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आज मैं इसलिए खुश हूँ क्योंकि मैंने तुम्हारी बात मानी…

इन सब के बीच निशा की एक जेठानी रमा के चेहरे पर निशा हमेशा उदासी की छाया देखती और जल्दी ही कारण भी पता चल गया निशा को।

इन सब के बीच निशा की एक जेठानी रमा के चेहरे पर निशा हमेशा उदासी की छाया देखती और जल्दी ही कारण भी पता चल गया निशा को।

नोट : इंटरनेशनल विमेंस डे 2021के लिए ‘ये मेरा चैलेंज है’ कॉटेस्ट के अंतर्गत आयी आपकी सभी कहानियाँ एक से बढ़कर एक हैं। तीन बेहतरीन कहानियों की श्रृंखला में तीसरी कहानी है एकता ऋषभ की।  एकता ,आपको हम सब की ओर से अनेक शुभकामनाएं !

बदलाव! हर इंसान बदलाव तो चाहता है लेकिन खुद से शुरू करना नहीं चाहता। बदलाव के बहुत से मायने हैं लेकिन मेरी नज़रो में सबसे जरुरी बदलाव इंसान के सोच की होती है। जब इंसान के सोच में बदलाव आता है तब जिंदगी जीने का नज़रिया भी बदल जाता है।

सोच में बदलाव का जो सबसे बड़ा चैलेंज मेरे जीवन में रहा है उसके विषय में ही आज मैं अपनी कहानी के माध्यम से बताना चाहूंगी।

निशा की शादी एक संयुक्त परिवार में हुई थी। पढ़ी-लिखी निशा के ससुराल पक्ष में महिलायें ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं और ग्रामीण परिवेश से आने के कारण सोच भी संकुचित थी। सब प्रेम से रहते थे लेकिन इन सब के बीच निशा की एक जेठानी रमा के चेहरे पर निशा हमेशा उदासी की छाया देखती।

जल्दी ही कारण भी पता चल गया निशा को। रमा की शादी को चार साल होने को आये थे, इस बीच तीन बार गर्भ ठहरा लेकिन हर बार मिसकैरिज हो जाता। अपने तीन अजन्में बच्चों को खोने का दर्द रमा के चेहरे से दिख ही जाता था, वही हाल उनके पति का भी था।

कुछ समय बाद निशा भी माँ बन गई लेकिन रमा की गोद सूनी ही रही। समय बीतते-बीतते बारह साल हो गए और इस बीच हर तरह का ईलाज होता रहा और अंत में डॉक्टर ने साफ कह दिया, “आपको नेचुरल तरीके से बच्चा कंसीव नहीं हो पायेगा।”

रमा और उसके पति टूट चुके थे। जब निशा को पता चला तो उसने अपनी जेठानी को हौसला दिया और आई वी एफ से कंसीव करने का सुझाव दिया। इस सुझाव को पहले डॉक्टर ने भी दिया था लेकिन इसके लिये रमा और उनके पति बिलकुल तैयार नहीं थे।

कम पढ़े लिखें होने के कारण उन्हें आईवीएफ के बारे में जानकारी कम थी और उन्हें ये भ्रम था कि  आईवीएफ का बच्चे उनका अपना खून नहीं होगा और शायद ये बच्चे स्वस्थ भी नहीं होंगे क्यूंकि भूर्ण को लैब में तैयार कर गर्भ में डाला जाता।

निशा के ज़ोर देने पे पूरा परिवार और ख़ास कर रमा और उसके पति निशा से बेहद नाराज़ हो गए।  एक बार तो निशा को भी लगा की जब वो नहीं समझ रहे तो मैं भला कितना प्रयास कर सकती हूँ? लेकिन फिर उसी पल निशा ने सोचा कि नहीं रमा भाभी के सोच को बदलना ही होगा और मातृत्व की सुखद अनुभूति जिसके लिये सालों से वो तरस रही थीं वो उनको दिलवा के ही मैं रहूंगी। रमा भाभी के सोच को बदलने का चैलेंज निशा ने खुद को दे दिया।

बस फिर क्या था निशा लग गई रिसर्च में और फिर दोनों पति पत्नी को खुद कई ऐसे कपल से मिलवाया जिन्होने सालों तरस के आई वी एफ का रास्ता अपनाया था और माता-पिता बनने का सूख भोग रहे थे। इन सब में निशा की एक बेहद ख़ास सहेली भी शामिल थी जो की खुद कई सालों के प्रयास के बाद आईवीएफ के द्वारा माँ बनी थी।

इन लोगों से मिल कर बातें कर और  से जन्मे बच्चों को देखने के बाद निशा, रमा और उनके पति को डॉक्टर के पास लें गई वहाँ डॉक्टर के द्वारा भी सारे प्रोसेस को अच्छे से समझाया गया। आखिर माँ बनने की ललक तो थी ही लेकिन जो झिझक आईवीएफ को लें कर थी वो अब दूर हो गई थीं  और रमा ने आईवीएफ प्रोसेस के लिये हामी भर दी।

ख़ुशी-ख़ुशी प्रोसेस शुरू हुआ और पहली बार में ही सफलता मिल गई।

रमा बहुत ख़ुश थी जिन दो गुलाबी रेखा को देखने के लिये रमा की आँखे तरस रही थी वो आज सामने थी लेकिन कमजोर यूटरस और जुड़वा बच्चों के कारण डॉक्टर ने कम्पलीट बेड रेस्ट रमा को बता दिया था। समय पे सारे टेस्ट होते रहते थे, बच्चों को ग्रोथ भी अच्छी थी। नौ महीने होते-होते ऑपरेशन से रमा पैंतालीस साल की उम्र में दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया।

“जहाँ मैं एक बच्चे को तरस रही थी आज बेटे और बेटी दोनों बच्चों की माँ बन गई निशा, वो भी सिर्फ तुम्हारे कारण। अगर तुमने हमें समझाया और बताया ना होता तो शायद पुरानी सोच के कारण हम कभी आईवीएफ को नहीं अपनाते।”

रमा की बातें सुन निशा की ऑंखें भी भर आयी थीं। आज निशा की चुनौती पूरी हो गई थी।

आज की तारीख में मेडिकल बहुत एडवांस हो चूका है तो क्यों ना कोई औरत जो नेचुरली कंसीव नहीं कर सकती वो आईवीएफ का रास्ता अपना कर मातृत्व का सूख प्राप्त करें। आईवीएफ के बच्चे भी पति-पत्नी के अपने ही होते हैं, बस तरीका दूसरा होता है। ये बात रमा की समझ में आ गई थी।

आज दोनों बच्चे एक साल के हो चुके हैं और बहुत एक्टिव भी हैं। लगभग रोज़ ही रमा और निशा की बातें होती हैं और रमा की बातें शुरू भी देव और दृष्टि से होती और खत्म भी। और निशा को उनकी बातें सुन ये तसल्ली होती है कि रमा भाभी की सोच में बदलाव ला निशा ने उनकी खुशियाँ उनको लौटा दीं।

नोट: प्रिय पाठकगण, ये एक पूर्णतः सत्य घटना है सिर्फ पात्रों के नाम बदले गए हैं 

मूल चित्र : Screenshot Pearl Pill, YouTube (for representational purpose only)

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