अरे ओ मौसी तेरा बेटा तो पुरा जोरु का गुलाम हो गया है..कौन होते हैं जोरु के गुलाम जिनसे मुँह चिढ़ाता है समाज ?
“अरे ओ मौसी तेरा बेटा तो पूरा जोरु का गुलाम हो गया है…”, ये सुनते ही पूरे मोहल्ले में कानाफुसी शुरू हो गयी…कितने शर्म की बात थी ना ये?
भारतीय शादियों में होने वाले फंक्शन में औरतों होने वाले लड़के को जोरु का गुलाम शब्द से चिढ़ाती है। इस शब्द पर हमारे देश में अब तक कई गाने भी बन चुके है और शादियों के मजाक में यह शब्द आपने कई बार सुना होगा पर सही मायनों में क्यों लोग जोरु के गुलाम शब्द से मुँह चिढ़ाते है। यह जानना सभी के लिए बहुत ज़रुरी है।
“अरे ओ मौसी तेरा बेटा तो पूरा जोरु का गुलाम हो गया है…” जैसे कितने ही वाक्य हमने अपनी जिंदगी में सुने होंगे और शायद आगे भी सुनेंगे पर क्यों बोले जाते हैं यह शब्द? यह आज भी लोगों के लिए एक पहेली है।
जब एक औरत अपनी जिम्मेदारियां निभाती हुए पति के काम में हाथ बटाती है तो उसे सिर्फ़ पत्नी और बहु का खिताब दिया जाता है पर जब पुरुष अपनी पत्नीयों की मदद करने लगते हैं तो समाज उन्हें जोरु के गुलाम के नाम से बुलाने लगता है।
जोरु के गुलाम की परिभाषा हम अपने समाज की उन आने वाली पीढ़ियों से सुनते हैं जिन्हें आगे अपना घर बसाना है।
“वो लड़का सही चीज़ कर रहा पर हमारा समाज उससे गलत ठहरा देता है, क्योंकि हम यह मान चुके हैं कि एक औरत की मदद करना पति का फ़र्ज नहीं बल्कि उसकी मजबूरी है। एक मर्द मदद करे तो वह जोरु का गुलाम होता पर वही औरत करे तो यह उसका फर्ज़ है, उससे यह करना चाहिए”- अर्पणा, छात्रा
“अपने पत्नी के हर सही और गलत कदम में साथ देने वाला जोरु का गुलाम होता है। वह अपनी पत्नी के गलतियों को अनदेखा कर उससे हर वक्त सपोर्ट करता है” – दीपिका, छात्रा
“जोरु के गुलाम से यही लगता है कि वह हर बात में अपनी पत्नी का साथ देता होगा। चाहे वो अच्छा हो या बुरा” – साक्षी, छात्रा
यह उन महिलाओं की राय हैं जो आने वाले वक्त में भारत का भविष्य बनेगी पर सही मायनों में जोरु का गुलाम क्या होता है यह सिर्फ हमने महिलाओं से ही नही बल्कि हमारे नौजवान युवक से भी पूछा, पहले उनकी राय सुनते हैं –
“आज के इस पितृसात्मक समाज में जहाँ हर वक्त औरतों की बात होती है वहीं यह भी सोचना चाहिए कि यह जोरु का गुलाम शब्द को जन्म किसने दिया? वह भी एक महिला होगी जिसने दूसरी औरत से रोष करते हुए कहा होगा कि उसने तो अपने पति को गुलाम बनाकर रखा है” – राहुल कुमार
हमारे समाज में ऐसे अनेकों उदाहरण है जहाँ महिलाओं की भावना के साथ रोज़ ही खिलवाड़ होता है और वह चुपचाप इससे सहन करती है। दिन भर के काम के बाद उनसे यह उम्मीद लगायी जाती है कि यह हर काम बिना किसी के मदद से करे। पति की सहायता किचन एंव घर के कामों में लेने से पति की इज़्ज़त कम हो जाती है।
पहले के ज़माने में यह सोचा जाता था कि महिलाओं की मदद करने वाले मर्द कमज़ोर होते है, उन्हें घरेलू कामों में मज़ा आता है। औरतो के पीछे छिपना उनकी फितरत है पर यह भूल जाते हैं कि एक औरत से ही उनका निर्माण हुआ है।
जब भी बात महिलाओं की होती है तो समाज चुपी साध लेता है, वह महिलाओं के साथ होने वाले विषयों पर बात न के बराबर करना चाहते है क्योंकि उन्हें डर होता हैं कि महिलाएं अपने हक़ के लिए कही कुछ बोल न दे।
बहुत से महिला और पुरुषों ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि कैसे समाज उनपर जोरु के गुलाम होने की आरोप लगाता है जबकि वह बस अपनी पत्नी की मदद कर रहे हैं।
इन्होंने लिखा है कि महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन है अगर उनका पति उनके लिए ऐसे काम करे तो वह डंके की चोट पर कहेंगी कि उनके पति उनकी मदद करते हैं पर वहीं उनका बेटा अगर बहु की मदद करे तो वह जोरु का गुलाम कहलता है।
शुरुआत हमें अपने घर से करनी चाहिए, आज के दौर में सबसे ज़्यादा जरुरत हैं, छोटे बच्चों को यह सीखाना चाहिए फिर जाकर समाज में बदलाव आएगा।
तनीषा शर्मा ने लिखा है क्योंकि हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान है, स्त्रियों को आज भी समाज पुरुषो की गुलामी करते देखना पंसद करता है।
प्रियका लिखती हैं कि अगर हर माँ अपने बेटे को शुरुआत से ही गृह विज्ञान सिखाये तो ऐसी दकियानूसी ख्यालों पर अंकुश लगेगा।
रुची लिखती हैं कि यह सोच सिर्फ़ मर्दों की ही नहीं बल्कि औरतों की भी होती है।
ऐसे ही बहुत से कमेंट हमें मिले। उनको पढ़ने के लिए आप हमारी फेसबुक की ये पोस्ट चेक कर सकते हैं यहां
जोरु का गुलाम से आप क्या समझते है हमें अपने कंमेट में जरुर बताएं।
मूल चित्र: Screenshot from Why &What, YouTube