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‘कब तक लड़ेंगे अपनों से’ कहकर आयशा आरिफ खान ने मौत को गले लगा लिया…

लोग वीडियो को शेयर कर रहे हैं और लोगों की आंखें नम हैं मगर ये लोगों की ही बनाई मानसिकता है कि आयशा आरिफ खान अपनी जिंदगी से तंग हो गई। 

लोग वीडियो को शेयर कर रहे हैं और लोगों की आंखें नम हैं मगर ये लोगों की ही बनाई मानसिकता है कि आयशा आरिफ खान अपनी जिंदगी से तंग हो गई। 

चेतावनी : इस पोस्ट में सुसाइड का विवरण है जो आपको परेशान कर सकता है। 

एक महिला का सुसाइड करने से पहले का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड हो रहा है। उस महिला का नाम आयशा आरिफ खान है। वह अपने अब्बू से कहती है कि अब नहीं लड़ना चाहती, अपनों से बहुत लड़ लिया और अब वह थक चुकी है।

अपने शौहर को याद करके वह कहती है कि उसे आज़ादी चाहिए इसलिए आप सारे केस वापस ले लो। साथ ही वह कहती है कि प्यार हमेशा दो-तरफा होना चाहिए क्योंकि एकतरफा प्यार से कुछ नहीं होता। उसके बाद वह साबरमती नदी में कूद जाती है। हालांकि उसके पहले उसके अम्मी-अब्बू उसे कॉल पर कहते हैं कि वापस आ जाओ मगर आयशा इतनी ज्यादा परेशान है कि वह वापस नहीं लौटती और नदी को गोद में स्वयं को सौंप देती है। 

मामला क्या है?

आयशा की शादी साल 2018 में राजस्थान के रहने वाली आरिफ से हुआ थी। आरिफ दहेज में 1.5 लाख रुपये मांगे थे, जिसकी डीमांड पूरी कर दी गई थी मगर आरिफ की मांग बढ़ने लगी। वहीं मांग पूरी नहीं होने के कारण आरिफ ने आयशा से बात करना छोड़ दिया था। कॉल पर आयशा ने अपने अब्बू से कहा था कि मैंने आरिफ को बता दिया है कि मैं सुसाइड करने जा रही हूं और उसने वीडियो मांगा है इसलिए मैंने रिकार्ड करके भेज दिया है।

आजकल लोगों के बीच खुद को साफ दिखाने के लिए लोग एक-दूसरे का वीडियो मांग लेते हैं, जैसा आरिफ ने किया। आयशा आरिफ से बेइंतहा मुहब्बत करती थी मगर बेमेल शादी और पैसों की लालच ने 23 वर्षीय आयशा को मौत के घाट उतार दिया। 

लड़कियों के लिए प्यार करना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि लड़कियां आसानी से किसी पर भरोसा नहीं करतीं मगर जिन पर भरोसा करती हैं, उससे उम्मीदें बना लेती हैं। शायद यही उम्मीद आयशा ने भी की होगी, जिसकी सजा जान देकर चुकानी पड़ी। लोग वीडियो को शेयर कर रहे हैं और लोगों की आंखें नम है मगर लोगों की ही बनी बनाई मानसिकता है कि एक लड़की अपनी जिंदगी से तंग हो गई। 

दहेज क्यों खत्म नहीं होता?

भारत के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने साल 2017 तक लगभग 7000 दहेज से जुड़ी मौतों को दर्ज किया था। 2001 में दहेज की मृत्यु प्रतिदिन लगभग 19 से बढ़कर 2016 में 21 प्रति दिन हो गई थी। भारत में साल 1961 में दहेज प्रथा को समाप्त कर दिया गया था मगर केवल कागज़ों तक ही। इस रिवाज की व्यापकता का कारण पितृसत्तात्मक समाज है, जो महिलाओं से ज्यादा पुरुषों को महत्व देता है जबकि महिला और पुरुष समान हैं। 

हमारे समाज में लड़कों का एक रेट कार्ड तय है। यह अनौपचारिक मूल्य है, जो लड़के के लायक है और वह मूल्य दहेज की राशि से मापा जाता है, जो एक लड़के को शादी में मिलेगा। 

भारतीय समाज में लैंगिक असमानता का गढ़ एक दुल्हन के परिवार को उस आदमी की दहेज की मांग को पूरा करने के लिए बाध्य करता है, जो उस बेटी की देखभाल के लिए ‘सहमत’ है। इसका मतलब यह हुआ कि लड़की के देखभाल का मोल लड़के के परिवार को लड़की के माता-पिता देते हैं ताकि लड़कियों की नाक ससुराल में ऊंची रहे। 

लोग दहेज को अपराध नहीं मानते

दूसरा प्रमुख कारण यह है कि भारतीय संस्कृति में दहेज प्रथा इतनी गहरी है कि इसे सामान्य और अपरिवर्तनीय माना जाता है। आज भी अगर लोगों को यह याद दिलाया जाता है कि दहेज एक अपराध है, तो वे इसे एक वैकल्पिक वास्तविकता के रूप में अनदेखा कर देते हैं, जो सदियों पुराने रीति-रिवाजों को नहीं बदला जा सकता है। कई शिक्षित परिवार, स्वेच्छा या अनिच्छा से रीति-रिवाजों का पालन नहीं करने के लिए आलोचना करने से बचते हैं और दहेज को हां बोल देते हैं। 

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण विवाह की संस्था का प्रभुत्व है। एक महिला का विवाह भारतीय परिवारों में सर्वोपरि है। यदि किसी महिला के विवाह के लिए उसके सुरक्षित विवाहित जीवन के बदले दहेज की आवश्यकता होती है, तब एक लड़की के परिवार को देना ही पड़ता है। दहेज दुनिया में एक ऐसी चुनौती है, जो महिलाओं के लिए असुरक्षित और भेदभावपूर्ण है। दहेज को कभी भी अपराध के रूप में नहीं देखा जाता है। 

दहेज को खत्म करना आसान नहीं

भले हम दहेज को खत्म करने के लिए अनेक बाते करते हैं मगर असल बात यह है कि दहेज केवल आवाज़ उठाने भर से खत्म नहीं होगा क्योंकि आवाज़े दबा दी जाएंगी। दहेज को खत्म करने के लिए लोगों को एकजुट होना होगा कि हम अपनी बेटी के खातिर दहेज नहीं देंगे। लड़कियां अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है इसलिए दहेज किसी लोभी को नहीं देना है। 

आज आयशा आरिफ खान ने मौत को गले लगाया है। कल हो सकता है कि आपके आसपास किसी भी लड़की का चेहरा वहां दिख जाए। मां अपनी बेटी को जब मजबूत बनना सिखाती है, उस वक्त ही मां को अपनी बेटी को निखारना चाहिए कि वह आत्मनिर्भर बन सके। हालांकि समाज से दहेज को खत्म करना बहुत मुश्किल है क्योंकि लोग इसे अपनी इज्जत से जोड़कर देखते हैं। 

बहरहाल एक आयशा अब हम सबके बीच नहीं है मगर दूसरी आयशा को हमें बचाना है। ऐसा ना हो कि देर हो जाए और फिर एक वीडियो आपकी स्क्रिन पर स्क्रॉल करे और आप दो पल के लिए आंसू गिरा दें। उसके बाद अपने काम में लग जाएं।

मूल चित्र : Screenshot from Ayesha’s video

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