कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अगर ये सब आलस है, तो हाँ मैं हूँ आलसी…

कितनी बार राकेश से बोला था कि मेरे लिए मेड लगा दो, अब नहीं होता अकेले सारा काम...पर‌ मजाल है जो राकेश उसकी बातों को सुन लें।

कितनी बार राकेश से बोला था कि मेरे लिए मेड लगा दो, अब नहीं होता अकेले सारा काम…पर‌ मजाल है जो राकेश उसकी बातों को सुन लें।

“बिन्नी! दूध‌ वाले का हिसाब कर दिया?”

“जी मां जी! आज ही कर दिया।”

“अरे बिन्नी! वो फाइल कहां है? बताया था ना आज मेरी कितनी इंपार्टेंट मीटिंग है।”

‘वहीं तो दराज में रखी हैं, कल रात ही आपको बता दिया था। अच्छा सुनो बच्चों को बस तक छोड़ आओ मुझे और भी कई काम हैं। आपको तो पता है ना आजकल सीजन चल रहा शादी का और मैं पार्लर के लिए लेट हो रही हूँ।”

“क्या बिन्नी! तुम देख लो ये सब। अब इतना भी क्या पार्लर का काम कि तुम बच्चों को नहीं संभाल सको”, राकेश ने बिन्नी को बोला।

बिन्नी का तो मुंह ही उतर‌ गया। यहां सुबह ४ बजे से एक टांग पर खड़े होकर सारे काम करती है और मदद तो दूर कोई उससे आराम तक के लिए नहीं पूछता।

बिन्नी की ससुराल में सास-ससुर, पति और दो बच्चे हैं। घर के सभी कामों के साथ उसने खुद का एक छोटा पार्लर खोल रखा है। भले ही पार्लर से दो पैसे आएं पर अपनी इज्जत तो थी ना।

हां! राकेश उसे अक्सर ये कहकर बोलते थे कि क्या दो पैसों के लिए दौड़ती रहती है। घर संभालो अपना बाकि मैं तो हूं ना। पर शायद ‘मैं तो हूं ना’ में एक मेल ईगो उसे हमेशा दिखता था।

“बिन्नी! ओ बिन्नी! ज़रा चाय तो पिला दे।”

“मां जी! बच्चों को बस में बैठाकर आती हूं। फिर चाय बनाती हूं आपके लिए।”

“अरे पार्वती जी! कभी खुद भी कुछ काम कर लिया करें कि सभी काम घर के बहू से ही करवाने हैं।”

“हां…हां… आपकी ही तो बहू है…मैं तो जैसे उसकी दुश्मन ठहरी। ऐसा भी क्या करने को बोल दिया एक प्याली चाय ही तो कही।”

प्रदीप जी अपनी पत्नी की बातों को सुन अनसुना कर वापिस अपने कामों में लग गए।

बच्चों को बस में बैठा बिन्नी अपने घर के कामों को पूरा कर जल्दी-जल्दी पार्लर के लिए चल दी।

बड़ा सुकून मिलता था उसे अपना काम करके जैसे एक अलग सी ताकत आ जाती थी। पर दिनभर की मेहनत के बाद बिन्नी अब थकने लगी थी। कितनी बार राकेश से बोला था कि मेरे लिए मेड लगा दो। अब नहीं होता अकेले सारा काम…पर‌ मजाल है जो राकेश उसकी बातों को सुन लें।

उल्टा उसे ये सुनने को मिलता, “तुम पार्लर बंद कर घर संभालो। तुम्हारी यहां घर पर ज़रूरत ज्यादा है। और वैसे भी आजकल की मेड क्या घर संभालेंगी। मां ने भी तो इतने साल घर को चलाया है।”

अब राकेश जी को कौन समझाए… मां अपना आधा काम ससुर जी से और बचा हुआ काम चलताऊ की तरह निपटाया। और कौन सा वो पार्लर चलाती थीं। मैं तो दो भूमिकाएं अदा कर रही पर मेरा साथ देने वाला कोई नहीं।

