसी हो उठी।

अगले दिन जल्दी उठ अच्छे से तैयार हो रसोई की ओर गई। अभी दरवाजे के पास ही आयी बुआ जी को कहते सुना, “ये क्या भाभी? आपने क्यों बनाया खाना? अरे आज शाम को निकलना था हमें ऐसे में हम भी तो चख लेते दिव्या बहु के हाथों का स्वाद।”

“आप ठीक कह रही है दीदी, लेकिन ज़रा सोचिये अभी क्या मनोदशा होगी दिव्या की, हाल में माँ को खोया और फिर नई जगह, कैसे बना पायेगी और अगर बना भी लिया और स्वादिष्ट ना बना तो हमेशा के लिये उसका मनोबल टूट जायेगा। आप दुबारा जल्दी आना तब तक दिव्या भी रच बस जायेगी तब खिला दूंगी अपनी बहु के हाथों का स्वादिष्ट खाना।”

“वाह भाभी, बहु को प्रेम से रखना कोई आपसे सीखे।”

बुआ सास और सासूमाँ की बातें सुन दिव्या के दिल से सारा डर दूर हो गया और दिल में सम्मान दुगना हो गया। सास को सामने देख जल्दी से झुक प्रणाम किया।

“सदा सुहागन रहो बेटे, चलो जल्दी से सारा खाना सब छू दो और पांच दाल की पूड़ियाँ भर कर तल दो शगुन हो जायेगा।”

“माँजी आपने क्यों बनाया ये तो मुझे बनाना था ना।”

“हां बेटा, लेकिन इसलिए तो शगुन की पूड़ियाँ तलने को कह रही हूँ। क्या मैं जानती नहीं आज कल की लड़कियों को पढ़ाई लिखाई से फुर्सत ही कहाँ मिलती है जो इतने लोगो का खाना बना सकेँ और अगर समधन जी होती तो वो फिर भी सीखा समझा देतीं तुम्हें लेकिन अब उनके हिस्से की जिम्मेदारी भी तो मेरी ही है ना बेटा।”

अपनी ममतामयी सासूमाँ की बातें सुन दिव्या की आँखों से आंसू बह निकले तुंरत अपनी सासूमाँ के गले लग गई।

“आज आपके रूप में मुझे मेरी माँ वापस मिल गई माँ।”

दिव्या को कलेजे से लगा उसकी सासूमाँ ने कहा, “हां बेटा? आज से मैं ही तेरी माँ हूँ।”

मूल चित्र: Still from show Ekk Nayi Pehchaan Ep.12, YouTube

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