“दीदी! सारा काम हो गया…पार्लर बंद करने का समय हो रहा है।”

“अरे हां! छवि तू चल मैं सब बंद कर निकलती हूं। आज बिन्नी कुछ ज्यादा ही तक गई थी। शादी के सीज़न की वजह से काम थोड़ा बढ़ गया है।”

घर आते ही घर की वही स्थिति पूरा घर फैला हुआ। गंदे बर्तन सिंक में और इधर बिन्नी के सिर में जोरों का दर्द था।

बिन्नी ने सोचा क्यूं ना थोड़ी देर सो लिया जाए। ७ बज चुके थे पर बिन्नी की नींद खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी। किसी तरह बच्चों की चिल्लम चिल्ली से खुद को ८ बजे उठाया। फिर किचन का सारा काम निपटा अब खाने की तैयारियां शुरू कीं।

आज थकान की वजह से बिन्नी का पूरा खाना बनाने का मन नहीं था। उसने सोचा क्यूं ना कुछ हल्का-फुल्का बना लिया जाए। उसने बस एक तरह की सब्जी और रोटियां बना सबको खाना परोसा।

“ये क्या है?” राकेश बोले।

“ना दाल, सलाद और ना ही रायता। पूरे दिन के बाद तुम ऐसा खाना बना रही हो। तुमसे इतना भी नहीं होता कि सही से सबके लिए खाना बना दो। इतना आलस अच्छा नहीं है, बिन्नी।”

“अब बहू ८बजे तक सोएगी राकेश, तो खाने में तो ऐसा ही मिलेगा ना सबको”, पार्वती जी मुंह बनाते बोलीं।

बिन्नी का सिर ऐसे ही फट रहा था। घर वालों की तीखी बातें सुनकर वो फट पड़ी।

“वाह! राकेश जी…जब पूरे दिन एक पैर पर खड़ी रहती हूं। तब आपको मेरा आलस नहीं दिखता। ४ बजे से पागलों की तरह घर को संभालती हूं। नाश्ता, खाना और बच्चों को भी बस तक ले जाना और लाना। पापा की दवाइयां समय पर देना, सबकी छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखना। अपने दर्द को एक तरफ रख सबकी इच्छाओं को पूरा करना अगर आलस है तो हां हूं मैं आलसी।

कभी किसी ने सोचा है अगर कुछ छोटी-छोटी चीजों में हाथ बंटाओ तो शायद मेरे लिए भी उतनी आसान हो चीज़ें?

और हां मां जी! मुझे भी कोई शौक नहीं ८ बजे तक सोने का। सिर दर्द से फट रहा था किसी से ये तक ना हुआ कि आकर पूछ ले कि आखिर क्या हुआ जो इतनी देर तक लेटी है?

मैं भी इंसान हूं मैं भी थकती हूं…मशीन नहीं जो २४ घंटे चलती रहे। अगर ३० दिन में से एक दिन अच्छे से नहीं बनाया तो क्या महापाप कर दिया? सबको भूखा तो नहीं रखा ना मैंने।”

इतना कहकर बिन्नी अपने कमरे में चली गई। पूरे कमरे में सन्नाटा पसर गया। आज किसी के पास भी बिन्नी के सवालों का जवाब नहीं था।

सखियों! अक्सर घरों की महिलाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। वो रात-दिन परिवार को संभाले रखती हैं। पर उन पर ध्यान देने वाला कोई नहीं होता है। इसलिए घर की महिलाओं को भी सहयोग दें और उनका ध्यान रखें।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें और साथ ही मुझे फाॅलो करना ना भूलें।

ऑथर रश्मि शुक्ला की अन्य पोस्ट्स पढ़ें यहां और ऐसी अन्य कहानियां पढ़ें यहां

मूल चित्र : Still from Ghar ki Murgi, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

80 Posts | 402,784 Views
All Categories